scriptपत्रिका बनी आवाज – पत्रिका की मदद से भंवरलाल को मिला नया जीवन | Bhanwar got new life with the help of Rajasthan Patrika | Patrika News

पत्रिका बनी आवाज – पत्रिका की मदद से भंवरलाल को मिला नया जीवन

locationराजसमंदPublished: Mar 06, 2020 09:03:03 pm

Submitted by:

Rakesh Gandhi

– जीने की उम्मीद छोड़ चुका था भंवर – भामाशाहों की मदद से हुई किडनी ट्रांसप्लांट- अब वह किडनी की बीमारी से ग्रस्त दूसरे मरीजों की कर रहा सहायता

पत्रिका बनी आवाज - पत्रिका की मदद से भंवरलाल को मिला नया जीवन

पत्रिका बनी आवाज – पत्रिका की मदद से भंवरलाल को मिला नया जीवन

राकेश गांधी
राजसमंद. ‘मैं दो-तीन साल से किडनी की समस्या से परेशान था। डायलिसिस में हजारों रुपए खर्च हो रहे थे। घर की स्थिति भी अच्छी नहीं थी। आखिर राजस्थान पत्रिका मेरे लिए ‘भगवानÓ बनकर मेरे सामने आई। मुझे फिर से जीने की उम्मीद जगी और जीवन के साथ जीने की राह भी मिली। आज मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं।Ó
ये कहना है कुम्हारिया खेड़ा के भंवरलाल रेगर का, जो कभी किडनी की समस्या से ग्रस्त था। जीने की उम्मीद छोड़ चुका था। वह आज राजस्थान पत्रिका को प्रेरणा मान कर खुद किडनी मरीजों की सेवा में जुटा है। भंवर कहता है, ‘मेरा जीवन मुश्किल से बचा है, अब मैं मेरे प्रयास से ऐसे हर मरीज की मदद की कोशिश करूंगा।Ó
वे बताते हैं, ‘मैं उस समय 11वीं (बायो) का छात्र था। पढ़ाई में भी अच्छा था। अचानक तबीयत खराब रहने लगी। चिकित्सकों को दिखाया तो उन्होंने पूरी जांचें करवार्ई। जांच में पता चला कि किडनी खराब है। डाक्टरों की सलाह पर डायलिसिस चलता रहा। हर माह हजारों रुपए खर्च हो रहे थे। किसी तरह दो-तीन साल निकले। इसी दौरान मुझे मेरे गांव के जितेन्द्र नाम के वकील साहब ने राजसमंद में राजस्थान पत्रिका से सम्पर्क करने का सुझाव दिया। उस दौरान मेरी बाइक तक बिक चुकी थी। मेरी स्थिति बहुत खराब थी। राजस्थान पत्रिका आया तो यहां आते ही मेरी मदद शुरू हो गई। पत्रिका के साथियों ने न केवल खबर प्रकाशित की, बल्कि पत्रिका के जरिए कई भामाशाहों को मेरी मदद के लिए जुटाया। न जाने कितने हाथ मेरी मदद को बढ़ते गए। आखिर अहमदाबाद में मेरी मां की किडनी मेरे शरीर में ट्रांसप्लांट हुई। उस दौरान चार-पांच बड़े भामाशाह भी मेरे साथ हुए, लेकिन मैं उन सभी का साधुवाद देता हूं, जिन्होंने मेरी मदद की और मेरा ऑपरेशन हो सका। ऑपरेशन को आज दो साल हो चुके हैं और चौबीस साल की अवस्था में स्वस्थ हूं। हालांकि इस बात का जरूर मलाल है कि मेरी पढ़ाई छूट गई, आज मैं मोबाइल रिपेयरिंग के जरिए अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा हूं। मैं मेरे छोटे भाई और मां के साथ रहता हूं।Ó
उसने कहा, ‘साहब, पत्रिका ने मेरी मदद की। उससे आज मुझमें भी प्रेरणा जगी है। मैं आज किसी भी किडनी मरीज की मदद को तत्पर रहने की कोशिश करता हूं। हालांकि आर्थिक रूप से भले ही मैं किसी की मदद नहीं कर सकता, पर उनके साथ कहीं भी जाने को तैयार रहता हूं।Ó
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो