इस संबंध में जब मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. रेणुका गहिने से बात की गई, तो उनका कहना है कि सिलेक्शन लिस्ट निकला था, जिसमें इन लोगों का नाम था, ये लोग ज्वाइनिंग करने भी आए थे, उस समय जब इनके दस्तावेजों की जांच की गई तो पाया गया कि उनके डाक्यूमेंट्स सही नहीं है। उसके बाद वो कैंडिडेट आया ही नहीं। इस तरह फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करने वाले अभ्यर्थियों के खिलाफ मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा कोई एक्शन नहीं लेना भी बड़ा सवाल है। जबकि ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। ताकि इस तरह के गैर कानूनी कार्यों की पुनरावृत्ति न हो।
ऐसे की प्रबंधन ने लापरवाही
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चयन समिति ने दस्तावेजों की जांच किए बिना ही फर्जी अभ्यर्थियों का चयन कर लिया था। क्या यह योग्य अभ्यर्थियों के साथ अन्याय नहीं है। जब अभ्यर्थियों द्वारा फर्जी दस्तावेज पेश करने की बात सामने आई तो उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर चयन करना और शासकीय संस्थान में फर्जी दस्तावेज पेश कर नौकरी पाने के मामले में अभ्यर्थियों पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं करना मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
दस्तावेज जांच जरूरी
मेडिकल कॉलेज में इससे पहले भी विभिन्न पदों पर भर्तियां हुईं हैं। इसके लिए भी चयन समिति का गठन किया गया था। लगातार थोक में हुईं भर्तियों पर अभ्यर्थियों के दस्तावेजों की जांच जरूरी है। ताकि पात्रों के साथ अन्याय न हो और अपात्र को मौका न मिले।
मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. रेणुका गहिने का कहना है कि मेडिकल कॉलेज की भर्ती में कोई गड़बड़ी या भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। पारदर्शिता बरतते हुए नियमों के अनुरूप सही भर्ती की गई है। ज्वाइनिंग के पहले दस्तावेजों की जांच के लिए अभ्यर्थियों को बुलाया गया था, लेकिन वे आए ही नहीं। इस वजह से उनके खिलाफ कोई शिकायत भी नहीं की गई है।