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प्रथम विश्व युद्ध में, जब भारतीय सैनिकों को याद आईं घरेलू मिठाइयां…

Published: Nov 15, 2015 05:42:00 pm

भारतीय मिठाइयां समय-समय पर ब्रिटिश शासन के दौरान अपनी मौजूदगी का अलख जगाती रहीं और चर्चा का विषय बनी रहीं।

भारतीय मिठाइयां समय-समय पर ब्रिटिश शासन के दौरान अपनी मौजूदगी का अलख जगाती रहीं और चर्चा का विषय बनी रहीं। जिसका खुलासा भारतीय संदर्भ में लॉन्च हो रही एक नई किताब में हुआ है।
 

गुरुवार शाम लॉन्च होने वाली एक किताब ‘फॉर किंग एनदर कंट्री इंडियन सोल्जर्स ऑन द वेस्टर्न फ्रंट 1914-18’ में एक दिलचस्प बात सामने आई है कि किस तरह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस और बेल्जियम के बंकरों में लड़ रहे भारतीय सैनिकों में घरेलू मिठाइयों की लालसा, ब्रिटिश शासन के लिए चर्चा का विषय बन गई थी।

किताब के मुताबिक, विदेशी सरजमीं पर जंग लड़ रहे भारतीय सैनिक इस तरह पूर्व यादों से गुजर रहे थे कि, उनकी इस लालसा को पूरा करने के लिए सुझाव आया था कि उनके बीच से कोई भारत जाए और मिठाइयां लेकर फ्रांस वापस आए।

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इस किताब के मुताबिक यह भी सुझाव आया कि क्यूं न भारत से ही मिठाइयां बनाने वाले को बुला लिया जाए जिससे सैनिकों को फ्रांस में ही देश की ताजी मिठाइयां खाने को मिलेगी। हालांकि इस प्रस्ताव को अनुमति नहीं मिली लेकिन बाद में इस तरह की भी कोशिश हुई कि क्यों न भारतीय सैनिकों के लिए देशी खीर और सेवईयां तैयार कराई जाए।

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इस किताब की लेखिका श्रावणी बसु की मानें तो भारतीय मिठाइयों की लालसा ने ब्रिटिश हुक्मरानों को इतना विवश किया कि उन्होनें लंदन के कंफर्ट सब कमेटी को एक के बाद एक कई बैठकें तक भी करा डाली। लेखिका ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के तौर पर करीब 15 लाख सैनिकों को लेकर इस किताब को लिखा है।

‘फॉर किंग एनदर कंट्री इंडियन सोल्जर्स ऑन द वेस्टर्न फ्रंट 1914-18’ किताब में लेखिका ने जो भी बातें लिखी हैं उसके लिए उन्होंने स्त्रोत के तौर पर रेजिमेंटों की डायरी, अधिकारियों की रिपोर्ट, अखबारों के लेख, सैनिकों के खत, सरकारी पत्र और सैनिकों के बाद के पीढियों द्वारा किए गइ इंटरव्यू, राष्ट्रीय अभिलेखागार और ब्रिटेन की लाईब्रेरी का लगभग ढाई साल के गहन अध्ययन के बाद लिखा है।

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