19500 में से करीब महज पांच सौ ऐसे बच्चे हैं जो भर्ती योग्य है। अति कम वजन की श्रेणी में आने वाले उक्त बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बच्चों के बौद्धिक, शारीरिक, भौतिक स्तर पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। सबसे बेहतर स्थिति में ब्यावरा की एनआरसी है,लेकिन सुठालिया से एक भी बच्चा यहां नहीं आता, जबकि वहीं के आस-पास के गांवों में सर्वाधिक स्थिति कुपोषण की खराब है।
जिस कुपोषण पर नियंत्रण करने के लिए शासन-प्रशासन प्लॉनिंग बना रहा है उसमें शासन के पैरामीटर ही भारी पड़ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग अति कुपोषित, स्टैंडर्ड डेविएशन के हिसाब से बच्चों को भर्ती करता है। इसमें ऐसे कई बच्चे एनआरसी में प्रवेश नहीं ले पाते जो वाकई में भर्ती के लायक हैं। विभाग का तर्क है कि हम ऐसे बच्चों को भर्ती कर ही नहीं सकते। इधर, महिला बाल विकास विभाग में उम्र के हिसाब से वजन और अब ऊंचाई के हिसाब से वजन की थ्योरी पर बच्चों कुपोषण के दायरे में लाते हैं। ऐसे में दोनों ही विभाग उन बच्चों को भी सुपोषित नहीं कर पा रहे हैं जो वाकई में कुपोषित हैं।
एनआरसी में दो बच्चे, दोनों अति कुपोषित
केस- एक
नाम : रागिनी पिता मुकेश
उम्र : 09 माह
वजन : 15.195 किग्रा
एचबी : 6.8 एमजी
स्थिति : बच्ची के वजन में सुधार है, जन्माष्टमी-राखी का सीजन होने से पैरेंट्स बच्चों को नहीं लाए।
केस- दो :
नाम: आयुषि पिता अमृतलाल
उम्र : 07 माह
एचबी : 7.0 एमजी
स्थिति : अतिकुपोषित बच्चों को दो दिन पहले ही भर्ती किया गया। कुछ हद तक स्वास्थ्य में सुधार है।
-19, 500 बच्चे जिले में कुपोषित।
-3000 बच्चों को गोद दिया था प्रशासन ने।
-2800-3000 अति कम वजन वजन वाले।
-25, 000 कुल थी कुपोषित बच्चों की संख्या।
-7500 बच्चे थे बॉर्डर लाइन पर।
(नोट : जानकारी महिला बाल विकास विभाग से अनुसार)
गोद दिए गए बच्चों की भी सतत मॉनीटरिंग चल रही है। तीन हजार में से 2800 बच्चे अभी भी कुपोषित स्थिति में है। इनकी मॉनीटरिंग का ब्योरा 10 सितंबर के बाद स्पष्ट होगा। विभागीय स्तर पर हम हर कोशिश कर रहे हैं।
-चंद्रसेना भिंडे, जिला कार्यक्रम अधिकारी, राजगढ़