नया विकल्प तलाशने की किसी ने नहीं
राजगढ़ रोड स्थित बालक हायर सैकेंडरी स्कूल का यह हालात किसी से छिपा नहीं है, बनाने को हाई स्कूल की बिल्डिंग बना दी है लेकिन इसे रिनोवेट करने या नया विकल्प तलाशने की किसी ने नहीं सोची। पत्रिका टीम ने जब बच्चों से बात की तो ये हकीकत सामने आई। बहरहाल बच्चे इसी स्थिति में पढ़ रहे हैं, उन्हें उम्मीद है अब जिम्मेदार उनकी परेशानी, दर्द को समझेंगे और समधान होगा।
निजी स्कूलों में पढ़ाने की होड़, इन जरूरतमंदों पर ध्यान नहीं
सरकारों का सर्वाधिक फंड शिक्षा और स्वास्थ्य में खर्च होने, शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर व हाईटेक करने के तमाम दावे की हकीकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हीं जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक हों या आम आदमी या सरकारी सिस्टम से ही जुड़ा और कोई, हर व्यक्ति महंगे से महंगा निजी स्कूल अपने बच्चों के लिए ढूंढ़ रहा है।
आधी-अधूरी सुविधाएं मिल रही
लोगों में होड़ मची है, वे तमाम जिम्मेदार अधिकारी भी इसी होड़ में शामिल हैैं लेकिन सरकार द्वारा लाखों रुपए खर्च कर योग्य शिक्षकों को तैनात करने के बावजूद यहां से बच्चे डायवर्ट किए जा रहे हैं और जो हैं उन्हें ऐसी आधी-अधूरी सुविधाएं मिल रही हैं।
फैक्ट-फाइल
-83 साल पुरानी है बिल्डिंग।
-1936 में हुई थी स्थापना।
-65 साल से भी पुरानी है स्कूल की बिल्डिंग।
-250 बच्चे हैं मीडिल स्कूल में।
-03 प्राचीन कमरे, तीनों में टपकता है पानी।
-01 प्राचार्य कक्ष में भी बूंदाबांदी।
-खेल मैदान भी पानी से लबालब भरा।
(नोट : शिक्षा विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार)
बच्चे बोले- पानी टपकता है तो जगह बदल लेते हैं
थोड़ी सी बारिश में ही छत टपकने लग जाती है, जैसे ही बूंदा-बांदी होती है तो हम जगह बदल लेते हैं और किताबों को इधर-उधर कर देते हैं।
-अंकित वंशकार, छात्र, कक्षा आठवीं
हमारे साथ शिक्षक भी परेशान होते हैं, ग्राउंड में भी पानी भर जाता है। इससे खेलने में भी हमें दिक्कत आती है। दिनभर सीलन में हमें ठंड भी लगती है।
-राकेश साहू, छात्र, कक्षा आठवीं