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ग्राम कालेगोंदी के शिकायतकर्ताओं का सरेंडर होना संदेह के दायरे में, कोई प्रशासनिक दबाव नहीं तो शिकायत वापस क्यों लेना पड़ा

locationराजनंदगांवPublished: Jun 06, 2020 06:10:02 am

Submitted by:

Nakul Sinha

शिकायत के बाद जांच और जांच के बाद शिकायत वापसी संदेह को जन्म दे रहा

Surrender of complainants of village Kalegondi is under suspicion, no administrative pressure, so why the complaint had to be withdrawn

शिकायत के बाद जांच और जांच के बाद शिकायत वापसी संदेह को जन्म दे रहा

राजनांदगांव / गंडई पंडरिया. गत दिनों एक दस्तावेजी साक्ष्य के साथ ग्राम पंचायत कालेगोंदी के आश्रित ग्राम मरदकठेरा में तालाब गहरीकरण कार्य मनरेगा के तहत किया जा रहा था। मानरेगा के तहत अनुपस्थित मजदूरों के नाम जोड़कर राशि आहरण का मामला गाम के ही कुछ शिकायतकर्ताओ के द्वारा सामने आया था। मामला न केवल प्रशासन और पत्रकारों के संज्ञान में लाया गया था अपितु न्यायोचित कार्यवाही की मांग सीईओ जनपद पंचायत छुईखदान, सीईओ जिला पंचायत राजनांदगांव, जिला कलेक्टर सहित क्षेत्र के विधायक से गत 20 मई 2020 को की गई थी। तत्पश्चात शिकायतकर्ताओं की ओर से कार्यवाही मे देरी व संबंधित संलग्न लोगों के बीच सांठगांठ का मौखिक आरोप लगाते हुए उन्हीं शिकायतकर्ताओं द्वारा द्वितीय शिकायत पत्र संबंधितों को 27 मई 2020 को सौपा गया। साथ ही किसी प्रकार का लेनदेन कर मामले को दबाया न जा सके इसके लिए मामले को पत्रकारों तक भी पहुंचाया गया ताकि मामला जनता के संज्ञान में भी रहे। इसी बीच प्रशासनिक कार्यवाही के तहत जनपद सीईओ की ओर से जांच दल स्थापित कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश भी दिया गया। जांच दल के ग्राम पंचायत में पहुंचने पर जमकर घूंसालात बरसा और अंततोगत्वा शिकायतकर्ताओं की ओर से मामले में किसी प्रकार की कार्यवाही नही चाहने की अर्जी के बाद मामला नस्ती किए जाने की कार्यवाही की ओर अग्रसर किए जाने की तैयारी है।
शिकायत वापसी के बाद क्या भ्रष्टाचार की जांच बंद हो जाता है?
अब मामला यह उठता है कि क्या एक बार भ्रष्टाचार की शिकायत हो जाने के बाद यदि प्रार्थियों के द्वारा शिकायत वापस लिए जाने का आवेदन दिया जाता है तो ऐसी परिस्थिति में क्या प्रशासन भ्रष्टाचार की जांच करना बंद कर देता है? दोषियों को निर्दोष मान लिया जाता है ? मारपीट की घटना जो पुलिस के सज्ञान तक पहुंची थी उसे शिथिल मान लिया जाता है ? क्या दोषियों को यह अधिकार है कि वे स्वयं के द्वारा उच्च कार्यालयों को शिकायत के साथ प्रस्तुत प्रमाणित दस्तावेजों को खारिज किए जाने का आवेदन दे और प्रशासन प्रकरण बिना जांच व कार्यवाही के नस्ती कर दिया जाए? ऐसे कई सवाल है जो ग्राम पंचायत कालेगोंदी में हुए घटनाक्रम के साथ जुड़े है। साथ ही इस बात का भी पटाक्षेप होना बाकी है कि ऐसी क्या बात हुई कि शिकायतकर्ताओं ने शिकायत वापस ले ली? मामले में आसपास के पंचायतों के लोगों एवं विश्वस्त सूत्रों के द्वारा दबे जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि मामले में शिकायतकर्ताओं में से कुछ लोगों को अन्य शिकायत कर्ताओ को नियंत्रण में रखने एवं शिकायत वापसी के लिए लंबा आर्थिक खेल खेला गया है। जिसके चलते शिकायत वापस लिए जाने की प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त हो सकी है। जबकि प्रकरण में आज भी कुछ सवाल बाकी है।
क्या शिकायत वापसी पर जांच प्रक्रिया बंद कर प्रकरण नस्ती की जा सकती है?
यहां एक बड़ा सवाल है कि क्या एक बार शिकायतकर्ताओ की शिकायत पर विभाग की ओर से जांच दल स्थापित कर दिया जाता है और प्रक्रिया जांच के दायरे मे आ जाती है। तो एैसी परिस्थिति मे शिकायत कर्ताओ द्वारा अपनी शिकायत वापस लिए जाने के आवेदन देनें पर जांच प्रक्रिया को वहीं रोककर प्रकरण नस्ती के लिए भेज दिया जाता है ? अथवा जांच अधिकारी द्वारा जांच पूरी कर अपना रिपोर्ट सौपा जाता है?
क्या शिकायतकर्ताओं ंद्वारा फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किया गया था
ग्राम पंचायत कालेगोंदी के आसपास के ग्राम पंचायत के निवासियों सहित इधर प्रशासनिक महकमें से जुड़े लोगों की ओर से दबेजुबान यह बात कही जा रही है कि या तो शिकायतकर्ताओ ने भ्रष्टाचारियो से सांठगांठ कर लिया है या फिर उनके द्वारा प्रशासन को धोखे में रखकर गलत दस्तावेज प्रस्तुत किया गया था। जब प्रशासन की ओर से कार्यवाही करते हुए जांच कमेटी बैठाई गई तब पकड़े जाने के डर से शिकायत वापसी का आवेदन देकर मामले से बचने का प्रयास किया जा सकता है फिलहाल मामला अभी भी प्रशासनिक जांच के अधीन है।

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