script‘देवबावली’ में हैं भगवान शिव और प्रकृति का अनोखा संगम, पहाड़, झरना, गुफा और औषधि की है भरमार … | 'Deobavali' is full of the unique confluence of Lord Shiva and nature | Patrika News

‘देवबावली’ में हैं भगवान शिव और प्रकृति का अनोखा संगम, पहाड़, झरना, गुफा और औषधि की है भरमार …

locationराजनंदगांवPublished: Jul 13, 2020 07:23:15 am

Submitted by:

Nitin Dongre

कपिलधारा और पेड़-पौधों की जड़, भगवान अमरनाथ का कराते हैं दर्शन

'Deobavali' is full of the unique confluence of Lord Shiva and nature, with mountains, waterfall, cave and medicine ...

‘देवबावली’ में हैं भगवान शिव और प्रकृति का अनोखा संगम, पहाड़, झरना, गुफा और औषधि की है भरमार …

दिवाकर सोनी @ डोंगरगांव. देवों के देव महादेव की विशेष कृपा तो हर रोज अपने भक्तों पर रहती है किन्तु श्रावणमास में भगवान शिव की आराधना अतिउत्तम और विशेष फलदायी होता है। आज श्रावणमास का दूसरा सोमवार है और भगवान शिव का जलाभिषेक हर मनोकामना पूर्ण करता है। वर्तमान में लॉकडाउन और संक्रमण के चलते भक्त भगवान के दर्शन और कांवडि़ए जल चढ़ाने नहीं पहुंच पा रहे हैं, एसे में ‘पत्रिका’ के माध्यम से हम उन देवभूमियों के दर्शन कराएंगे जहां प्रति वर्ष हजारों की संख्या में शिव भक्त कांवड़ में जल लेकर कई किमी की यात्राकर भगवान शिव की शरण में जाकर जलाभिषेक करते हैं और मनोकामना पूर्ति के लिए आराधना करते हैं।
आज हम आपको ऐसी प्राकृतिक मनोरम छटा में विराजमान भगवान शिव के बारे में बता रहे हैं, जहां द्वार पर हनुमान की पंचमुखी प्रतिमा के दर्शन के बाद सिद्ध बाबा की कुटिया और अग्निकुंड के दर्शन होते हैं। हालांकि अब यह कुटिया वर्तमान में टूट चुकी है तथा अग्निकुंड को भी बंदकर दिया गया है क्योंकि सिद्ध बाबा के बाद उसकी देख-रेख में कोई रहना नहीं चाहा। वहीं नीचे आते आते अर्धनारीश्वर की मनमोहक मूर्ति जो आस-पास देखने को नहीं मिलती। वहीं समीप ही कई शिवलिंग, मां दुर्गा, सतबहिनिया माता का मंदिर है। इसके साथ ही और नीचे आने पर कपिलधारा और झरना और एक बावली है। वहीं झरने की दिशा के साथ करीब 500 से 700 मीटर आगे बढऩे भगवान शिव अद्भूत शिवप्रतिमा विराजमान है। इसके साथ ही विशेष बात यह है कि उसी मंदिर में कुछ छोटा कुंड और है, जहां सफेद पत्थर का शिवलिंग स्थापित है जिनका जलाभिषेक बारह माह होता रहता है। हम बात कर रहे हैं डोंगरगांव तहसील मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर देव बावली की जहां भगवान शिव के सानिध्य में प्रकृति और भी मनभावन लगती है।
यह है पहुंच मार्ग

देव बावली जिला मुख्यालय राजनांदगांव से करीब 46 किमी तथा डोंगरगांव तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र ग्राम पंचायत मासुलकसा विकासखंड छुरिया के ग्राम बावली के अंतर्गत आता है। यहां पहुंचने के लिए डोंगरगांव से खुज्जी होते हुए ग्राम बड़भूम के कुछ दूरी के बाद दाहीने हाथ से ग्राम उमरवाही के रास्ते जहां से देवबवाली की दूरी महज दो से तीन किमी है। वहीं दूसरा रास्ता ग्राम खुज्जी से करमरी होते हुए पहुंचा जा सकता है, यह रास्ता ज्यादा उचित है। क्योंकि इस रास्ते में मटिया मोतीनाला बांध पड़ता है, जहां-जहां से बांध का अद्भूत नजारा देखा जा सकता है। वहीं इस दृश्य को देखने के लिए वाच टावर भी बनाया गया है। दूर तक फैला पानी मन को प्रफूल्लित करता है। देवबावली- जैसा की नाम से ही स्पष्ट है देव बावली अर्थात देवों के देव महादेव के विराजमान होने के चलते यह स्थान देव भूमि तो है ही वहीं बावली/कुंआ भी स्थापित है जिसके अनुसार यह स्थान देवबावली के रूप में प्रचलित हुआ। जहां वर्षों से शिव भक्त जल लेकर यहां तक पहुंंचते हैं या बावली के जल से महादेव का जलाभिषेक करते हैं। सावन माह में यह स्थान काफी महत्व रखता है। इस स्थान पर प्राचीन शिव ***** के साथ-साथ महादेव की प्रतिमा सहित अन्य देवी देवतांओं की मूर्ति स्थापित है। जहां देवी और शिव भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने की अर्जी लगाते हैं।
प्रकृति का है अद्भूत नजारा

