कांग्रेस ने फेंका भाजपा वाला पासा
भाजपा को चौथी बार सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने इस बार भाजपा वाला पासा इस जिले में फेंका है। आमतौर पर भाजपा यहां से अपने मौजूदा विधायकों की टिकट काटकर नए प्रत्याशी को सामने लाकर एंटी इन्कमबेंसी से बचने का काम करती रही है और इसमें उसे सफलता भी मिली है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने ऐसा किया है। यहां से उसने अपने दो मौजूदा विधायकों की टिकट काटकर दो ऐसे लोगों को मैदान में उतारा है जिनमें एक जिला पंचायत की सदस्य हैं और बेहद ग्रामीण परिवेश से आती हैं तो दूसरा सरकारी नौकरी छोड़कर छह महीने पहले ही राजनीति में आया हुआ शख्स। भाजपा से स्वाभाविक तौर पर मुख्यमंत्री डॉ. सिंह तीसरी बार राजनांदगांव से मैदान में रहे तो जिले की भाजपा की एक और विधायक आश्चर्यजनक रूप से रिपीट कर दी गईं।
राजनांदगांव विधानसभा सीट: रमन के गढ़ में करुणा का जोर
भाजपा प्रत्याशी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी करुणा शुक्ला के मैदान में होने से राजनांदगांव विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद हाइवोल्टेज हो गया। 15 साल सरकार की एंटी इन्कमबेंसी से जूझती भाजपा को पूरे प्रदेश में डॉ. रमन सिंह के चेहरे का ही सबसे बड़ा सहारा है, ऐेसे में डॉ. रमन के पास बड़ी जिम्मेदारी थी। स्वाभाविक रूप से इसी वजह से मुख्यमंत्री ने अपने ही क्षेत्र में बमुश्किल आधा दर्जन सभाएं ही कीं। इधर करुणा के पक्ष में माहौल बनाने उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी राजनांदगांव आए। रोड शो किया। सभा ली और राजनांदगांव में ही रात भी बिताया। पूरे चुनाव के दौरान यदि मुद्दों की बात करें तो भाजपा प्रत्याशी डॉ. रमन सिंह ने अपने 15 साल के विकास के आधार पर वोट मांगा तो कांग्रेस प्रत्याशी करुणा शुक्ला के प्रचार के केन्द्र में डॉ. रमन सिंह और उनका भ्रष्टाचार ही रहा। सीएम का क्षेत्र और उनसे मुकाबला करने अचानक बाहर से आई प्रत्याशी के चलते इस बार यहां मतदाताओं ने ज्यादा खुलकर बात नहीं की और मतदान के आंकड़ों को देखकर लगता है कि इस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता पिछली बार जैसा उत्साह नहीं दिखा पाए। इस बार 78.66 प्रतिशत मतदान हुआ है।
खैरागढ़ विधानसभा सीट: परंपराओं की सीट, कांटे की जंग
दशकों तक खैरागढ़ राजपरिवार की पारंपरिक सीट रही खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में करीब 12 साल से लोधी विधायक बनता आ रहा है। 2006 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने पहली बार लोधी कार्ड खेला था और उसे खैरागढ़ राजपरिवार की विरासत में सेंध लगाने में सफलता भी मिली थी। बाद में कांग्रेस ने भी लोधी कार्ड खेलकर यहां सफलता हासिल की। इस बार कांगे्रस और भाजपा के लोधी कार्ड के बीच खैरागढ़ रापरिवार फिर से दीवार बनकर खड़ा है। कांग्रेस के मौजूदा विधायक गिरवर जंघेल और उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी पूर्व विधायक कोमल जंघेल के बीच यहां होने वाले मुकाबले को यहां से तीन बार विधायक रहे खैरागढ़ रियासत के राजा देवव्रत सिंह ने त्रिकोणीय बना दिया है। करीब 40 हजार लोधी और 50 हजार गोंड आदिवासी मतदाता वाले इस क्षेत्र में दोनों लोधी उम्मीदवार गिरवर और कोमल ने जहां विकास और भ्रष्टाचार की बात कर जनता के बीच पहुंच बनाने की कोशिश की तो वहीं देवव्रत ने अपने पूरे चुनाव प्रचार का केन्द्र जातिवाद से मुक्ति को रखा। देवव्रत के लिए जहां उनकी पार्टी के इकलौते स्टार कैपेंनर अजीत जोगी पहुंचे तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत कई प्रचारकों ने भी यहां दस्तक दी।
डोंगरगांव विधानसभा सीट: विरोधियों के साथ-साथ गुटबाजी से भी भिड़ंत
