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राजनांदगांव के 300 कारसेवक पहले शिलान्यास के लिए निकले थे अयोध्या, जन्मभूमि पहुंचने से पहले चलने लगी गोलियां, पढि़ए राममंदिर संघर्ष की सच्ची कहानियां

locationराजनंदगांवPublished: Aug 05, 2020 11:33:31 am

Submitted by:

Dakshi Sahu

राजनांदगांव जिले से दो से तीन सौ लोगों का जत्था अयोध्या कूच किया था। उनमें से कुछ अब जीवित हैं और कुछ स्वर्ग सिधार चुके हैं। (Ram Janambhoomi Pujan 2020)

राजनांदगांव के 300 कारसेवक पहले शिलान्यास के लिए निकले थे अयोध्या, जन्मभूमि पहुंचने से पहले चलने लगी गोलियां, पढि़ए राममंदिर संघर्ष की सच्ची कहानियां

राजनांदगांव के 300 कारसेवक पहले शिलान्यास के लिए निकले थे अयोध्या, जन्मभूमि पहुंचने से पहले चलने लगी गोलियां, पढि़ए राममंदिर संघर्ष की सच्ची कहानियां

राजनांदगांव. मन में चाह थी भगवान श्रीराम के काज में हिस्सेदारी की और इसी संकल्प को लेकर देशभर से लाखों लोग राम जन्मस्थली अयोध्या गए थे। इनमें राजनांदगांव की भी भागीदारी थी। करीब 38-39 साल पहले राजनांदगांव जिले से दो से तीन सौ लोगों का जत्था अयोध्या कूच किया था। उनमें से कुछ अब जीवित हैं और कुछ स्वर्ग सिधार चुके हैं। कल 5 अगस्त 2020 को इन सबका ख्वाब पूरा होने जा रहा है। जो जीवित हैं, वो कहते हैं कि इंतजार लंबा हुआ लेकिन अब आत्मिक खुशी मिल रही है।
पहली शिलापूजन कार्यक्रम में हुए थे शामिल
राजनांदगांव जिले (उस समय कवर्धा भी शामिल था) से बड़ी संख्या में कारसेवक अयोध्या गए थे। पहली बार सन 1990 में और दूसरी बार 1992 में। वर्ष 1992 में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गए कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहाया, उस दौर के कुछ कारसेवकों से पत्रिका ने बात की। राजनांदगांव निवासी देवकुमार निर्वाणी 1989 में शिलापूजन कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उन्होंने बताया कि अक्टूबर 1989 में वे और उनके कुछ साथी इलाहाबाद पहुंचे। जहां पर सुरक्षा बल के जवानों ने रास्ता ब्लॉक कर रखा था। लोगों को आगे नहीं जाने दिया जा रहा था। चूंकि उस समय वहां नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था, इसलिए वे खुद ही रास्ता ढूंढते हुए आगे बढ़ते गए, रास्ते की जानकारी नहीं होने के कारण सफर लंबा हो गया।
तैरकर पार करनी पड़ी नदी
अयोध्या पहुंचने के लिए निर्वाणी और उनके साथियों को नदी पार करना पड़ा। इस दौरान जिस नाव में वे सवार थे वह नाव पानी में डूब गई, ऐसे में उन्हें तैरकर नदी पार करना पड़ा और फिर वे अयोध्या के लिए आगे बढ़ निकले। एक नवंबर 1989 को अयोध्या पहुंचे देव कुमार निर्वाणी बताते है कि वहां मंदिर और आश्रम में उन्हें रुकने के लिए जगह दी गई। शिला पूजन में शामिल होने के लिए वे निकले तो उन्हें माथे पर चूना लगाने की सलाह दी गई ताकि आंसू गैस का असर न हो। इसके अलावा उन्हें घुटने के बल जाने के लिए कहा गया ताकि अचानक चलने वाली गोलियों से बच सके। निर्वाणी के मुताबिक भीड़ को शांत कराने के लिए उनके सामने ही गोलीबारी हुई थी। कुछ देर बाद कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया और वे फिर लौट आए। आज इतने वर्षों पर बाद मंदिर निर्माण होने जा रहा है, इससे उन्हें बेहद खुशी हो रही है।
