तिलभांडेश्वर मंदिर नगर के सबसे पूर्वी भाग में विराजमान है। मंदिर के पुजारी पं. आशुतोष वैद्य ने बताया, इस शिवलिंग का आकार प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ जाता है। पुजारी वैद्य की मानें तो उनकी कई पीढ़ियां पूजा में लगी है। उनके पूर्वज भी शिवलिंग के बढ़ने की बात कहते थे।
निर्माण में शाक्य एवं शैव परंपराओं का अनुसरण करने के साथ तांत्रिक विधि को ध्यान में रखा था, जबकि देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के मामले में सारंगपुर का स्थान विशिष्ट है। विद्वानों के अनुसार, साधना में शिव एवं शक्ति की प्रधानता है, जो यह पूजन से सहजता से हो जाती है।
अंग्रेजों का बांधा धागा टूट गया था
मान्यता है कि अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेज मानने को तैयार न थे कि यह शिवलिंग हर साल तिल के बराबर बढ़ता है। सत्य जानने को एक बार अंग्रेजों ने बाबा के शिवलिंग पर उनके नाप से एक धागा बांध दिया और मंदिर को बंद कर दिया। जब मंदिर खोला तो देखा धागा टूटा हुआ है, तब से अंग्रेजों की आस्था भी इस मंदिर में गहरी हो गई। समय बीतता गया और बाबा हर साल बढ़ते गए। तिलभांडेश्वर मंदिर के पुजारी आशुतोष वैद्य बताते हैं कि यहां बाबा पर जल, बेलपत्र के अलावा तिल भी चढ़ाया जाता है। इससे शनि दोष भी खत्म होता है और सुख की प्राप्ति होती है। बाबा तिलभांडेश्वर के हर दिन दर्शन करने से अन्नपूर्णा में वृद्धि और पाप से तिल भर मुक्ति मिलती हैं।
मकर संक्रांति पर बढ़ता है शिवलिंग
तिलभांडेश्वर का प्राचीन मंदिर है। मंदिर की मान्यता है कि बाबा तिलभांडेश्वर स्वयंभू हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के इस मंदिर में मौजूद यह शिवलिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है। शिवलिंग के हर साल एक तिल बढ़ने का उल्लेख शिव पुराण धर्म ग्रन्थ में भी है।