दरअसल, जिले की भारतीय जनता पार्टी में अंदरूनी रार है जो कि खुलकर सामने आने लगी है। अपनी ही पार्टी के पदाधिकारी खुलकर निर्णयों का विरोध कर रहे हैं, कई फैसलों से सहमत नहीं हैं। ऐसा बीजेपी में भी बार-बार हो रहा है और कांग्रेस की फूट तो जगजाहिर है ही।
दोनों ही दलों के अपने ही पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं का सोशल मीडिया वार भी जमकर चल रहा है। जिसमें सबको सब पता है, लेकिन सब चुप हैं। ऐसे में निकाय चुनाव के दौरान ही यह अंदरूनी गुटबाजी अब खुलकर सामने आने लगी है। पार्टी के ही पदेन विधायक और बड़े नेता अब खुद के ही बड़े नेताओं का विरोध करने लगे हैं।
उनके फैसलों का पुरजोर विरोध होने लगा है। मीडिया में भी खुलकर यह आने लगा है। ऐसे में पार्टियों के प्रदेश नेतृत्व को पहले आपसी खींचतान को कम करना पड़ सकता है। हालांकि पार्टी पदाधिकारी और बड़े नेता तक अंदरूनी तौर पर फिलहाल यही योजनाएं बना रहे हैं।
लक्ष्य मिशन-2023, उसी पर सभी की निगाहें
विरोध और रार अपनी जगह है, लेकिन सभी का लक्ष्य अब मिशन-2023 पर है। बहुमत वाली बीजेपी सरकार कोई कमी अपनी पार्टी के सदस्यों, पदाधिकारियों को मनाने में नहीं छोड़ना चाहती। वहीं, कांग्रेस भी अपने प्रत्याशी को लेकर अपनी-अपनी तैयारी में है।
दोनों ही दल के नेताओं का निशाना विधानसभा चुनाव-2023 ही है, जिसमें उन्हें काम करना है। हालांकि कोई भी दल का कोई भी नेता किसी भी अपने छोटे से छोटे पदाधिकारी से भी विरोध नहीं लेना चाहता। इसलिए उसे संतुष्ट करने की भी योजनाएं बनाई जा रही है।
विरोध के स्वर में देखा जा सकता है कि कांग्रेस, बीजेपी दोनों में ही युवा मोर्चा और मंडल कार्यकारिणी के दौरान खुला विरोध सामने आया था। यहां तक कि एक कार्यकारिणी तो भंग भी करना पड़ी थी।
सब को सब पता है, सब कुछ सब जानते हैं कुछ इसी बात पर बीजेपी की अंदरुनी रार टिकी हुई है। राजनीतिक स्तर पर दो सक्रिय गुट बीजेपी में एक्टिव हैं, जिनमें अब खुलकर विरोध भी होने लगा है। हालांकि बात एक-दूसरे के विरोध की कम, ईगो की ज्यादा है।