राजगढ़

माता-पिता छतरपुर, ट्रांसफर के बाद सीधे ज्वॉइनिंग ली, डॉक्टर भाई यूपी में, एसडीओपी ब्यावरा में कर रहीं कोरोना से फाइट

पत्रिका कर्मवीर चक्र अभियान : रिस्क उठाने वालों इन योद्धाओं को करें सलाम

राजगढ़Apr 08, 2020 / 07:55 pm

Rajesh Kumar Vishwakarma

ब्यावरा.अपनी टीम के साथ एसडीओपी किरण अहिरवार, जो हर कदम डटी हुई हैं।

ब्यावरा. कोरोना वायरस को हराने, मात देने हमारे योद्धा मैदान में डटे हैं। डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टॉफ, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और मीडियाकर्मी तमाम मुसीबतें, रिस्क उठाकर इसका सामना कर रहे हैं। ऐसे कर्मवीरों को पत्रिका ग्रुप सलाम करता है। उनके सम्मान में कर्मवीर चक्र अभियान शुरू किया है।
अपने कर्तव्य स्थल को ही घर समझने वाले इन योद्धाओं के आगे कोरोना काफी छोटा नजर आ रहा है। कोरोना को हराने ये वारियर्स डटे हुए हैं, इनका हौंसला इस गंंभीर बीमारी के आगे भी कम नहीं होता। विभिन्न जगह से आने वाले लोगों के सीधे संपर्क में आने वाले पुलिसकर्मी, स्वास्थ्यकर्मियों का हौंसला भी यहां नहीं डगमगाता। हालात यह हैं कि तमाम रिस्क लेकर दिन-रात ये कर्मवीर अपने कर्तव्य स्थल पर डटे हैं। ऐसे योद्धाओं को जहां भी मिले जरूर सलाम करें।
पुलिस : हर कदम पर खतरा, लेकिन ड्यूटी से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता
कोरोना के कहर से आम जनता को सुरक्षित रखने उनसे कभी अह्वान तो कभी सख्ती से पेश आने वालीं एसडीओपी किरण अहिरवार अपने ड्यूटी धर्म को ही प्राथमिकता देती हैं। ग्वालयिर से ट्रांसफर के बाद बिना घर गए उन्होंने सीधे ज्वॉइनिंग ले ली। घर में माता-पिता, दो बड़े भाई और एक बड़ी घर में हैं, उन्हें हर समय चिंता रहती है लेकिन ड्यूटी से बढ़कर फिलहाल कुछ नहीं हो सकता। सुश्री अहिरवार बतातीं है कि उनके पिता प्रिंसिपल हैं। बड़े भाई डॉ. मानवेंद्र सिंह झांसी मेडिकल कॉलेज से पास आउट हैं। हाल ही में कोरोना की इमरजेंसी को देखते हुए उनकी पोस्टिंग ललितपुर के पास मेहरोली में हुई। वे बताती हैं कि भाई से बात होती है, हम चर्चा करते हैं तो समझ आता है कि कोराना से लडऩा ही फिलहाल हमारी प्राथमिकता है। दोनों अपने कर्तव्य स्थल पर डटे हैं। माता-पिता और अन्य परिजनों से मिलने की दोनों की इच्छा होती है लेकिन इस समय देश को उनकी जरूरत ज्यादा है। वे बताती हैं कि हम लोगों से यही उम्मीद करेंगे कि हम उनके लिए मैदान में डटे हैं वे कम से कम खुद के लिए अपने घरों में रहें, लॉक डॉउन का पूरा पालन करें।

स्वास्थ्य : छोटी जगह करना थी सेवा, इसलिए इंदौर छोड़ ब्यावरा चुना
सिविल अस्पताल में पदस्थ सीनियर सर्जन डॉ. राकेश गुप्ता करीब 19 साल से यहां पदस्थ हैं। उन्होंने 1997 में इंदौर गांधी मेडिकल कॉलेज से अपनी पीजी डिग्री कंप्लीट कर ली थी। उन्हें छोटी जगह, अपने होम टॉउन में सेवाएं देना थीं इसलिए इंदौर की बजाए ब्यावरा को चुना। वे अपने सख्त लहजे के लिए पहचाने जाते हैं और इसी के साथ टीम को कॉर्डिनेट करते हैं। सभी उन्हें के निर्देशन में बेहतर आउटपुट देते हैं। अब कोरोना महामारी के दौर में वे सुबह से शाम तक फ्लू, सर्दी, खांसी के मरीज अस्पताल में देख रहे हैं। डॉ. गुप्ता का कहना है कि प्राथमिक स्टेज में ही यदि सिम्टोमेटिक पेशेंट का भी समाधान कर दिया जाए तो काफी हद तक इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। हम कोशिश में हैं कि यहां सीमित संस्धानों में भीमरीज को पूरा ट्रीट करें। उसी स्थिति में रेफर करें जब कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो। उनका कहना है कि कोरोना से हम यह जंग जरूर जीत लेंगे बशर्ते सोशल डिस्टेंस का पालन करें, यही एक मात्र जरिया है जिससे कोरोना को मात दी जा सकती है।
अस्पताल को ही बना लिया घर, 24 घंटे जुटे रहते हैं सेवा में
सिविल अस्पताल ब्यावरा में ही ड्रेसर के तौर पर पदस्थ रामचंदर परमार (पप्पू बरग्या बापू) अस्पताल को ही अपना घर मानते हैं। वे 24 घंटे अपनी सेवा में डटे रहते हैं। रोगी कल्याण समिति में सीमित सैलेरी में काम करने वाले पप्पू का कहना है कि कोरोना से लडऩे के लिए हम हमेशा तत्पर हैं। इस महामारी से लडऩे के लिए हर स्तर पर हमारी तैयारी हो चुकी है। ओपीडी में आने वाले मरीजों से लेकर इमरजेंसी केसेस को भी हम हैंडल करते हैं। लोगों को बस इसकी गंभीरता समझने की जरूरत है। वे जब तक दूरी नहीं बनाएंगे और सावधानी नहीं बरतेंगे तब तक यह जंग लड़ी जाना मुश्किल है।
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