बैटरी डाउन होने से नहीं मिला सिग्नल…
मशीन की बैटरी डाउन होने से पैनल पर ट्रेन आने के सिग्नल नहीं मिल पा रहे थे। स्टेशन के पास होकर भी चालक को ट्रैक पर रेड सिग्नल दिखाई दिया तो ट्रेन को रोकना पड़ा। इसके बाद गेंगमैन द्वारा आउटर्स और सेंडम के पास दो क्लेम (पटरियों को जोडऩा) लगाए गए। तब जाकर ट्रेन को करीब एक घंटे बाद स्टेशन पर लाया गया। हालांकि फिर भी चालक ने रिस्क पर महज 10 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से स्टेशन तक पहुंचाया।
ऑटोजनरेट होते हैं सिग्नल
बता दें कि जब सिग्नल ऑटोजनरेट होते हैं तो उनके आधार पर ही मैन लाइन पर ट्रेन आ जाती है उसके लिए अतिरिक्त क्लेम की जरूरत नहीं होती, लेकिन जब भी इस तरह की तकनीकि खराबी होती है तो ट्रेन को रोकना पड़ता है और मैनुअली क्लेम करना होता है, तभी ट्रेन आगे बढ़ती है।
ट्रेनों में भीड़ ज्यादा एक घंटे लेट हुई…
ट्रेन अपने तय समय से 20 मिनट देरी से 11 बजे पहुंच गई थी लेकिन उसके भी करीब एक घंटे बाद 12 बजे रवाना हो पाई। स्टेशन के पास पहुंचने के बाद सिग्लन नहीं मिलने से ट्रेन रोकना पड़ी। वहीं, चुनाव के बाद इंदौर जाने वाले यात्रियों खास कर छात्रों, युवाओं की संख्या में इजाफा हो गया।
वहीं, इंदौर-चंडीगढ़ एक्सप्रेस से भी रवाना होने वाले यात्रियों की संख्या काफी रही। इंदौर-कोटा को मेन लाइन पर लाने से यात्रियों, बुजुर्गों को भी ट्रैक सीधे पार करना पड़ा, इससे वे खासे परेशान हुए।
इनका कहना है…
सिग्लन में तकनीकि खराबी आ गई थी। हमने वैकल्पिक तौर पर क्लेम लगाकर ट्रेनें निकलवा दी थीं, बाद में सिग्नल्स को भी ठीक करवा लिया था। कभी-कभी ऐसी तकनीकि खामियां आ जाती हैं।
-राजेश मेहरा, प्रभारी स्टेशन मास्टर, ब्यावरा