स्वाइन फ्लू से मौत की जिले में यह दूसरी घटना है। इससे पहले खैरागढ़ क्षेत्र के चिचका निवासी शिक्षाकर्मी 31 वर्षीय गजेंद्र डाखरे की मौत हुई थी। जबकि स्वाइन फ्लू से पीडि़त बांधाबाजार क्षेत्र की एक बुजुर्ग महिला रायपुर में निवासरत थीं, जिसकी 27 फरवरी को मौत हुई थी।
मृतक के छोटे भाई पुरुषोत्तम बिसेन ने बताया कि चंद्रशेखर बेमेतरा जिले में पैत्रिक जमीन का देखभाल करते थे। 20-25 दिन पहले उन्हें सर्दी-जुकाम व बुखार की शिकायत आई। स्थानीय डॉक्टरों को दिखाने के बाद 15 फरवरी को मेडिकल कॉलेज अस्पताल भी ले गए। वहां कुछ दवाई दी गई और कहा डरने की बात नहीं। इसके बाद भी स्थिति में सुधार नहीं होता देख परिजनों ने १६ फरवरी को चंद्रशेखर को रायपुर के राम-कृष्ण केयर अस्पताल में भर्ती कराया।
मरीज के सिमटम्स को देखते हुए डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू का इलाज शुरू कर दिया। तीन दिन बाद रिपोर्ट पॉजीटिव आई। फिर पूरे १२ दिनों तक इलाज के बाद भी चंद्रशेखर को नहीं बचाया जा सका। मृतक के शव को रायपुर से एंबुलेंस से राजनांदगांव लाया गया। अस्पताल से उनकी बॉडी को पूरी तरह पैक कर भेजा गया था।
स्वास्थ्य विभाग के एक्सपर्ट की मौजूदगी में ऐसे मामलों में अंतिम संस्कार करना होता है, लेकिन सूचना के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की टीम समय पर नहीं पहुंची और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। जबकि मुक्तिधाम में उस वक्त चंद्रशेखर के अलावा और चार पांच लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था। ऐसे में यहां बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी थी।
चंद्रशेखर का छोटा भाई पुलिस विभाग में पदस्थ है। उनके पिता भी पुलिस विभाग में रहकर समाज की सेवा कर चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग को पहले ही मालूम हो गया था कि उक्त व्यक्ति को स्वाइन फ्लू की शिकायत है, इसके बाद भी अब तक उनके परिजनों को एंटी वैक्सीन लगाने के लिए कोई प्रयास स्वास्थ्य विभाग द्वारा नहीं हुआ। घर में पत्नी दो बच्चों के अलावा पिता और छोटे भाई का भी परिवार है।
मृतक के पिता कृष्ण कुमार बिसेन बताया कि बेटे की तबीयत खराब थी, तो उन्होंने रायपुर या नागपुर में इलाज कराने की सलाह दी थी। तब स्थानीय डॉक्टरों के पास इलाज चल रहा था। रायपुर के अस्पताल में १५ दिनों तक इलाज चलने और आठ लाख रुपए खर्च करने के बाद भी बेटे का बचा नहीं पाए। शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए। ताकि किसी और के परिवार में यह दुख न आए।