उक्त शिक्षक के छोटे भाई दिवाकर डाखरे ने बताया कि दस दिन पहले उनकी तबियत बिगड़ी। इस पर उन्होंने गांव के ही झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराया। स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ तो खैरागढ़ के सरकारी अस्पताल में दिखाया। यहां उन्हें तत्काल एडमिट कर इलाज प्रारंभ किया गया। १० व ११ फरवरी को यहां वे भर्ती रहे। जांच के बाद स्वाइन फ्लू की आंशका जताते हुए मरीज की हालत गंभीर होता देख उसे रायपुर रेफर किया गया। रायपुर के रामकृष्ण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
12 फरवरी को भर्ती हुए गजेंद्र को वेंटीलेटर में रखा गया था। उनके इलाज में रोजाना करीब 60 हजार रुपए खर्च आ रहा था। वहां मंगलवार सुबह 4 बजे इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। गजेेंद्र की तीन साल पहले ही शादी हुई थी। उनके बच्चे नहीं हैं। स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह वायरस एच-1 एन-1 के नाम से जाना जाता है और मौसमी फ्लू में भी यह वायरस सक्रिय होता है। इसकी पहचान 2009 में हुई थी। सुअरों में भी इस तरह के वायरस पाए जाते हंै। इस वजह से इसका नामकरण स्वाइन फ्लू हो गया।
मृतक के परिवार में माता-पिता के अलावा पत्नी और उसका छोटा भाई भी है। चार बहनें हैं, तीन की शादी हो चुकी, एक की शादी नहीं हुई है। पिता के पास दो-ढाई एकड़ कृषि जमीन है। ऐसे में पूरे घर की जिम्मेदारी गजेंद्र के कंधों पर ही थी। उनकी मौत से परिवार को गहरा दुख पहुंचा है। पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है।
जब कोई इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति खांसता या छींकता है तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, की-बोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो। यह बहुत तेजी से फैलने वाला वायरस है।
फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें। स्वाइन फ्लू से लडऩे के लिए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा लें तो आपके लिए लाभकारी होगा। 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकी भर काली मिर्च पाउडर और इतनी ही हल्दी को एक कप पानी या चाय में उबालकर दिन में दो-तीन बार पिएं। पिछले पांच सालों में जिले में स्वाइन फ्लू के २० मामले सामने आ चुके हैं। साल 2017 सितंबर में छुरिया क्षेत्र के एक गर्भवर्ती की मौत भी हो चुकी है। स्वाइन फ्लू के मरीजों में ८ महीने के शिशु से लेकर55 साल के लोग शामिल थे।
इधर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में स्वाइन फ्लू जैसी जानलेवा बीमारी से निपटने के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। यहां प्रबंधन और जिम्मेदार डॉक्टरों की लापरवाही सामने आई है। जिले में लगातार शिकायत मिलने के बाद भी यहां स्वाइन फ्लू जांच के लिए, लिये गए सैंपल को सुरक्षित ढंग से ले जाने के लिए वीटीएम (वायरल ट्रांसपोर्टिंग मीडिया) नहीं है। बलगम की जांच पूणे महाराष्ट्र में होती है, इस पर 11 हजार रुपए का खर्च आता है।
ज्ञात हो कि जिले के डोंगरगढ़ क्षेत्र में इस साल स्वाइन फ्लू का पहला मामला सामने आया था। अब खैरागढ़ में स्वाइन फ्लू से शिक्षाकर्मी की मौत हो चुकी है। इसके अलावा खैरागढ़ में और भी मरीज सामने आए हैं। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग ने इनके परिजनों का टेस्ट नहीं कराया है। पड़ोसियों को भी इस वायरस से खतरा हो सकता है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को गंभीरता दिखाने की जरूरत है। ताकि स्वाइन फ्लू से और जाने न जाए।
मृतक शिक्षाकर्मी के इलाज में रोजाना ६० हजार रुपए का खर्च आ रहा था। गरीब परिवार इस खर्च को उठाने में सक्षम नहीं थे, तो स्थानीय शिक्षाकर्मी संघ ने चंदा कर सोशल मीडिया पर लोगों से भी मदद के लिए अभियान चलाए थे। इससे करीब डेढ़ से दो लाख रुपए इकठ्ठा हुआ है। इसे गजेंद्र के परिवार वालों को देने की तैयारी है।
स्वाइन फ्लू के मामले सामने आने के बाद जिले में अलर्ट जारी कर दिया गया है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मिथिलेश चौधरी ने बताया कि जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध चिकित्सालय में स्वाइन फ्लू की दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए टोल फ्र ी नंबर 104 पर संपर्क किया जा सकता है।
स्वाइन फ्लू के संदेही मरीजों का सैंपल लेने और देखरेख करने वाले के अलावा मरीज के करीब रहने वाले रिश्तेदारों को सबसे पहले वैक्सीन लगाना है। तेजी से फैलने वाले वायरस के कारण विशेष एहतियात बरतना है। बीएमओ खैरागढ़ डॉ. विवेक बिसेन ने बताया कि इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम तैयार है। बुधवार को टीम भेजकर घर परिवार के लोगों की जांच की जाएगी। इसके अलावा स्कूल में भी टीम भेजी जाएगी। लक्षण मिलने पर परिजनों व बच्चों की जांच कराई जाएगी।