दरअसल, मातृ और शिशु मृत्यु दर के लिए स्वास्थ्य विभाग तमाम प्रोग्राम चलाता है और प्रयासों में कोई कमी नहीं रखता। इसके लिए लाखों, करोड़ों रुपए का बजट भी जिला अस्पतालों को स्वीकृत किया जाता है। बावजूद इसके राजगढ़ जिले में सीजर कराना बहुत टेढ़ी खीर है। यहां क्रिटिकल केसेस को निश्चेतना अधिकारी की कमी के कारण टाल दिया जाता है।
वर्तमान में एनेस्थीसिया की ट्रेनिंग प्राप्त मेडिकल ऑफिसर डॉ. नरेश कुकरेले चुनिंदा केस में एनेस्थीसिया देते हैं, लेकिन स्पाइनल एनएस्थीसिया तक ही उनका काम सीमित है। किसी बड़े केस या क्रिटिकल मामले में वे काम नहीं करते। ऐसी स्थिति में महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सीजर करने से परहेज करते हैं। हालांकि ये नाम मात्र की व्यवस्था भी जिला मुख्यालय पर स्थित है, जिसमें से चुनिंदा केस ही हो पाते हैं।
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सिविल अस्पताल की स्थिति चिंताजनक
सिविल अस्पतालों की स्थिति काफी खराब है। ब्यावरा अस्पताल में बीते सालभर से भी अधिक समय से एक भी सीजर नहीं हो पाया है जबकि यह न सिर्फ प्रमुख हाईवे का अस्पताल है बल्कि इससे कई गांव भी लगे हैं। हायर सेंटर होने से यहां बड़ी संख्या में प्रसूताएं पहुंचती है और नियमित 5 से 6 डिलीवरी होती है बावजूद इसके यहां की सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता।
बीते पांच साल में सीजर और रोजाना डिलिवरी के हाल
-12 से भी कम सीजर ब्यावरा अस्पताल में हो पाए
-5-6 डिलीवरी प्रतिदिन होती है
-25 से ज्यादा डिलीवरी जिलेभर में
-5 से 6 केस हर दिन रेफर कर दिए जाते हैं
-1 ट्रेनिंग प्राप्त एनेस्थेटिक जिलेभर में मौजूद
-4000 रु. प्रति सीजर प्राइवेट एनेस्थेटिक के लिए मिलते हैं
-सारंगपुर, नरसिंहगढ़ और ब्यावारा में एक भी सीजर नहीं
एनेस्थेटिक की पोस्ट जिले में है खाली
मामले को लेकर राजगढ़ सीएमएचओ डॉ. दीपक पिप्पल का कहना है कि, जिले में मौजूदा स्थिति में एनेस्थेटिक की पोस्ट खाली है। वैकल्पिक तौर पर चुनिंदा केस में हम डॉ. कुकरेले की मदद लेते हैं और सिजेरियन की कोशिश करते हैं। हालांकि, हमने स्थाई एनेस्थेटिक की मांग शासन स्तर पर की है। बाकि सभी अस्पतालों में भी सभी संबंधित डॉक्टर को कहा है कि वह अपने स्तर पर एनेस्थेटिक हायर कर सकते हैं। हमें खुद इच्छाशक्ति दिखाना होगी तभी सीजर केसेस की संख्या में बढ़ोतरी होगी।
जब एनेस्थेटिक थे तब भी नहीं दिखाई थी रुचि
वर्तमान में भले ही एनेस्थेटिक की कमी से जिला जूझ रहा हो लेकिन जब यहां परमानेंट एनेस्थेटिक थे तब भी किसी जिम्मेदार डॉक्टर ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। हां, निजी अस्पतालों में पहले भी सिजेरियन केस हुए औऱ अब भी हो रहे। इसकी संख्या में इन दिनों कमी आई है। अगर बीते पांच साल का आंकड़ा ब्यावरा सिविल अस्पताल का निकाला जाए तो सामने आएगा कि मुश्किल से दर्जनभर सीजर भी नहीं किए हैं जबकि यहां सीनियर सर्जन सीनियर, गाइनेकोलॉजिस्ट सहित दर्जनभर डॉक्टर उपलब्ध है। हाल ही में दो महिला डॉक्टर ने भी यहां ज्वाइन किया है कुल 3 महिला डॉक्टर और महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. आर. के. जैन यहां की मेटरनिटी संभालते हैं। बावजूद इसके सामान्य डिलीवरी के अलावा किसी जिम्मेदार डॉक्टर का ध्यान नहीं है।
प्राइवेट एनेस्थेटिक हायर करने का है नियम, लेकिन कौन रिस्क ले?
जानकारी के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग ने सिजेरियन केस के लिए एक गाइडलाइन जारी की है। इसके मुताबिक सरकारी अस्पतालों में प्राइवेट एनेस्थेटिक को हायर किया जा सकता है। एनएचएम के माध्यम से प्रति सीजर केस के लिए 4000 रुपए और कुछ निश्चित राशि उपलब्ध भी कराती है लेकिन ब्यावरा अस्पताल हो या जिला मुख्यालय हर जगह कोई भी डॉक्टर इसे लेकर कोई रिस्क लेना नहीं चाहता। इसी कारण सिजेरियन में लगातार अस्पताल पिछड़ते जा रहे हैं और जरूरतमंदों को यहां सीजर की सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा।
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