देवबावली जहां प्रकृति ने अपनी अनुपम छटा बिखेर रखी है। इस स्थान में मानों जीवन यापन के पूरी व्यवस्था मदरनेचर ने कर दी हो। महादेव की वह कहानी यहां परिलक्षित होती है जिसमें संसार को चलाने के लिए शिव पावर्ती की महिमा बताई गई है। भगवान शिव को भौतिक रूप में बताया गया तथा संसार को चलाने के लिए प्रकृति यानी मां दुर्गा (पार्वती) विराजमान है। यहां भगवान शिव-पावर्ती की प्रतिमा के साथ अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी इसका प्रतिकात्मक प्रमाण देती है। यह स्थान जितना मन को प्रफूल्लित करने वाला है वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी परिपूर्ण हैं। यहां खाने के लिए फल, पीने के लिए पानी, रहने के लिए गुफा, बीमारी के लिए औषधि तथा ध्यान व मन को शांत रखने के लिए देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित हैं।
झरना, पहाड़ और गुफा

देवबावली का मनोरम दृश्य हर वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस संबंध में वहां के स्थानीय निवासी शिक्षक नंदलाल सार्वा भरनाभाट ने बताया कि यहां एक झरना है, जो लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। वहीं इसकी आवाज भक्तिमय माहौल में मंत्रमुग्ध करने वाली होती है। जिसे प्रतिकात्मक रूप मां गंगा की धारा बताया गया है। पहाड़ से गिरता झरना तो सभी ने देखा होगा लेकिन देवबावली में चट्टानों के भीतर से पानी झरने के रूप में गिरता है। वहीं पास ही गढ़माता मैया के नाम पर दो घोड़े और त्रिशुल स्थापित है। इसके पीछे कपिलधारा निकलती है और वहां पेड़ पौधों का जड़ मानों भगवान शिव जटाओं को निरूपित करती हो और यह जलधारा मां गंगा हो, जो अमरनाथ की गुफा का दर्शन कराती है। इसके साथ अनेकों गुफाएं भी हैं जिसे ध्यान के लिए उपयोग किया जाता था बाद में यहां पशु रहने लगे, जिसे कई स्थानीय लोगों ने देखा है। वहीं झरने की दिशा में कुछ दूर आगे बढऩे पर प्रचीन शिव मंदिर दिखाई देता जहां भक्त जल, फूल और बिल्वपत्र चढ़ाकर अपनी मनोकामना की अर्जी लगाते हैं।
औषधि और उद्भूत वृक्ष

इस संबंध में वैद्य महेश गंजीर ने बताया कि यहां बहुत से दुर्लभ जड़ी बूटी और औषधि है। जो चर्मरोग, एनीमिया आदि की बीमारी को दूर करने की रामबाण दवा है। वहीं ताकत के लिए काली मूसली, जोड़ों के दर्द को दूर करने का काम आता है। वहीं एक विशेष वृक्ष भी है जिसे प्रभुचरण के वृक्ष के नाम से जाना जाता है। जिसका फल दाया और बाया पैर के समान दिखाई देता है तथा मां लक्ष्मी की विशेष कृपा के रूप में इसका पूजन किया जाता है।
पर्यटन की अपार संभावनाएं

यह स्थान कई वर्षों से स्थानीय लोगों के साथ-साथ आस-पास के लिए रमणीय स्थान रहा है। प्राचार्य शंकरलाल खोब्रागढ़े ने बताया कि यह स्थान आनंद वन देवबावली के नाम से प्रख्यात है और यह पर्यटन के दृष्टि से काफी महत्व रखता है। यहां दूर-दूर से भगवान भोलेनाथ का दर्शन और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते हैं। यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।
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