यह दल 15 से 20 मिनट में आपकी फसल के पत्तियों को पूर्ण रूप से खाकर नष्ट कर सकते हैं। यह सभी प्रकार के हरे पत्तों पर आक्रमण करते हैं। ये टिड्डा दल किसी क्षेत्र में शाम 6 से 8 बजे के आस-पास पहुंचकर जमीन पर बैठ जाते हैं। टिड्डा दल शाम के समय समूह में पेड़ों, झाडिय़ों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं और वहीं पर रात गुजारते हैं तथा रात भर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं और फिर सुबह 8-9 बजे के करीब उड़ान भरते हैं। अंडा देने की अवधि में इनका दल एक स्थान पर 3 से 4 दिन तक रुक जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की माने तो बड़े आकार का टिड्डा दल राजस्थान राज्य से होते हुए मध्य प्रदेश से सटे बुंदेलखंड क्षेत्र की तरफ से उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर चुका है। ऐसे में कृषक बंधुओं को सजग रहने की जरूरत है।
टिड्डा दल से फसलों को बचाने इस तरह के उपाय किए जा सकते हैं 1. टिड्डा दल का समूह जब भी आकाश में दिखाई पड़े तो उनको उतरने से रोकने के लिए तुरंत अपने खेत के आस-पास मौजूद घास-फूस का उपयोग करके धुआं करना चाहिए अथवा आग जलाना चाहिए जिससे टिड्डा दल वहां न रूके।
2. टिड्डा दल दिखाई देते ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से आवाज कर भी उन्हें भगाया जा सकता है। अपने खेतों में पटाखे फोड़कर, थाली बजाकर, ढोल-नंगाड़े बजाकर आवाज करें, टैक्टर के साइलेसंर को निकाल कर भी तेज ध्वनि कर सकते हैं। कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर के टिड्डा को तथा उनके अंडों को नष्ट किया जा सकता है। प्रकाश प्रपंच लगाकर एकत्रित करके नष्ट कर सकते हैं। क्योंकि एक डरपोक स्वभाव का कीट होता है। अत: तेज आवाज से डरकर फसल व पेड़-पौधों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।
रासायनिक नियंत्रण यह टिड्डा दल शाम को 6 से 7 बजे के आसपास जमीन पर बैठ जाता है और फिर सुबह 8-9 बजे के करीब उड़ान भरता है। अत: इसी अवधि में इनके ऊपर शक्ति (ट्रैक्टर) चालित स्प्रेयर की मदद से कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके इनको मारा जा सकता है। रसायन के छिड़काव का सबसे उपयुक्त समय सबसे उपयुक्त समय रात्रि 11 बजे से सुबह 8 बजे तक होता होता है।
1. टिड्डा के नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास 20त्न ईसी या बेन्डियोकार्ब 80त्न 125 ग्राम 1200 मिली या क्लोरपाइरीफास 50त्न ईसी 480 मिली या डेल्टामेथरिन 2.8त्न ईसी 625 मिली या डेल्टामेथरिन 1.25त्न एससी 1400 मिली या डाईफ्लूबेनज्यूरॉन 25त्न डब्ल्यूपी 120 ग्राम या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 5त्न ईसी 400 मिली या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 10त्न डब्ल्यूपी 200 ग्राम प्रति हैक्टेयर कीटनाकों का उपयोग किया जा सकता है।
2. मैलाथियान 5त्न धूल अथवा फेनवेलरेट धूल की 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डस्टर द्वारा बुरकाव करें। बुरकाव के लिए प्रात:काल का समय अधिक उपयुक्त होता है क्योंकि इस समय पत्तियों पर ओस पड़ी रहती है जिसके कारण धूल पत्तियों पर चिपक जाती है। बुरकाव को खेत के बाहरी हिस्से से प्रारंभ करते हुए अंदर की तरफ करना चाहिए।
3. यदि आपके क्षेत्र में टिड्डा दल दिखाई देता है तो उपरोक्त उपाय को अपनाते हुए तत्काल अपने क्षेत्र के कृषि विभाग के अधिकारियों व प्राविधिक सहायकों / सलाहकारों अथवा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क कर सलाह ले सकते हैं।