इसकी सूचना कोई और नहीं बल्कि ब्लड बैंक के ही कर्मचारी इन तक पहुंचाते हैंं। इसके बाद खेल शुरू होता है मरीजों के परिजनों से रुपयों की वसूली का। पहले भी कई बार शिकायतें मिलीं और एक बार पुलिस भी मौके पर पहुंची। जहां सुनील को पुलिस ने समझाइस और चेतावनी देकर छोड़ दिया था, लेकिन समझाइस न कर्मचारियों के काम आई और न ही सुनील और उसके साथियों ने कोई सीख ली और वह लगातार यहां ब्लड बैंक में दखल देते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी में बताया कि जो ब्लड की डिमांड सुबह होती है।
कर्मचारी उसे टाइम से उपलब्ध नहीं कराते। ऐसे में दो बजे की शिफ्ट के बाद जब ब्लड चढ़ाने वाला स्टाफ मरीजों के परिजनों पर दबाव बनाता है तो पैसों में ब्लड की डील होती है। इसमें कुछ हिस्सा कर्मचारी और कुछ हिस्सा डोनर का होता है। खास बात यह है कि जो डोनर हैं उनमें से कई नशे के आदि हो चुके हैं। जिनका ब्लड मरीज के लिए उतना किफायती नहीं होता। यह खेल दो बजे के बाद शुरू होता है। ऐसी सूचना के बाद जब पत्रिका टीम मौके पर पहुंची तो जैसा सुना था वैसा ही नजर आया। सुनील लैब टेक्रिशियन ओम शर्मा के साथ बैठा हुआ था और जब बैठने का कारण पूछा तो कुछ बताने से बचते रहे। जिस मरीज से ब्लड की डील हुई थी, वह भी मौके पर थे। डोनर ने पत्रिका टीम को देखकर दौड़ लगा दी। जबकि वह आधा ब्लड दे चुका था। सुनील भी वहां से चला गया।
कुछ संक्रमित डोनर भटकते रहते हैं
सूत्रों की मानें तो बार-बार ब्लड देने और नशे के आदि होने से कुछ डोनर संक्रमित बीमारियों से पीडि़त हैं। इनमें हेपेटाइटिस बी के साथ ही कुछ गंभीर बीमारियां भी बताई जाती हैं।
&मुझे भी कुछ दिनों से इस तरह की शिकायत मिल रही है। इस मामले को भी दिखवाते हैं। सच्चाई है तो संबंधित कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. विजयसिंह, सीएमएचओ राजगढ़