यह है मामला
बता दें कि हरे भरे बरगद पेड़ की शाखाओं को काटने के बाद इसकी सूचना स्थानीय तहसीलदार व एसडीएम को अखबारों के माध्यम से हुई थी। एक छोटे पौधे को बड़ा वृक्ष बनने में वर्षों लग जाते हैं, शहर में वृक्षारोपण और वृक्षों को बचाने के नाम पर लोग सक्रिय हैं और नगरीय क्षेत्र में प्रदूषण को कम करने के लिए इन बड़े वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते लगातार पीपल और बरगद जैसे देवतुल्य पेड़ काटे जा रहे हैं। इस मामले में मिली जानकारी के अनुसार उक्त स्थल पर मंच निर्माण के लिए टेंडर निकला था, जिसमें पेड़ को बचाकर भी इस मंच का निर्माण किया जा सकता था किन्तु बगैर किसी प्रशासनिक अनुमति या रायशुमारी के इस बड़े की बली चढ़ा दी गई।
बता दें कि हरे भरे बरगद पेड़ की शाखाओं को काटने के बाद इसकी सूचना स्थानीय तहसीलदार व एसडीएम को अखबारों के माध्यम से हुई थी। एक छोटे पौधे को बड़ा वृक्ष बनने में वर्षों लग जाते हैं, शहर में वृक्षारोपण और वृक्षों को बचाने के नाम पर लोग सक्रिय हैं और नगरीय क्षेत्र में प्रदूषण को कम करने के लिए इन बड़े वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते लगातार पीपल और बरगद जैसे देवतुल्य पेड़ काटे जा रहे हैं। इस मामले में मिली जानकारी के अनुसार उक्त स्थल पर मंच निर्माण के लिए टेंडर निकला था, जिसमें पेड़ को बचाकर भी इस मंच का निर्माण किया जा सकता था किन्तु बगैर किसी प्रशासनिक अनुमति या रायशुमारी के इस बड़े की बली चढ़ा दी गई।
बेवजह इस जगह का किया गया चुनाव
गौरतलब है कि जहां जीवनदायनी बरगद का पेड़ था, जो लोगों को छाया और राहगीरों को आश्रय प्रदान करता था, उस स्थल को ही मंच निर्माण के लिए ही क्यों चुना गया जबकि वहीं एक और मंच पहले से स्थित है। जहां विविध आयोजन बिना कोई दिक्कत के संपन्न हो जाते हैं। इस मामले में तत्कालीन तहसीलदार ने शाखाओं के कटने के बाद दो माह पूर्व जांच भी करवाया था और नायब तहसीलदार और छुरिया तहसीलदार के प्रतिवेदन में बताया था कि उक्त पेड़ को जड़ से नहीं काटा गया है और इस मामले में कोई दोषी नहीं है और बचे ठंूठ को लेकर तहसीलदार का कहना था कि यह फिर से पल्लवित हो ही जायेगा। माना जाता है कि बरगद का विकसित पेड़ हजारों पेड़ों के बराबर होता है, जिसे प्रशासन की अनदेखी के चलते एक झटके में काट दिया गया था और अब बचे हुए ठूंठ को भी जड़ से समाप्त कर दिया गया है।
गौरतलब है कि जहां जीवनदायनी बरगद का पेड़ था, जो लोगों को छाया और राहगीरों को आश्रय प्रदान करता था, उस स्थल को ही मंच निर्माण के लिए ही क्यों चुना गया जबकि वहीं एक और मंच पहले से स्थित है। जहां विविध आयोजन बिना कोई दिक्कत के संपन्न हो जाते हैं। इस मामले में तत्कालीन तहसीलदार ने शाखाओं के कटने के बाद दो माह पूर्व जांच भी करवाया था और नायब तहसीलदार और छुरिया तहसीलदार के प्रतिवेदन में बताया था कि उक्त पेड़ को जड़ से नहीं काटा गया है और इस मामले में कोई दोषी नहीं है और बचे ठंूठ को लेकर तहसीलदार का कहना था कि यह फिर से पल्लवित हो ही जायेगा। माना जाता है कि बरगद का विकसित पेड़ हजारों पेड़ों के बराबर होता है, जिसे प्रशासन की अनदेखी के चलते एक झटके में काट दिया गया था और अब बचे हुए ठूंठ को भी जड़ से समाप्त कर दिया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
एसडीएम डोंगरगांव, पुष्पेंद्र शर्मा ने कहा कि मामले की जानकारी लेकर जांच की जायेगी। रेंजर खुज्जी वृत्त, जेएल सिन्हा का कहना है कि वन विभाग व राजस्व विभाग के संयुक्त निरीक्षण के पश्चात ही तहसीलदार के निर्णय के बाद जनहित को देखते हुए ही बरगद या किसी बड़े पेड़ को काटा जा सकता है वरन् बिलकुल नहीं।
एसडीएम डोंगरगांव, पुष्पेंद्र शर्मा ने कहा कि मामले की जानकारी लेकर जांच की जायेगी। रेंजर खुज्जी वृत्त, जेएल सिन्हा का कहना है कि वन विभाग व राजस्व विभाग के संयुक्त निरीक्षण के पश्चात ही तहसीलदार के निर्णय के बाद जनहित को देखते हुए ही बरगद या किसी बड़े पेड़ को काटा जा सकता है वरन् बिलकुल नहीं।