2010 में वह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के नाडेकल जंगल में माओवादियों के सशस्त्र विंग केकेके (कोरची, कुरखेड़ा खोब्रामेढ़ा) एरिया कमेटी से सीसीएम दीपक उर्फ मिलिंद तेलतुम्बड़े का गार्ड बना। 2013 से २०१६ तक वह दीपक का गार्ड रहा। 2016 में उसने दर्रेकसा में फिल्ड की ट्रेनिंग ली। २०१६ में नंदू सीसी को-आर्डिनेशन कमेटी का एरिया कमेटी सचिव बना और उसे फिर से शहरों में काम करने के लिए नागपुर भेज दिया गया। नंदू जंगलों में मूवमेंट के दौरान इंसास रायफल साथ रखता था।
सरेंडर करने की वजह बताते हुए नंदू ने कहा कि भाकपा (माओवादी) में आंध्र्रप्रदेश के नक्सली नेताओं का वर्चस्व है और वे गढ़चिरौली व छत्तीसगढ़ के कैडर को निचले स्तर पर रखकर सिर्फ लडऩे के लिए इस्तेमाल करते हंै। नंदू ने कहा कि नक्सली खुद को आदिवासी व दलित जनता का हितैषी कहते हैं लेकिन वे आर्थिक और शारीरिक शोषण का काम करते हैं। सरेंडर नक्सल दम्पत्ति ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर दोनों ने मुख्य धारा में लौटने का फैसला लिया है।
नंदू के साथ सरेंडर करने वाली उसकी पत्नी कमला कुछ समय पहले सरेंडर कर चुके हार्डकोर नक्सली पहाड़ सिंह के साथ काम कर चुकी है। कमला 2009 में नक्सल संगठन में शामिल हुई थी। 2010 तक उसने परमिली एरिया कमेटी में काम किया। 2013 तक अहेरी ऐरिया कमेटी में काम करने के बाद उसे एसजेडसीएम नर्मदा का गार्ड बनाया गया। यहां वह 2016 तक रही। इसके बाद 2018 तक कमला ने डीव्हीसीएस पहाड़ सिंह के साथ सीसीएम स्टॉफ के रूप में काम किया। 2018 से अब तक वह सीसीएम को-आर्डिनेशन कमेटी का सदस्य रहते हुए शहरों में काम किया। जंगलों में मूवमेंट के दौरान वह १२ बोर की बंदूक रखती थी।
आईजी दुर्ग रेंज रतनलाल डांगी ने कहा कि जंगलों में आम लोगों का शोषण करने वाले नक्सलियों की विचारधारा को छोड़कर मुख्य धारा में दो और नक्सलियों ने लौटने का फैसला किया है। मुख्य धारा में लौटने वालों को पुनर्वास नीति के तहत मिलने वाली सुविधाएं मिलेंगी।