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सब्जियों की तरह यहां इंसानो की लगती है बोली, पैसा तय कर साथ ले जाते ठे केदार

locationराजगढ़Published: Oct 10, 2019 01:42:51 pm

Submitted by:

Amit Mishra

हर दिन सुबह मजदूर अलग-अलग स्थानों पर जाकर खड़े हो जाते हैं और फि र उनकी बोली लगाने के लिए ठेकेदार वहां पहुंचते हैं। जो जैसा मान जाए उस मान से उन्हें राजगढ़ ही नहीं बल्कि शाजापुर, झालावाड़, गुना और विदिशा जैसे जिलों में फ सल काटने के लिए ले जाते हैं।

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राजगढ़। विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा दोनों ही चुनाव यहां जहां शिक्षा और स्वास्थ्य को मुद्दा बनाकर लड़ा जाता है। वहीं यहां की एक बड़ी समस्या है पलायन, जिसे रोकने के लिए हर बार नेता जनता को आश्वासन देते हैं और चुनावी मैदान में उतरते हैं। उनके जीतने के बाद यह पलायन रुकेगा और राजगढ़ को उद्योगों के साथ ही रोजगार के अन्य साधन उपलब्ध कराए जाएंगे।

मजदूरों की भी यहां बोली लगाई जाती है
लेकिन सालों से चले आ रहे इस पलायन को रोकने के लिए अभी भी कोई प्रबंध नहीं हुए हैं। यही कारण है कि जिस तरह हाट बाजार में सब्जी हो या अन्य सामग्री की बोली लगती है, उसी तरह पलायन करने जाने वाले मजदूरों की भी यहां बोली लगाई जाती है।

मजदूर अलग-अलग स्थानों पर जाकर खड़े हो जाते हैं
हर दिन सुबह मजदूर अलग-अलग स्थानों पर जाकर खड़े हो जाते हैं और फि र उनकी बोली लगाने के लिए ठेकेदार वहां पहुंचते हैं। जो जैसा मान जाए उस मान से उन्हें राजगढ़ ही नहीं बल्कि शाजापुर, झालावाड़, गुना और विदिशा जैसे जिलों में फ सल काटने के लिए ले जाते हैं। पिछले एक सप्ताह से बारिश रुकी और फसलों की कटाई शुरू हुई।

सब्जियों की तरह यहां इसानों की लगती है बोली, पैसा तय कर साथ ले जाते ठे​केदार

पैसा तयकर साथ ले जाते
करेड़ी, राजगढ़ सहित ब्यावरा के बायपास चौराहे पर इन मजदूरों की कतारें लगना शुरू हो गईं। माहौल कुछ इस तरह हो जाता है कि मानो कोई बाजार लग रहा हो। दूसरे जिलों से आने वाले ठेकेदार इनकी वहीं पर बोली लगाकर दिन और घंटों के काम करने के हिसाब से पैसा तयकर साथ ले जाते हैं।


कब रुकेगा पलायन
पलायन को रोकने के लिए मनरेगा और पंचायत स्तर पर होने वाले ऐसे काम शुरू करवाए गए। जिनके माध्यम से मजदूरों को मजदूरी दी जानी थी। लेकिन अधिकांश जगह यह काम भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए और मजदूरों की जगह मशीनरी का उपयोग किया जाने लगा। इससे अब इन्हें गांव में मजदूरी नहीं मिल रही। यही कारण है की मजबूरी में मजदूरी के लिए यह दूर-दूर तक जिले से पलायन कर जाते हैं।


बूढ़े और बच्चे ही रह जाते हैं गांव में
राजगढ़ और इसके आसपास के क्षेत्र की यदि बात करें तो गांव के गांव मजदूरी के लिए पलायन कर जाते हैं। महिलाएं हों या फि र युवा वर्ग के लोग सभी रोजगार की तलाश में निकल जाते हैं। गांव में इन दिनों सिर्फ बच्चे और बुजुर्ग मिलते हैं।

जवाब देने से कतराते रहे
कई घरों में तो तीन-तीन माह तक ताले डले रहते हैं। पलायन को बहुत हद तक रोका जा सकता है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता से यह संभव नहीं हो पा रहा है। जनपद सीईओ से जब इस पलायन, मनरेगा के रुके कार्यों के संबंध में चर्चा करनी चाही तो कई बार संपर्क के बाद भी वी जवाब देने से कतराते रहे।


पलायन न हो इसको लेकर मनरेगा के काम चल रहे हैं। यदि कोई ऐसी पंचायत हो जहां काम बंद की सूचना आ रही है और वहां से मजबूर पलायन कर रहे हैं तो ऐसी पंचायतों के बारे में बताएं, वहां काम खोले जाएंगे पलायन को रोकने के लिए यह योजनाएं संचालित हो रही हैं।
मृणाल मीणा, जिला पंचायत सीईओ राजगढ़

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