scriptराजनांदगांव का ऐसा क्षेत्र जहां अंधेरी गुफाओं में विराजमान हैं भगवान शिव, मां अम्बे के आदेश के बाद ही जाया जा सकता है दर्शन के लिए … | The area of Rajnandgaon where Lord Shiva is seated in the dark caves | Patrika News

राजनांदगांव का ऐसा क्षेत्र जहां अंधेरी गुफाओं में विराजमान हैं भगवान शिव, मां अम्बे के आदेश के बाद ही जाया जा सकता है दर्शन के लिए …

locationराजनंदगांवPublished: Aug 03, 2020 07:50:53 am

Submitted by:

Nitin Dongre

डमरू पत्थर है यहां की विशेषता, गुफाओं में शस्त्रागार, दशहरा पर्व में होती है पूजा

The area of Rajnandgaon where Lord Shiva is seated in the dark caves can be visited only after the order of Maa Ambe ...

राजनांदगांव का ऐसा क्षेत्र जहां अंधेरी गुफाओं में विराजमान हैं भगवान शिव, मां अम्बे के आदेश के बाद ही जाया जा सकता है दर्शन के लिए …

दिवाकर सोनी @ पत्रिका डोंगरगांव. श्रावणमास का अंतिम सोमवार तथा आज रक्षाबंधन का पावन पर्व भी है। यह संयोग कई वर्षों के बाद वर्ष 2020 में आया है। इस अद्भुत संयोग में सर्वार्थ सिद्धि और दीघार्यु का शुभ संयोग है। ज्ञात हो कि इस वर्ष सावन का महीना भगवान शिव के शुभ दिवस से प्रारंभ हो कर सोमवार को ही खत्म हो रहा है। आज हम आपको ऐसे चमत्कारी और प्रमाणित देवभूमि के बारे में बताएंगे जो पूरे जिले सहित अन्य क्षेत्र के लोगों में खासा महत्व रखता है।
दुर्रेटोला व भुरभुसी गांव के बीच पडऩे वाला अद्भुत मंदिर जहां विराजमान हैं भगवान शिव और मां अंबे की अनेक वर्ष पुरानी प्रतिमा और ऐसी मान्यता है कि यह प्रतिमा स्वयं-भू है। बता दें कि इस स्थान पर किसी जानकार व्यक्ति या पुजारी के बगैर जाना खतरों से भरा हो सकता है और सभी जरूरी सामान के साथ ही यहां पहुंचने के लिए विचार करें।
यह है पहुंच मार्ग

रायपुर चंद्रपुर राज्य मार्ग में राजनांदगांव जिला मुख्यालय से अंबागढ़ पहाड़ी की दूरी करीब 65 किमी है। राजनांदगांव से डोंगरगांव, कुमरदा, घुपसाल, बांधा बाजार के बाद अंबागढ़ चौकी से बांयी ओर मोहला रोड में बिहरीकला ग्राम से दाहिने ओर ग्राम पिपरखार-दूर्रेटोला पहुंच मार्ग में कच्ची-पक्की सड़क को पार करते हुए करीब 2 किमी भुरभुसी ग्राम की ओर चलने पर मां अम्बे और भगवान शिव धाम है। यह स्थान ग्राम दूर्रेटोला और भुरभुसी के बीच स्थित है। मिली जानकारी के अनुसार राजस्व रिकार्ड में अंबागढ़ चौकी का नाम नहीं है। वहीं दानीटोला व करपीभर्री को वीरान ग्राम दर्ज किया गया है। पहाड़ी से ही लगा चर्चित मोंगरा बैराज है, जिसका मनमोहक दृश्य उपर पहाड़ी से देखा जा सकता है। बता दें कि गूगल मैप में इस स्थान को सर्च करने के लिए मां अंबेश्वरी टाइप करने पर लोकेशन मिल जाएगा।
ऐसे पड़ा अंबागढ़ चौकी का नाम

अंबागढ़ चौकी राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से ख्याति प्राप्त स्थान है। इस क्षेत्र में पूरे रास्ते अनेक शिव मंदिर, कान्हे मंदिर, दंतेश्वरी मंदिर आदि के दर्शन होते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी तथा वर्तमान में अंबागढ़ चौकी जनपद के जनपद सदस्य ने बताया कि मां अंबे के नाम पर ही अंबागढ़ चौकी का नामकरण हुआ है। उन्होंने बताया कि घटना के बाद राज परिवार कई स्थानों में भटकता रहा और अंतत: वे चौकी गांव में आकर बसे तथा बैगा पुजारी से सलाह के बाद वंशजों की सुरक्षा को देखते हुए अपनी आराध्य देवी के साथ चौकी ग्राम में आकर बस गए, जिसके बाद से ही ग्राम चौकी अंबागढ़ चौकी के नाम से जाना जाने लगा। वहीं यह भी मान्यता है कि मां अम्बे किले अर्थात गढ़ में निवास करने वाले राजपरिवार की आराध्य देवी है।
दिखता है भगवान शिव का चमत्कार

