सात सदस्यीय निर्णायक समिति ने किया चयन
जहां विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ। सात सदस्यीय निर्णायक समिति ने सर्वश्रेष्ठ भोजली का चयन किया। पुरस्कार वितरण बाद गांव के भूमियार देवता का परिक्रमा कर कतार से शिव तालाब में विसर्जित किया गया। विसर्जन के पश्चात गाँव की महिला पुरुष एक दूसरे के कान में भोजली खोंच कर पर्व की बधाई दिए। कार्यक्रम में बिजेलाल साहू, टीकम साहू, रामप्रसाद साहू, भीखम साहू, नेमीचंद वर्मा, प्रताप दास वैष्णव, राधे वर्मा, पूनाराम धनकर, सुखदेव साहू, ओमकार साहू, भावेश वर्मा, अशोक तिवारी, रूपेन्द्र वर्मा, आशीष वर्मा आदि उपस्थित थे।
जहां विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ। सात सदस्यीय निर्णायक समिति ने सर्वश्रेष्ठ भोजली का चयन किया। पुरस्कार वितरण बाद गांव के भूमियार देवता का परिक्रमा कर कतार से शिव तालाब में विसर्जित किया गया। विसर्जन के पश्चात गाँव की महिला पुरुष एक दूसरे के कान में भोजली खोंच कर पर्व की बधाई दिए। कार्यक्रम में बिजेलाल साहू, टीकम साहू, रामप्रसाद साहू, भीखम साहू, नेमीचंद वर्मा, प्रताप दास वैष्णव, राधे वर्मा, पूनाराम धनकर, सुखदेव साहू, ओमकार साहू, भावेश वर्मा, अशोक तिवारी, रूपेन्द्र वर्मा, आशीष वर्मा आदि उपस्थित थे।
देर शाम किया गया विसर्जन
उपरवाह. छत्तीसगढ़ के प्रथम त्योहार हरेली के दिन भोजली बोया जाता है। नौ दिन पश्चात भाद्र पक्ष के एकम तिथि को इसका विधि विधान के साथ गांव की गलियों का भ्रमण के साथ देर शाम शीतला माता की तालाब में विसर्जित किया गया। लोधी बहुल क्षेत्र में विशेष रूप से लगभग सभी घरों में भोजली बोया जाता है।भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धानए गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे भुजरियां कहते हैं। इन्हें अलग.अलग प्रदेशों में इन्हें श्फुलरियाृए श्धुधियाृए श्धैंगाृ और जवारा या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं।
उपरवाह. छत्तीसगढ़ के प्रथम त्योहार हरेली के दिन भोजली बोया जाता है। नौ दिन पश्चात भाद्र पक्ष के एकम तिथि को इसका विधि विधान के साथ गांव की गलियों का भ्रमण के साथ देर शाम शीतला माता की तालाब में विसर्जित किया गया। लोधी बहुल क्षेत्र में विशेष रूप से लगभग सभी घरों में भोजली बोया जाता है।भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धानए गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे भुजरियां कहते हैं। इन्हें अलग.अलग प्रदेशों में इन्हें श्फुलरियाृए श्धुधियाृए श्धैंगाृ और जवारा या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं।