पीएम के बार-बार के अह्वान के बाद इन मजदूर वर्ग के पैंट्री कर्मचारियों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ध्यान किसी ने नहीं रखा गया। यहां तक कि पूरी तरह के लॉक डॉउन के बाद भी इनकी व्यवस्थाओं का किसी ने जायजा नहीं लिया। उनके राशन, पानी किसी की परवाह न रेल्वे ने की न ही प्रशासनिक स्तर पर किसी अन्य जिम्मेदार ने। पैंट्री में जब तक खाना था तब तक इनका काम चलता रहा, फिर इन्हें बोल दिया गया कि घर जाओ। गाडिय़ां सभी बंद हैं और ये लोग फंसे हुए थे। ऐसे में जीविकापार्जन भी इनके सामने बड़ी चुनौती थी। अब वे ग्वालियर जाकर भी पैदल जाने को मजूबर हैं। बीच के स्टेशनों पर उनकी वास्तविक स्क्रीनिंग इसलिए नहीं हुई कि कोई रिस्क लेना ही नहीं चाहता।
ऊपर से निर्देश थे रोकने के
ऊपर से ही निर्देश कि उक्त गाड़ी को रोड को रोककर चेक किया जाए कि कोई आउटर तो नहीं है। कोई बाहरी व्यक्ति तो सफर नहीं कर रहा। इसीलिए हमने रोका था, सभी की आईडी देखी तो पाया कि पैंट्री कर्मचारी थे, अपने परिवार के साथ जा रहे थे, जिन्हें &0-&5 मिनट बाद रवाना कर दिया।
-मुकेश मीणा, उप-स्टेशन प्रबंधक, ब्यावरा
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