यही नहीं अब ब्यावरा में भी केप में भंडारण किया जाएगा। यदि समय पर ही ब्यावरा और खिलचीपुर में बने केप में राजगढ़ के साथ भंडारण होता तो परिवहन पर होने वाले लाखों रुपए का खर्च बचाया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। राजगढ़ में २४ हजार मैट्रिक टन भंडारण के खुले केप बनाए गए है। इसमें गेहूं का भंडारण हो रहा है। यह भंडारण राजगढ़, खुजनेर या खिलचीपुर का नहीं बल्कि यहां सारंगपुर और नरसिंहगढ़ से भी गेहूं पहुंचाया गया।
जबकि नरसिंहगढ़ और सारंगपुर के लिए ब्यावरा पास पड़ता है, लेकिन वहां अब भंडारण किया जाएगा। यही नहीं खिलचीपुर में भी खुले केप बने हुए है। यहां भी अभी तक भंडारण की शुरुआत नहीं हुई है और खिलचीपुर से भी राजगढ़ ही भंडारण किया जा रहा है। यदि खिलचीपुर का खिलचीपुर में और ब्यावरा का ब्यावरा में शुरू से ही भंडारण होता तो यहां शासन का बड़ा खर्च बचाया जा सकता था, लेकिन ऐसा किया नहीं गया।
राजगढ़ में सरकारी वेयरहाउस में लगाए गए प्राइवेट तौल कांटे में प्रतिदिन डेढ़ सौ से २०० ट्रक की तुलाई की जा रही है। जबकि सरकारी वेयरहाउस में ही एक सरकारी तौल कांटा भी लगा हुआ है। जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा और इस गेहूं को प्राइवेट तौल कांटे पर ही तुलवाया जा रहा है। एक गाड़ी की तुलाई पर करीब २०० रुपए खर्च हो रहा है, लेकिन शासन की इस खर्च से शायद अधिकारियों को कोई मतलब नहीं है।
बगैर सर्वे ही खाली पड़े हैं 60 हजार मैट्रिक टन के सरकारी गोदाम
भावांतर योजना में चना, मसूर और सरसों की खरीदी को लेकर जिलेभर में करीब ६० हजार मैट्रिक टन के गोडाउन खाली पड़े है। राजगढ़ में ही १४ हजार मैट्रिक टन के गोडाउन खाली है। इन्हें सरसों, मसूर और चना रखने के लिए खाली रखा गया है, लेकिन यह फसलें काफी पहले पक जाती है और किसान इन्हें अपनी जरूरत के आधार पर बाजार में बेच देते है। यही कारण है कि मंडियों में भी अभी तक यह न के बराबर पहुंच रहे है। फिर भी इन गोडाउनों को खाली रखकर गेहूं को खुले आसमान में रखा जा रहा है। पिछली बार ही देखरेख के अभाव में सैकड़ों टन गेहूं सड़ गया था।
ऐसा नहीं है कि कहीं गोडाउन खाली है। उन्हें चना, मसूर के लिए अधिग्रहित किया गया है। रही बात ब्यावरा या खिलचीपुर के केप की तो वहां अभी केप शुरू नहीं हुए है। इसलिए राजगढ़ में कुछ जगह का भंडारण किया जा रहा है। सभी जगह का नहीं।
बीके गुप्ता, नॉन महाप्रबंधक राजगढ़