scriptशहीद आरक्षक के बूढ़े माता-पिता लगा रहे पेंशन के लिए चक्कर, परिवार चलाना हो रहा मुश्किल | Martyr constable's old parents are going round for pension, family is | Patrika News

शहीद आरक्षक के बूढ़े माता-पिता लगा रहे पेंशन के लिए चक्कर, परिवार चलाना हो रहा मुश्किल

locationराजनंदगांवPublished: May 26, 2020 06:19:36 am

Submitted by:

Nakul Sinha

जीवित प्रमाण पत्र जमा करने के बाद भी 6 माह से बंद है पेंशन

Martyr constable's old parents are going round for pension, family is difficult to run

जीवित प्रमाण पत्र जमा करने के बाद भी 6 माह से बंद है पेंशन

राजनांदगांव / डोंगरगढ़. माई की नगरी के वीर सपूत ओंकार सिन्हा के बूढ़े माता-पिता जिनको पालने वाला अब कोई नहीं है उन्हें दिसंबर 2019 से पेंशन मिलना बंद हो गई है। इसका मुख्य कारण जीवित प्रमाण पत्र का नहीं मिलना है जबकि ओंकार की माता ग्वालिन बाई व पिता नंदूराम सिन्हा ने 1 नवंबर को ही स्टेट बैंक में अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा करा दिया था। यह पहली बार नहीं हुआ है इसके पूर्व नवंबर 2017 से मे भी इनकी पेंशन रोक ली गई थी जो मई 2018 में बड़ी मुश्किल से प्रारंभ हुई थी।
जीवित प्रमाण पत्र जमा करने के बाद भी रोका दिया गया पेंशन
मामला कुछ इस प्रकार है कि ओंकार सिन्हा जो 168 वी वाहिनी में आरक्षक के पद पर पदस्थ रहते हुए 23 नवंबर 2010 को मरतुंडा बीजापुर के पास नक्सली हमले में शहीद हो गया था। उसके पश्चात पीपीओ नंबर एन 23903121420 के माध्यम से ग्वालिन बाई पति नंदू राम सिन्हा को 22000 रूपए प्रति माह की पेंशन मिलना प्रारंभ हो गया था। नियमानुसार उन्हें प्रति वर्ष नवंबर माह में अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा करना पड़ता है। इस प्रकार ग्वालिन बाई व नंदूराम सिन्हा ने 1 नवंबर 2019 को ही भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा करा दिया। पुन: बैंक के निर्देशानुसार 24 जनवरी को फिर उन्होंने एक बार जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा कराया किंतु दिसंबर से बंद हुई पेंशन उन्हें अब तक नहीं मिल रही है। मासिक पेंशन नहीं मिलने से यह दंपति भूखमरी की कगार पर आ गए हैं। ऐसा नहीं है कि नंदूराम ने बैंक में तथा पुलिस विभाग में संपर्क नहीं किया हो किंतु हर जगह उसे आश्वासन का झुनझुना मिल रहा है।
अधिकारियों को बताई समस्या, पर हल नहीं
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के इस जवान के माता-पिता अपना पेट पालने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक में प्रबंधक से संपर्क करने पर उन्होंने इस शाखा के प्रभारी जोयेल के पास भेज दिया जिसने पुन: जीवित होने का प्रमाण पत्र मांगा और उन्होंने 18 मार्च को पुन: अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र पेश कर दिया किंतु अभी तक उन्हें पेंशन प्रारंभ नहीं हुआ है। राजनांदगांव नक्सल सेल में भी उन्होंने बार-बार इसके लिए गुहार लगाई किंतु उन्हें यहां भी सफलता नहीं मिली। शहीदों के लिए रायपुर के तेलीबांधा में ग्रुप सेंटर बनाया गया है जिसमें स्थापित कंट्रोल रूम में भी उन्होंने अपनी शिकायत दर्ज कराई किंतु यहां भी आश्वासन के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के दिल्ली मुख्यालय में भी तथा स्टेट बैंक की रायपुर मुख्य ब्रांच की शाखा में भी उन्होंने जाकर अपनी गुहार लगाई। यहां तक कि राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक से भी वे जाकर मिले। पुलिस अधीक्षक ने उन्हें अपने बाबू के पास भेज दिया तब से वे फुटबॉल की तरह विभिन्न विभागों के चक्कर लगा रहे हैं। अब तो उनके पास जीवन यापन के लिए भी पैसे नहीं बचे तो भी किस तरह विभिन्न कार्यालयों के तक आने-जाने का खर्च वहन कर सकेंगे।
सरकार की कथनी और करनी में अंतर
सरकार अपने शहीदों के लिए बड़े बड़े वादे करती है किंतु हकीकत में उनके साथ क्या हो रहा है इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ग्वालिन बाई उम्र के 63 वें पायदान पर हैं तथा नंदूराम 65 वर्ष के हो चुके हैं वे अभी बैंक तथा पुलिस विभाग के चक्कर लगा रहे हैं कि शायद उन्हें पेंशन प्रारंभ हो जाए। उनका मानना है कि उन्होंने कहीं कोई त्रुटि नहीं कि बैंक में जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा कराने के बाद भी बैंक प्रबंधन उपभोक्ताओं को लिखकर नहीं देता कि उन्हें उन्होंने अपना जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा कर दिया है। बैंक की लापरवाही की सजा भुगत रहे शहीद के परिजनों ने प्रदेश के मुखिया से इस दिशा में तत्काल पहल कर पेंशन प्रारंभ कराने की गुहार लगाई है।

ट्रेंडिंग वीडियो