शत्रुंजय बताते हैं कि हमें विरासत में मिले प्राकृतिक ज्ञान और पक्षियों की पहचान, उनके निवास, खाने-पीने के तरीकों व मौसम के अनुकूल उनकी मौजूदगी की जानकारी रखनी होगी। वह बताते हैं कि पक्षी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिनमें पेड़ पर रहने वाले, पानी के तीर पर रहने वाले, पानी के अंदर रहने वाले और भोजन के आधार पर भी इन्हें पहचाना जाता है। कुछ पेड़ों पर भोजन करते हैं, कुछ जमीन पर रहकर, कुछ पानी के किनारे व कुछ पानी के अंदर भोजन करते हैं। इन्हीं विशेषताओं के आधार पर हम इन्हें पहचान सकते हैं। पक्षियों की पहचान उनकी आवाज व उड़ान के आधार पर भी होती है।
एक नई चिडिय़ा, जो आती है दक्षिण अफ्रीका से
शत्रुंजय सिंह ने नई चिडिय़ा के बारे में बताया कि यह मानसून बर्ड, सुगन चिडिय़ा, चितकबरा कोयल और पाइड क्रिट्रस्टेड कोयल भी कहलाती है। प्राचीन भारत में इसे चातक नाम से भी जाना जाता रहा। यह मानसून से 21 दिन पहले दक्षिण अफ्रीका के मेडागास्कर से यहां आती है। भारतीय पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र है। प्रसिद्ध कवि कालिदास ने अपनी प्रमुख रचना मेघदूत में इसे गहरी लालसा के रूपक के रूप में वर्णित किया। यह पक्षी प्यास बुझाने बारिश का इंतजार करता है। सुबह जल्दी मेजबान के घोसले में अंडे देता है। देवगढ़ में चकवा-चकवी कश्मीर से आते हैं।
कालीघाटी व साथपालिया दिवेर के जंगलों में दिखाई देती है शर्मिला पक्षी उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत से एक चिडिय़ा अरावली की पहाडिय़ों में आती है, जिसे इंडियन पिटा कहते हैं। इसकी आवाज बहुत तेज होती है। यह मई-जून के महीने में यहां आती है। अरावली की कालीघाटी व साथपालिया-दिवेर के जंगलों में दिखाई देती है। यह शर्मिला पक्षी दो स्वर वाली सिटी बजाता है। सुबह-शाम इसे सुना जा सकता है। मार्च चल रहा है।
गर्मियों में बनाने होंगे वॉटरहॉल
शत्रुंजय सिंह ने नई चिडिय़ा के बारे में बताया कि यह मानसून बर्ड, सुगन चिडिय़ा, चितकबरा कोयल और पाइड क्रिट्रस्टेड कोयल भी कहलाती है। प्राचीन भारत में इसे चातक नाम से भी जाना जाता रहा। यह मानसून से 21 दिन पहले दक्षिण अफ्रीका के मेडागास्कर से यहां आती है। भारतीय पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र है। प्रसिद्ध कवि कालिदास ने अपनी प्रमुख रचना मेघदूत में इसे गहरी लालसा के रूपक के रूप में वर्णित किया। यह पक्षी प्यास बुझाने बारिश का इंतजार करता है। सुबह जल्दी मेजबान के घोसले में अंडे देता है। देवगढ़ में चकवा-चकवी कश्मीर से आते हैं।
कालीघाटी व साथपालिया दिवेर के जंगलों में दिखाई देती है शर्मिला पक्षी उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत से एक चिडिय़ा अरावली की पहाडिय़ों में आती है, जिसे इंडियन पिटा कहते हैं। इसकी आवाज बहुत तेज होती है। यह मई-जून के महीने में यहां आती है। अरावली की कालीघाटी व साथपालिया-दिवेर के जंगलों में दिखाई देती है। यह शर्मिला पक्षी दो स्वर वाली सिटी बजाता है। सुबह-शाम इसे सुना जा सकता है। मार्च चल रहा है।
गर्मियों में बनाने होंगे वॉटरहॉल
मौजूदा महीने में जंगल में पानी की बहुत कमी है। पक्षियों को पानी चाहिए। जंगल में छोटे-छोटे वॉटरहाल बनाने चाहिए। शत्रुंजय कहते हैं कि वन विभाग को पक्षी दर्शन कार्यक्रम रखना चाहिए, जिससे आमजन में इनके संरक्षण के प्रति लगाव उत्पन्न हो। प्रतिदिन अपने पसंदीदा स्थान पर पक्षियों को देखने के लिए समय व्यतीत करें और उनको पहचानने की कोशिश करें। देवगढ़ राघव सागर तालाब पर करीब 48 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते है।