अंबागढ़ पहाड़ी में मां पार्वती के साथ भगवान शिव की अर्धनारीश्वर की मूर्ति विराजमान है। यह स्थान दर्शनार्थियों के लिए बेहद महत्व रखता है। मंदिर के मुख्य पुजारी फत्तेसाय किरंगे ने बताया कि राजनांदगांव निवासी मधुबाला देवांगन के परिवार की एक बच्ची अनन्या देवांगन जीवन मृत्यु के बीच संधर्ष कर रही थी, जिसका इलाज जगदलपुर में जारी था। इस दौरान उसके ध्यान में मां अम्बे का स्मरण हुआ और धीरे-धीरे ठीक हो गई। जिसके बाद से उनका पूरा परिवार प्रदेश के विभन्न स्थानों में मंदिर को ढूंढता रहा, लेकिन वह स्थान प्राप्त नहीं हुआ, जिसके बाद इस बात की चर्चा डोंगरगढ़ निवासी साहू परिवार से हुई जिनके सदस्य देवांगन और किरंगे दोनों को ही जानते थे, उन्होंने भगवान शिव और मां अम्बे के दरबार में देवांगन परिवार को ले आए और जैसे ही वे पहाड़ी के नजदीक पहुंचे उस बच्ची ने पूरा विवरण बता दिया कि इस स्थान में शिव मंदिर, मां पार्वती का मंदिर, गुफा, तालाब, भगवान राम लक्ष्मण की प्रतिमा जो गुफा में विराजमान है आदि का स्पष्ट उल्ल्ेख कर दिया। जिस पर मुहर लगाते हुए मंदिर के मुख्य पुजारी ने उसकी बातों को प्रमाणित कर दिया। यह घटना सामन्य लोगों को आश्चर्यचकित कर सकती है कि ध्यान में ही बच्ची ने जो देखा था वह आज आखों के सामने प्रकट स्थिति में है।
आती है डमरू की आवाज

पहाड़ी में और भी अद्भुत चमत्कार देखने को मिला जहां तालाब के किनारे समतल स्थिति में फैले पहाड़ी क्षेत्र के एक खास स्थान पर पत्थर से डमरू की आवाज आती है। वहीं इस संबंध में चर्चा करने पर मोखन ने बताया कि गुफाओं में भी ऐसे और पत्थर हैं जिन्हें लकड़ी या पत्थर से चोट करने पर आवाज आती है। मंदिर समिति और संरक्षकों के द्वारा इस डमरू पत्थर को एक धरोहर के रूप में सहेजना और सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मदारी है।
मां अम्बे की पूजा के बाद ही होता है दशहरा

मां अम्बे का धाम वैसे ही चमत्कारी और आस्था से परिपूर्ण होता है। मंदिर के पुजारी किरंगे ने बताया कि अंबागढ़ की आराध्य देवी मां पार्वती के पूजन अर्चन के बाद ही दशहरे का पर्व मनाया जाता है। वे बताते हैं कि राजपरिवार के वंशज आज भी मां अम्बे की शरण में आकर चैत्र और क्वांर नवरात्र में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करते हैं और नवाखाई का पहला भोग भी यहीं लगता है। वहीं दशहरे की पूजा पहले यहां की जाती है, जिसमें मां अम्बे के साथ-साथ गुफा में विराजमान भगवान राम लक्ष्मण तथा रखे अस्त्र-शस्त्र की विधिविधान से पूजा पश्चात शाही सवारी द्वारा दशहरा पर्व मनाने तथा रावण वध का कार्यक्रम किया जाता है। पुजारी व बैगा ने बताया कि गुुफा में रखे अस्त्र-शस्त्र की पूजा के लिए मां अम्बे आदेश देती है, उसके बाद ही वहां तक पहुंचा जा सकता है। वहीं कार्तिक पूर्णिमा के दौरान देवांगन परिवार के द्वारा मंदिर प्रांगण में भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।
अंधेरी गुफाओं का है जाल

अंबागढ़ पहाड़ी में अंधेरी गुफाओं का जाल बिछा हुआ है। बड़े-बड़े पत्थरों के बीच संकरे रास्ते के बाद खुली जगह और फिर कई रास्तों में घोर अंधकार के बीच अन्य गुफाओं तक पहुंचने का रास्ता है। इस पहाड़ी में करीब 4 से 5 किमी के क्षेत्र में इन गुफाओं का निर्माण प्रकृति ने किया है। जहां युद्ध के दौरान राज परिवार यहां रहते थे। जब हम गुफाओं के भ्रमण में थे उस समय पुजारी ने एक ऐसा स्थान दिखाया जहां से राजा अपनी मंडली के साथ बैठकर विचार विमर्श करते थे। वहीं कुछ दूर आगे जाने पर शस्त्रागार का रास्ता दिखा किन्तु वहां तक पहुंचने से जानकारों ने साफ मना कर दिया। इन रास्तों में आगे बढऩे पर योद्धाओं के टारगेट प्वाइंट भी मिले जहां से दुश्मनों पर नजर रखी जाती थी। इन पहाड़ों के बीच और चारों ओर कई छोटे-बड़े तालाब आज भी मौजूद हैं। वहीं प्राचीन शिव मंदिर के तालाब के पास कुछ वर्षों पहले नाग-नागिन का जोड़ा एक साथ देखा गया था, जिनकी प्रतिमा बनाकर वहां पूजा पाठ किया जाता है। हालांकि नाग-नागिन की प्रतिमा वर्तमान में खंडित हो चुकी है। किरंगे ने बताया कि यहां बेहद संकरा और अंधेरी गुफा है जहां केवल जानकारों के साथ ही जाया जा सकता है और जंगली जानवरों के खतरे को देखते हुए उस स्थान पर शाम 6 बजे के बाद आने-जाने या रूकने की मनाही है।
पत्थरों की विचित्रता करती है अचंभित

