सरकार द्वारा लगातार संस्थागत प्रसव को लेकर प्रयास किए जा रहे है, लेकिन व्यवस्थाएं उतनी नहीं है। न तो स्टाफ पर्याप्त है और न ही पलंग। हालात यह है कि गर्वभती महिलाओं को भर्ती होने के बावजूद पलंग नहीं मिल रहे और उन्हें ट्रामा सेंटर के बरामदे में बाहर ही पलंग खाली होने का इंतजार करना पड़ रहा है। ऐसे एक या दो नहीं बल्कि एक दर्जन से ज्यादा गर्वभती महिलाओं बरामदे में जमीन पर लेटी हुई थी।
पीडि़तों ने कहा- हम कल से भर्ती हैं, लेकिन पलंग नहीं मिला
रविवार की दोपहर 12 बजे के लगभग ट्रामा सेंटर के अंदर जाते ही एक अलग नजारा देखने को मिला। जहां अलग-अलग स्थानों पर अपने परिजनों के साथ गर्वभती महिलाएं जमीन पर ही लेटी हुई थी। किसी का कहना था कि हम कल से भर्ती है, लेकिन पलंग नहीं मिला तो एक गर्भवती ने दर्द से परेशान थी और उसके साथ आई आशा कार्यकर्ता का कहना था कि अंदर मौजूद स्टाफ ने बाहर जाने को कहा है।
इसलिए हम इन्हें बाहर लेकर बैठे है। जबकि अन्य दो प्रसूताओं के परिजनों का कहना था कि पलंग खाली होने के लिए कहा है, लेकिन गर्वभती महिलाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यहां अस्पताल प्रबंधन की बात करें तो यहां 65 पलंग है। जिनमें सीजर और नार्मल डिलेवरी सभी तरह की गर्भवती महिलाएं भती होती है, लेकिन रविवार को वहां 120 गर्भवती महिलाएं भर्ती थी। ऐसे में किसको पलंग दे और किसको छुट्टी दे यह समझ नहीं पा रहे थे। क्योंकि नियमानुसार तीन दिन से पूर्व किसी को छुट्टी नहीं दी जा सकती। जोगर्भवती महिलाएं बाहर बरामदे में थी उनमें कृष्णाबाई गणेशपुरा, सुशीलाबाई मलावर, प्रियंकाबाई लालपुरिया, सुशीलाबाई देवली, सविताबाई पाड़ल्या, संतोषबाई पटना सहित अन्य गर्भवती महिलाएं को पलंग न मिलने के कारण बाहर बरामदे में ही लेटी थी।
सीएमएचओ व सीएस के मोबाइल बंद
अवकाश के दिनों में कई बार गलतियां हो जाती है। उनके सुधार को लेकर पहले व्यक्ति सीएस और फिर सीएमएचओ तक अपनी बात रखना चाहता है, लेकिन रविवार को तीन बजे के बाद दोनों ही अधिकारियों के मोबाइल बंद थे। ऐसे में मामले की जानकारी एडीएम भव्या मित्तल तक पहुंची। जहां उन्होंने अधिकारियों से संपर्क कर व्यवस्थाओं के सुधार का आश्वासन दिया।