राजगढ़

शहरों में सब्जी-दूध-किराना के लिए भीड़, गांवों में लोग फसल समेट रहे, खेतों में स्वत: ही हो रहा सोशल डिस्टेंस का पालन

कोरोना का असर गांवों में कम, लोग अपने काम में ही व्यस्तगांवों में बाहरी लोगों को आने से रोक रहे, शहर आना-जाना भी बंद किया, चौपाल में बीता रहे समय

राजगढ़Apr 01, 2020 / 06:22 pm

Rajesh Kumar Vishwakarma

ब्यावरा.समीपस्थ गांगाहोनी गांव में इस तरह से लोग खेती के काम में व्यस्त हैं।,ब्यावरा.कुछ लोग इस तरह गांव के औटलों पर डिस्टेंस बनाकर दिनभर बैठते हैं।

ब्यावरा.कोरोना वायरस के लॉक डॉउन में जहां शहरी क्षेत्र में हर दिन सोशल डिस्टें तोड़ी जा रही है, तीन घंटे की सब्जी, किराना की छूट में भी लोग एक साथ जमा हो रहे हैं वहीं, गांवों में इससे अलग दिनचर्या इन दिनों किसानों की है। कोरोना का बहुत ज्यादा असर ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं पड़ा है, वे अपनी फसलें समेटने में व्यस्त है जिससे सोशल डिस्टेंस का पालन स्वत: ही हो रहा है। हां, एहतियात के तौर पर गांव में किसी बाहरी को जरूर वे आने नहीं दे रहे।
दरअसल, गांवों में लोग लंबे समय तक शहर नहीं आकर भी जीवन निर्वाह करत सकते हैं। ऐसे में न सिर्फ वे घर और खेत में जाकर कोरोना से सीधे जंग लड़ रहे बल्कि लॉक डॉउन में अपना योगदान भी दे रहे हैं। हालांकि शहर में दूध लाने वाले कुछ लोग जरूर आते-जाते हैं, लेकिन वे भी पूरी सावधानी इस दौरान बरत रहे हैं। उल्लेखनीय है कि बीते दिनों आई मीडिया रिपोटर््स के मुताबित आस्ट्रेलिया, यूएस सहित अन्य देशों में लोग कोरोना से बचने के लिए जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में गांवों में निवासरत लोग खुद को सुरक्षित मान रहे हैं।
दूध, दही, दलिया, घी ही मुख्य भोजन
पत्रिका ने ब्यावरा सहित जिले के कुछ गांवों में रेंडमली फीडबैक लिया तो ग्रामीणों ने तरह-तरह की प्रतिक्रिया दी। लोगों का कहना है कि जब सरकार इतना आग्रह कर रही है तो हम रुके रहेंगे पूरे लॉक डॉउन पीरियड में। जहां तक जरूरत की सामग्री की बात है तो हम लोग दूध, दही, घी, छाछ और दलिया को ही मुख्य भोजन कर इत्यादि से भी अपना रूटीन और जीवन निर्वाह कर सकते हैं। यानि बहुत जरूरी न हो तब तक हम शहर की ओर रुख नहीं करते। इस बीमारी में हमें जो एहतियात बताए गए हैं उन्हें भी हम बरत ही रहे हैं।
किसान बोले- सीमित जरूरतों में भी निकल रहा समय
हमें बहुत ज्यादा कुछ तो नहीं पता लेकिन देश 14 तारीख तक बंद है, हमारा रुटीन वैसे भी खेत, खलियान वाला रहता है। ऐसे में जरूरत की सामग्री के अभाव में भी हम समय निकाल ही लेते हैं।
-आशीष मेहर, ग्रामवासी, निवासी गांगाहोनी
फसलें निकाल ली है, जो नुकसान ओला और बारिश से हुआ था उसे जरूर समेट रहे हैं। बाकी फसलों को बेचने की जरूर दिक्कत है, बाकी स्थानीय तौर पर खाने-पीने की सामग्री का प्रबंध प्राय: हो ही जाता है।
-गोकुल यादव, ग्रामवासी, ग्राम मोया
कोरोना का गांव में प्रशासनिक दिशा-निर्देश से ही हमें पता चला है बहुत ज्यादा असर स्थानीय तौर पर नहीं दिखा। संतरे में जरूर नुकसान हुआ है, बाहर के व्यापारियों की आवाजाही नहीं होने से आधा नुकसान है।
-बनवारी पाटीदार, किसान, पीपल्या कुल्मी

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