पहाड़ों में ऊंचे-ऊंचे पत्थर कई प्रकार की आकृतियों में देखी जा सकती है। पहाड़ों की ऊंचाई में रखे पत्थर अलग-अलग दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं। कई ऐसे भारी भरकम चट्टान हैं, जिन्हे देखने से ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें किसी के द्वारा खास तरीके से जमाकर रखा गया है, जो किसी इंसान के द्वारा ना तो चढ़ाया जा सकता है और न ही रचा जा सकता है। पहाड़ी के एक छोर में शिवलिंग और दूसरे छोर में नंदी का रूप दिखाई देता है। वहीं नीचे से देखने पर यह पत्थर घोड़े के मुख की आकृति प्रदर्शित करती है। एक चट्टान ऐसा भी है जो छोटे से आधार पर खड़ा है, जिसकी ऊंचाई करीब 20 फीट तथा 25 फीट के घेरे में है, जो बगैर सहारा के खड़ा है और ऐसा लगता है कि यह थोड़ा सा धक्का देने पर गिर जायेगा लेकिन कई लोगों के द्वारा मिलकर भी इस पत्थर को टस से मस नहीं किया जा सकता। इस चट्टान के उपर की आकृति नीचे से देखने पर नाग फन उठाये हुए दिखाई देता है।
वास्तुकला का बेजोड़ नमूना उकेरा गया है पत्थरों में

इन पहाड़ों में शरण लिए उन राजा महाराजाओं के युद्ध कौशल को पत्थरों में अंकित किये गए हैं जिन्हे पत्थरों में उकेरा गया है। पत्थरों में इन कलाओं को तब सजाया गया जब ऐसे औजार नहीं थे जिनसे बारीक से बारीक और बेहद साफ कार्य किया जा सके। लेकिन इन प्रतिमाओं को देखने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि उस समय की कला कितनी उन्नत रही होगी, जिन्हें आज सहेजने की आवश्यकता है। इस स्थल के संरक्षक ने बताया कि ये मूर्तियां कितनी पुरानी है, इसे किसने बनाया और कब बनाया यहां कब से हैं। इसके संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि मूर्तियां भूमियार की हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी यहां रखी गई है। वर्तमान में जो मूर्ति है वह लालभीष्म देव की है तथा राजवंश के समाधि की प्रतिमाएं यहीं रखी जाती है। इन प्रतिमाओं में उकेरे गए चित्रों के अनुसार भगवान शिव और मां अम्बे का रूप दर्शाया गया है इसके साथ ही घुड़सवार योद्धा, शाही सवारी रैली, तलवार और भाला सहित अन्य चित्र मौजूद हैं। इन स्थानों को पूरातत्व विभाग द्वारा भी सहेजा और संरक्षित किया जाना चाहिए जहां सर्वे के दौरान निश्चित रूप से अन्य शैलाकृति और इतिहास से जुड़ी अन्य जानकारी मिलेंगी।
पर्यटन और फिल्म सूटिंग प्वाइंट है अंबागढ़

अंबागढ़ पहाड़ी काफी प्रसिद्ध और चर्चित स्थल है। जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं तो हैं ही साथ ही यहां का मनोरम दृश्य फिल्म की सूटिंग के लिए बेहतर साबित हो सकता है। इस स्थान में हर मौसम में अलग-अलग और अलौकिक आनंद देने वाला नजारा देखने को मिलता है। जनपद सदस्य फत्तेसाय ने बताया कि यहां छत्तीगढ़ी फिल्म ‘प्रेम सुमनÓ की भी सूटिंग हुई है। जिसमें पहाड़ी, मंदिर, तालाब सहित मंदिर और गांव के लोगों को शामिल किया गया है। यह स्थान हर वर्ग को अपनी ओर आकर्षिक करता है, किन्तु यहां उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने के चलते असामाजिक तत्वों का डेरा रहता है जो कई प्रकार के गलत और आपत्तिजनक कृत्य को अंजाम देते है। मंदिर समिति ने शराब पीकर आने की पूर्ण मनाही की है, लेकिन कई लोग इन नियमों का उल्लंघन करते हैं। क्षेत्र के जनप्रतिनिधि ने बताया कि यहां वर्तमान में पुलिया का निर्माण कार्य कराया जा रहा है और पक्की रोड भी बनने वाली है तथा इस स्थान को सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। इन धरोहरों को बचाने के लिए शासन प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए।
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