लॉक कैटेगिरी में पहुंच रहा जिला
प्रधानमंत्री आवास के मामले में ऑनलाइन पोर्टल में राष्ट्रीय स्तर पर जिला लॉक कैटेगिरी में जा रहा है। इससे न सिर्फ जिले की छबि खराब हो रही है बल्कि उस स्थिति पर भी सवाल उठ रहे हैं जबकि पहले स्थान पर जिला हुआ करता था।बता दें कि यदि किसी आवास के बनने में एक साल से अधिक का समय लगता है तो वह ऑनलाइन स्वत: ही लॉक कैटेगिरी में आजाता है। रेग्यूलर लॉक कैटेगिरी की संख्या बढऩे से ही वसूली और नोटिस की नौबत आई है।
विभाग का तर्क : शासन के निर्देश
नोटिस के साथ ही वसूली और अपात्र पर कार्रवाई के मामले में विभाग का तर्क है कि शासन स्तर पर ही उन्हें निर्देश मिले हैं कि ऐसे तमाम अपात्रों से वसूली की जाए जो राशि मिलने के बावजूद मकान नहीं बना रहे। साथ ही उनसे भी राशि ली जाए जो पहले किसी आवास की योजना का लाभ ले चुके हैं। इन्हीं तमाम बिंदुओं के आधार पर वसूली की कार्रवाई की जाएगी। शासन ने स्पष्ट किया है कि 2011 में हुए सर्वे में जिन लोगों का चयन हुआ था, उनका 2016 में प्रति परीक्षण किया गया। तीन तरह की कैटेगिरी में नोटिस दिए गए हैं, इनमें पहला गलत दस्तावेज दिखाकर पात्रता सिद्ध करने वाले, दूसरा पहली किश्त के बाद भी काम शुरू नहीं करने वाले और तीसरा जिनके आवास में छत डालना शेष है।
जरूरतमंद अभी भी झोपडिय़ों में
सेक डाटा को आधार बनाकर जिला पंचायत जिन पात्र हितग्राहियों की बात करती है असल में उनसे ज्यादा जरूरी वे जरूरतमंद हितग्राही हैं जो बेघर हैं, लेकिन किसी कारण वश न उनका नाम सेक-2011 में आ पाया न ही पिछले साल हुए ग्रामोदय से भारत उदय कार्यक्रम में। उन्हें पोर्टल पर नाम नहीं होने के कारण आवास नहीं मिल पाया। जबकि हकीकत में जिले की तमाम ग्राम पंचायतों में जिन हितग्राहियों को आवास मिले उनमें से आधे अपात्र हैं।
-30, 502 आवास अभी तक बने।
-21,000 आवास बनने पर मिला था पुरस्कार।
-688 हितग्राहियों को भेजे हैं नोटिस।
-22, 393 आवास का लक्ष्य 2018-19 के लिए मिला।
-14, 547 निर्माणाधीन आवास जिले में।
(नोट : जिपं से प्राप्त जानकारी के अनुसार)
आशीष गुप्ता, जिला कॉर्डिनेटर, प्रधानमंत्री आवास, राजगढ़
-ऋषभ गुप्ता, सीईओ, जिला पंचायत, राजगढ़