दरअसल, छोटे चुनाव की बड़ी पंचायत में वोटर्स कन्फ्यूज हो गए हैं। इतने दिन से जारी प्रचार-प्रसार थम गया। कोई पांव पड़ गया तो कोई हाथ जोड़ता रहा, तो कोई घर-घर जाकर संपर्क में जुटा रहा। कोई किसी की पहचान निकाल रहा था तो कोई रिश्तेदारी से संपर्क करने में जुटा था।
चुनाव के दिन पहले तक भी तमाम तरह के गणित सरपंच प्रत्याशी बैठाते रहे। हालांकि कई गांव ऐसे हैं जहां एक ही समाज के कई प्रत्याशी मैदान में हैं, इससे उनके सामने भी धर्म संकट खड़ा हो गया। वहीं, कुछ प्रत्याशी तमाम प्रकार के दावे, आश्वासन कर उन्हें मनाते और रिझाते रहे। यहां तक कि मतदान केंद्र तक ले जाने तक वे मतदाताओं को समझाते और मनाते रहे।
वोटर्स नाराज बोले- पानी नहीं मिला तब कहां गए थे?
चुनाव को लेकर ग्रामीणों की अपनी प्रतिक्रियाएं हैं। उनका कहना है कि भगवान के आगे जैसे झूकते हैं वैसे दंडवत होने वाले ये प्रत्याशी तब कहां गए थे जब हम परेशान थे? पूरी गर्मी पानी के लिए परेशान होते रहे। शासन स्तर भी पुराने सरपंचों ने कोई इंतजाम नहीं किया।
पंचायतों में प्रचार-प्रसार का सिलसिला सरपंच पद तक ही सीमित नहीं रहा। जनपद और जिला पंचायत के लिए भी यहां सतत प्रचार हुए। इसमें मतदाता यह तय नहीं कर पाए कि आखिर वोट देना किसे है? प्रत्याशी भी ऐसे लोगों को ढूंढ़ते रहे जिनके पास वोट ज्यादा हैं और जिनकी बात ज्यादा लोग मानते हों। जिनके पास ज्यादा वोट वे नेता हो गए, उसे मनाते-रिझाते रहे। कोई रिश्तेदारी निकाल रहे तो कोई पुरानी पहचान। हाथ जोड़कर अभिवादन कर तरह-तरह के दावे-आश्वासन उनसे करते रहे।
– सचिन सुमन, ग्राम पंचायत, मलावर
– राधेश्याम दांगी, एएसआई (जीआरपी), ग्राम पंचायत, पड़ोनिया