खैरागढ़ राजपरिवार के वर्चस्व वाली इस सीट पर वर्चस्व को छत्तीसगढ़ बनने के बाद हुए पहले चुनाव में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खत्म किया था। इसके बाद से यहां साहू विधायक बनता आ रहा है। इस बार भी यहां से कांगे्रेस की टिकट पर उसके मौजूदा विधायक दलेश्वर साहू मौजूद रहे। कांग्रेस से इस सीट को छीनने के लिए भाजपा ने राजनांदगांव जिले में अपने ‘ट्रम्प कार्डÓ माने जाने वाले पूर्व सांसद मधुसूदन यादव को मैदान में उतारा है।
डोंगरगढ़ विधानसभा सीट: राजनीति की प्रयोगशाला में 80 प्रतिशत वोट
मां बम्लेवरी की नगरी डोंगरगढ़ अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट है। अविभाजित मध्यप्रदेश के वक्त यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद से यहां भाजपा का कब्जा है। भाजपा ने यहां से हर बार अपने विधायक की टिकट काटकर नया उम्मीदवार सामने लाया और जीत हासिल की लेकिन इस बार उसने अपने मौजूदा विधायक को रिपीट किया है। दूसरी ओर चार बार विधायक रहने और इसके बाद लगातार कांग्रेस की टिकट अपने पास रखने वाले धनेश पटिला को किनारे कर कांग्रेस ने युवा जिला पंचायत सदस्य भुनेश्वर बघेल को टिकट दी है। टिकट वितरण के साथ ही आपसी द्वंद्व में जूझ रही भाजपा ने यहां संकट से उबरने के लिए ‘चुनावी मैनेजमेंट’ का बखूबी इस्तेमाल किया तो कांग्रेस ने भाजपा सरकार की नाकामी को भुनाने की कोशिश की है। इस सीट पर वैसे तो मुकाबला सीधा है लेकिन जीत हार का दारोमदार एक निर्दलीय पर टिका हुआ है। यहां से भाजपा छोड़कर निर्दलीय नगर पालिका अध्यक्ष बने तरूण हत्थेल शहरी इलाकों में कितना वोट काट पाएंगे, भाजपा इसे लेकर चिंता में है। यदि हत्थेल को उनकी पालिका क्षेत्र की जनता का ज्यादा भरोसा मिला होगा तो यह भाजपा के लिए मुश्किल की बात होगी। धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की बांट जोह रही डोंगरगढ़ की जनता ने 80 फीसदी से ज्यादा वोट किया।
खुज्जी विधानसभा सीट: त्रिकोणीय मुकाबले में उलझी सीट
चुनावी राजनीति की दृष्टि से राजनांदगांव जिले की सबसे जागरूक विधानसभा सीट खुज्जी में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है। माओवाद प्रभाव वाले इस सीट में इस बार कांग्रेस ने अपने दो बार के विधायक भोलाराम साहू की जगह जिला पंचायत सदस्य छन्नी साहू को उतारा तो भाजपा ने भी जिला पंचायत सदस्य हिरेन्द्र साहू पर दावं खेला है। इन दोनों को जोगी कांग्रेस के जरनैल सिंह भाटिया ने जमकर चुनौती दी है। किसी समय लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा के रजिंदरपाल सिंह भाटिया ने इसे भाजपा का गढ़ बना दिया था लेकिन उनकी टिकट काटने के बाद से भाजपा को यहां हार का सामना करना पड़ रहा है। यहां की जनता की जागरूकता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि यहां सिख समाज के वोटर उंगलियों में गिने जाने लायक है, लेकिन भाटिया जीतते रहे हैं। खेती किसानी की समस्याओं के कांग्रेस के मुद्दे और भाजपा के विकास के दावे के बीच इसी वजह से जोगी कांग्रेस के सिख उम्मीदवार अपनी जमीन तलाशने की कोशिश में लगातार जुटे रहे। पिछली बार रजिंदर भाटिया ने निर्दलीय रहते हुए भाजपा को तीसरे स्थान में ढकेल दिया था। इस बार हालांकि भाजपा ने उनको साध लिया है लेकिन यह स्पष्ट है कि यहां का परिणाम दोनों दलों को टिकट वितरण में अपनी नीतियों को दुरुस्त करने का सबक जरूर देगा।
मोहला-मानपुर विधानसभा सीट: महाराष्ट्र सीमा पर जमकर मतदान
एक तरफ बस्तर तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र की सीमा से लगे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा सीट में भी कांग्रेस ने अपने विधायक की टिकट काटकर इंद्रशाह मंडावी को टिकट दी है। बीते दस साल से एक अदद जीत के लिए तरस रही भाजपा ने सुदूर औंधी क्षेत्र की कंचनमाला भुआर्य को लड़ाया है। इन दोनों का गणित बिगाडऩे के लिए जोगी कांगे्रेस के संजीत ठाकुर मौजूद हैं।
साकार करना इस सीट पर चुने जाने वाले माननीय के लिए बड़ी चुनौती होगी।