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गांव के महिला-पुरुषों ने एक-दूसरे को किया भोजली भेंट

locationराजनंदगांवPublished: Aug 16, 2019 10:27:23 pm

Submitted by:

Nakul Sinha

परम्परा: लोक पर्व व संस्कृति को जीवंत बनाए रखने की पहल

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सर्वश्रेष्ठ… सात सदस्यीय निर्णायक समिति ने किया सर्वश्रेष्ठ का चयन।

राजनांदगांव / तुमड़ीबोड. लोक पर्व व संस्कृति को जीवंत बनाए रखने के उद्देश्य से सावन पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन आयोजित होने वाले भोजली प्रतियोगिता का आयोजन समाज सेवी संस्था आदर्श नवयुवक मंडल बोदेला द्वारा किया गया। जिसमें प्रथम जयश्री साहू, द्वितीय ओमलता वर्मा, तृतीय उर्मिला साहू, चतुर्थ सालिनी श्रीवास, पंचम धनिका वर्मा, षष्ठम कुमकुम वर्मा, सप्तम हिमानी साहू, अष्टम दीक्षा साहू को प्रदान किया गया। पुरस्कार वितरण के अतिथि निर्मला सिन्हा जनपद सदस्य, सुरेन्द्र लिल्हारे सरपंच बोदेला, कांति लिल्हारे पूर्व सरपंच, अमरनाथ साहू, शांति वर्मा थे जिनके करकमलों से पुरस्कार प्रदान किया। संस्था के अध्यक्ष हेमंत साहू ने बताया कि संस्था आदर्श नवयुवक मंडल यह आयोजन विगत 25 वर्षों से आयोजित करते आ रही है और इसे सतत जारी रखने के लिए संस्था संकल्पित है। भोजली पर्व के प्रति गांव में विशेष उत्साह रहता है। आज बाजे गाजे के साथ गांव के गली का भ्रमण करते हुए घर-घर से भोजली निकाल कर गांव के बीच दुर्गा चौक पर एकत्रित किया गया।
सात सदस्यीय निर्णायक समिति ने किया चयन
जहां विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ। सात सदस्यीय निर्णायक समिति ने सर्वश्रेष्ठ भोजली का चयन किया। पुरस्कार वितरण बाद गांव के भूमियार देवता का परिक्रमा कर कतार से शिव तालाब में विसर्जित किया गया। विसर्जन के पश्चात गाँव की महिला पुरुष एक दूसरे के कान में भोजली खोंच कर पर्व की बधाई दिए। कार्यक्रम में बिजेलाल साहू, टीकम साहू, रामप्रसाद साहू, भीखम साहू, नेमीचंद वर्मा, प्रताप दास वैष्णव, राधे वर्मा, पूनाराम धनकर, सुखदेव साहू, ओमकार साहू, भावेश वर्मा, अशोक तिवारी, रूपेन्द्र वर्मा, आशीष वर्मा आदि उपस्थित थे।
देर शाम किया गया विसर्जन
उपरवाह. छत्तीसगढ़ के प्रथम त्योहार हरेली के दिन भोजली बोया जाता है। नौ दिन पश्चात भाद्र पक्ष के एकम तिथि को इसका विधि विधान के साथ गांव की गलियों का भ्रमण के साथ देर शाम शीतला माता की तालाब में विसर्जित किया गया। लोधी बहुल क्षेत्र में विशेष रूप से लगभग सभी घरों में भोजली बोया जाता है।भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धानए गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे भुजरियां कहते हैं। इन्हें अलग.अलग प्रदेशों में इन्हें श्फुलरियाृए श्धुधियाृए श्धैंगाृ और जवारा या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं।
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