किया गया सम्मान
करीब पौने 5 सौ साल बाद देश में भगवान श्रीरामलला के मंदिर के निर्माण का सपना पूरा हो रहा है लेकिन 38 वर्ष पूर्व अयोध्या में राममंदिर बनाने के संकल्प को लेकर अयोध्या कूच करने वाले कुछ लोग अब भी मौजूद हैं। भाजयुमो ने इन लोगों का आज सम्मान किया और उनके अनुभव जाने।
तीन सौ लोग पहुंचे थे अयोध्या
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला संघचालक साव बताते हैं कि किसी तरह सभी अयोध्या पहुंचे लेकिन राम जन्मभूमि के पहले बेरिकेडिंग में सभी को रोक दिया गया। यहां से रामकृष्ण निर्वाणी और कोमलसिंह राजपूत किसी तरह निकलकर जन्मभूमि तक पहुंचने में सफल रहे। पत्रिका से बात करते हुए विष्णु साव ने बताया कि राजनांदगांव जिले से करीब 3 सौ लोग गए थे। सभी तत्कालीन संघचालक (अब प्रांत संचालक) बिसराराम यादव और वैशालीनगर भिलाई के विधायक विद्यारतन भसीन के पिता योगेन्द्र भसीन के नेतृत्व में गए थे। यहां से मुख्य रूप से कार सेवक समिति के महामंत्री के रुप में साव के साथ लखोली के तामेश्वर साहू, लक्ष्मीनारायण साहू, राजबहादुर, धनुषराम साहू, फत्तेलाल, कोमलसिंह राजपूत, रामकृष्ण निर्वाणी, डोंगरगढ़ से सुरेश सोनी, डोंगरगांव से कृष्णकुमार वैष्णव अयोध्या के लिए सारनाथ एक्सप्रेस से रवाना हुए थे।
राजनांदगांव के 300 कारसेवक पहले शिलान्यास के लिए निकले थे अयोध्या, जन्मभूमि पहुंचने से पहले चलने लगी गोलियां, पढि़ए राममंदिर संघर्ष की सच्ची कहानियां
पुलिस ने कर लिया गिरफ्तार
साव बताते हैं कि अयोध्या तक पहुंचने के लिए सबने कई तरह के तरीके अपनाए थे। कुछ लोगों ने पास में मटकी रख हड्डियां रख ली थीं ताकि यदि रोका जाए तो अस्थि-कलश विसर्जन के लिए इलाहाबाद जा रहे हैं, यह कहा जा सके। साथ में चल रहे रामकृष्ण निर्वाणी (अब दिवंगत) अपना भेष बदल लेते थे, कहीं साधु बन जाते थे, कहीं कुछ और। वे मंडली से अलग होकर आगे बढ़ते जाते। साव ने बताया कि उस समय सबके पास पांच-पांच सौ के नोट थे। नोटों का सीरिज एक होने के कारण पकड़ में आ गए और सभी को गिरफ्तार कर नारायणी में रोक लिया गया। गिरफ्तार कर नारायणी के एक स्कूल में रखा गया।
डाकुओं ने कराया भोजन
अयोध्या जाने के जुनून लिए निकले साव बताते हैं कि नारायणी के स्कूल से किसी तरह भागकर वे आगे बढ़े। पैदल चलते हुए भरतपुर कोटि पहुंचे। इसके बाद बांदा जिले में ददुआ डाकू और उनके साथी मिले। भगवान श्रीराम के काम के लिए जाने के चलते डाकूओं ने मदद की। दूध पिलाया। भोजन कराया। साव बताते हैं कि रास्तेभर में गांव वाले भी भोजन कराते थे। मदद करते थे।

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