दो साल पूर्व राजनांदगांव जनपद के ग्राम पंचायत इंदावानी में बड़े भ्रष्टाचार का मामला सामने आया था। इस पंचायत में ज्यादातर निर्माण कार्य सरपंच-सचिव, ठेकेदार व इंजीनियर की मिलीभगत से कागज में ही निर्माण हो गया था। शिकवा-शिकायत के बाद मामले का खुलासा हुआ। इस मामले में संलिप्त लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी थी। खास बात यह है, इस मामले में मुख्य भूमिका निभाने वाले ठेकेदार आज भी राजनांदगांव जनपद के कई पंचायतों में करोडो़ रूपए के निर्माण कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। खास बात यह है इस ठेकेदार की गिद्द नजर ऐसे पंचायतों पर रहती है, जहां महिला सरपंच हो, ताकि वे उन्हे मोटी कमीषन के लालच देकर काम को अंजाम दे सके।
सालभर से अखबारों की सुर्खियां बटोरने वाले ग्राम पंचायत बखत रेंगाकठेरा भी राजनादंगांव जनपद से ताल्कुल रखते है। इस पंचायत में लाखों रूपए के फर्जीवाड़ा का मामला एसडीएम में चल रहा है। हालांकि कुछ दिन पूर्व शौचालय राशि व निर्माण की आड़ में गफलतबाजी करने पर सचिव निलबिंत किया गया है। इसी मामले में सरपंच पर बर्खास्तगी की तलवार लटक रही है। इस पंचायत पर सत्ता सरकार की प्रभावी नेतओं की कृपा दृष्टि होने के कारण सरपंच पर कार्रवाही की आड़ में अधिकारी कागजी घोड़े दौड़ा रहे है।
तोरनकट्टा पंचायत भी राजनांदगांव जनपद के अतर्गत आता है। यहा शौचालय निर्माण की आड़ में सरपंच सचिव ने जमकर मनमानी की है। ग्रामीणों ने इसकी षिकायत भी हो चुकी है। सचिव को संस्पेड किया गया, सरपंच पर 40 के धारा के तहत कार्रवाही के लिए जिला पंचायत निर्देष दे चुके है। बताया जाता है कि यहां शौचालय निर्माण के लिए शासन द्वारा लाखों रूपए की राशि आंबटित की गई है।
गंावों की विकास करने की सोच को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ शासन रोजगार गांरटी योजना, प्रधानमंत्री आवास, शौचमुक्त ग्राम बनाने के लिए पंचायतों को मनमानी राशि मिलने से पंचायतों के सरपंच सचिवों ने शासकीय अधिकारियों की मिली भगत से इस शासकीय राशि का खुलेआम दुरूपयोग करते हुए शासन को खूब चूना लगाया है। तो कई पंचायतों में इतनी लंबी राशि का आबंटन देखकर कई सरपंच-सचिव तो अपना मानसिक संतुलन तक खो बैठे है। कईयों ने तो योजना की आड में लाखों रूपए ठिकाने लगाएं है। यहां तक की जनपद पंचायत में पदस्थ अधिकारी से लेकर यंत्री व उपयंत्री, बाबू, चपरासी तक पंचायतों के विकास के लिए मिलने वाले इस राषि से माला माल हो गये है। इसी लिए शिकवा-शिकायतों के बाद भी कार्रवाही से हाथ खिचते है। हालत ऐसी हो जाती है कि शिकायत करने वाले खुद ही दफ्तरों के चक्कर लगाते परेशान हो जाता है।