पत्रिका ने ब्यावरा सहित जिले के कुछ गांवों में रेंडमली फीडबैक लिया तो ग्रामीणों ने तरह-तरह की प्रतिक्रिया दी। लोगों का कहना है कि जब सरकार इतना आग्रह कर रही है तो हम रुके रहेंगे पूरे लॉक डॉउन पीरियड में। जहां तक जरूरत की सामग्री की बात है तो हम लोग दूध, दही, घी, छाछ और दलिया को ही मुख्य भोजन कर इत्यादि से भी अपना रूटीन और जीवन निर्वाह कर सकते हैं। यानि बहुत जरूरी न हो तब तक हम शहर की ओर रुख नहीं करते। इस बीमारी में हमें जो एहतियात बताए गए हैं उन्हें भी हम बरत ही रहे हैं।
किसान बोले- सीमित जरूरतों में भी निकल रहा समय
हमें बहुत ज्यादा कुछ तो नहीं पता लेकिन देश 14 तारीख तक बंद है, हमारा रुटीन वैसे भी खेत, खलियान वाला रहता है। ऐसे में जरूरत की सामग्री के अभाव में भी हम समय निकाल ही लेते हैं।
-आशीष मेहर, ग्रामवासी, निवासी गांगाहोनी
फसलें निकाल ली है, जो नुकसान ओला और बारिश से हुआ था उसे जरूर समेट रहे हैं। बाकी फसलों को बेचने की जरूर दिक्कत है, बाकी स्थानीय तौर पर खाने-पीने की सामग्री का प्रबंध प्राय: हो ही जाता है।
-गोकुल यादव, ग्रामवासी, ग्राम मोया
कोरोना का गांव में प्रशासनिक दिशा-निर्देश से ही हमें पता चला है बहुत ज्यादा असर स्थानीय तौर पर नहीं दिखा। संतरे में जरूर नुकसान हुआ है, बाहर के व्यापारियों की आवाजाही नहीं होने से आधा नुकसान है।
-बनवारी पाटीदार, किसान, पीपल्या कुल्मी