लगातार दुकानें बंद होने से सताने लगी चिंता
यहां नगरपालिका द्वारा संचालित पुराना रोपवे के पास स्थित दुकानदारों का बुरा हाल है। पीपल पेड़ के नीचे बसे ये दुकानदार नारियल प्रसाद बेचकर अपनी जीविका चला रहे थे और पीपल के सुखे पत्तों की तरह ये दुकानदार भी अपने व्यवसाय से अलग हो चुके है। जबकि पिछले दिनों इस महामारी के चलते डोंगरगढ़ का मेला नहीं हो पाया और प्रभावित दुकानदारों के सामने संकट की घड़ी आ गई जहां इसी मेले के भरोसे नगर का व्यापार भी चलता था। छोटे दुकानदारों के साथ ही बड़े व्यापारी भी नौ दिनों के इस मेले में व्यापार कर अपनी जीविका चलाते थे।
यहां नगरपालिका द्वारा संचालित पुराना रोपवे के पास स्थित दुकानदारों का बुरा हाल है। पीपल पेड़ के नीचे बसे ये दुकानदार नारियल प्रसाद बेचकर अपनी जीविका चला रहे थे और पीपल के सुखे पत्तों की तरह ये दुकानदार भी अपने व्यवसाय से अलग हो चुके है। जबकि पिछले दिनों इस महामारी के चलते डोंगरगढ़ का मेला नहीं हो पाया और प्रभावित दुकानदारों के सामने संकट की घड़ी आ गई जहां इसी मेले के भरोसे नगर का व्यापार भी चलता था। छोटे दुकानदारों के साथ ही बड़े व्यापारी भी नौ दिनों के इस मेले में व्यापार कर अपनी जीविका चलाते थे।
शासन-प्रशासन से क्षतिपूर्ति राशि देने उठने लगी है मांग
छोटे दुकानदारों के साथ ही बड़े व्यापारी भी कश्मकश में है कि अपने पुराने दिन कैसे आएंगे। जहां छोटे दुकानदार मेले में दुकान की कमाई से आने वाले छ:महीनों के लिए राशन एवं अन्य जरूरी सामग्री व सामाजिक कार्यो को संपादित करते थे जो कि बंद हो चुका है। इन दुकानदारों ने शासन-प्रशासन से क्षतिपूर्ति की मांग की है किंतु शासन-प्रशासन वर्तमान स्थिति में पका भोजन एवं सुखा राशन देने तक ही सीमित है। यदि लॉकडाउन आगे बढ़ जाता है तो दुकानदारों सहित शासन-प्रशासन को भी सोचना पड़ेगा कि इन परिवारों की पूर्ति कहां तक और कब तक कर पाएंगे।
छोटे दुकानदारों के साथ ही बड़े व्यापारी भी कश्मकश में है कि अपने पुराने दिन कैसे आएंगे। जहां छोटे दुकानदार मेले में दुकान की कमाई से आने वाले छ:महीनों के लिए राशन एवं अन्य जरूरी सामग्री व सामाजिक कार्यो को संपादित करते थे जो कि बंद हो चुका है। इन दुकानदारों ने शासन-प्रशासन से क्षतिपूर्ति की मांग की है किंतु शासन-प्रशासन वर्तमान स्थिति में पका भोजन एवं सुखा राशन देने तक ही सीमित है। यदि लॉकडाउन आगे बढ़ जाता है तो दुकानदारों सहित शासन-प्रशासन को भी सोचना पड़ेगा कि इन परिवारों की पूर्ति कहां तक और कब तक कर पाएंगे।