डॉ.जीवन यदु ने कहा कि ‘बाल साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं यह चेतना का साधन है।Ó बाल साहित्यकार बलदाऊ राम साहू ने बाल साहित्य को भाषायी संस्कार निरूपित किया। विशिष्ट वक्ता डॉ.गोरे लाल चंदेल ने कहा कि ‘साहित्य अंधेरे के आगे चलने वाली मशाल है।Ó दुर्ग के वरिष्ठ साहित्यकार मुकुंद कौशल ने कहा ‘बाल साहित्य बच्चों की आत्मा में उतरकर ही लिखा जाता है।Ó डॉ. बी रघु ने बाल साहित्य को संस्कारों से ओत- प्रोत होने की बात कही। बाल साहित्यकार विनय शरण सिंह ने पुरखों की रचनाओं को आगे लाने के लिए साहित्यकारों को प्रेरित किया।
इस अवसर पर दूधमोंगरा के लोक कलाकार गौतम चंद जैन, द्वारिका यादव, सरस्वती निषाद, सुखियारिन मानिकपुरी व मनीराम विश्वकर्मा ने छत्तीसगढ़ी बालगीत प्रस्तुत तालियां बंटोरी। भोजनावकाश के बाद कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें साकेत साहित्य परिषद सुरगी, पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा, प्रवाह साहित्य समिति डोंगरगढ़, भोरमदेव सृजन साहित्य मंच कबीरधाम और अंचल के लगभग 40 कवियों और साहित्यकारों ने सारगर्भित कविताओं का पाठ कर वातावरण को रसमय बना दिया।