राजसमंद

जिस घर में महिला का सम्मान, वहां हर रोज दिवाली

संदर्भ – वाइफ एप्रीसिएशन-डे आज

राजसमंदSep 20, 2020 / 12:33 am

Rakesh Gandhi

जिस घर में महिला का सम्मान, वहां हर रोज दिवाली

राकेश गांधी
राजसमंद. किसी घर में खुशनुमा माहौल हो तो उस घर में रोज दिवाली सा नजारा रहता है। इस खुशी में बच्चों के साथ ही खुश रहने वाली महिलाओं का योगदान ज्यादा होता है। अब ये वातावरण कैसे बने? इसके लिए जरूरी है घर चलाने वाली महिला का घर में पूरा सम्मान। हालांकि ये स्पष्ट कर देते हैं कि कोई भी महिला किसी की प्रशंसा या सम्मान की मोहताज नहीं होती, बल्कि वे बिना स्वार्थ के अपने परिवार की खुशियों के लिए अपना शत-प्रतिशत योगदान देती हैं। हां, इतना जरूर है कि वह अपने जीवन में अपने परिजनों से जरूर दो बोल प्रशंसा या सम्मान के सुनना चाहती है। वर्तमान में कोरोना काल में सर्वाधिक चुनौती घर चलाने की आ रही है। महिलाओं ने हर परिस्थिति में अपने घर को बेहतरीन ढंग से चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे में ये महिलाएं सिर्फ सम्मान के दो बोल से खुश हो जाती है। बीस सितम्बर को वाइफ एप्रीसिएशन-डे पर हमने प्रशंसा या सम्मान कितना जरूरी है, इस विषय पर जिले के कुछ लोगों से बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश –
क्या होता है जब इंसान खुश होता है
शरीर विभिन्न रसायनों से बना है। अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग रसायनों का स्राव होता रहता है। इससे इंसान के स्वस्थ व अस्वस्थ होने का सिलसिला चलता रहता है। खुशी भी एक परिस्थिति है जो अक्सर प्रशंसा या अच्छे साथ से मिलती है। लेखिका लॉरेटा ब्रुनिंग अपनी किताब ‘मीट यॉर हैप्पी कैमिकल्स’ में कुछ ऐसे ही खुशी देने वाले रसायनों का जिक्र करती है, जिनसे दिमाग ‘फीलगुड’ रसायनों का स्राव करता है। ऑक्सीटोसिन, एंडोॢफन, डोपामिन, सेरोटोनिन जैसे रसायनों के स्राव से उस इंसान में विश्वास, लगाव, दृढ़ता, उत्साह, प्रेरणा, सुरक्षा व सम्मान का भाव पैदा होता है। इससे उनमें कभी निराशा भाव नहीं पैदा होता। यदि किसी इंसान की प्रशंसा की जाती रहे तो इस तरह के कई रसायन उस इंसान को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
हर दिन सम्मान की हकदार
शादी से पहले लड़की की जिंदगी बिल्कुल अलग होती है। वह एक आजाद पंछी की तरह होती है, जिसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। उसकी हर चीज उसकी अपनी पसंद व नापसंद से ही होती है। अपने मां-बाप की ये परी दुनिया की हर चिंता से बेफिक्र अपनी हसीन दुनिया में खोई रहती है। लेकिन, शादी होते ही उस परी की जिन्दगी बदल जाती है। शादी के अगले दिन से ही वह पत्नी, बहू, भाभी या अन्य कई सारी भूमिकाओं में आ जाती है। जिसे वह बड़ी सहजता से निभाने लगती है। एक पत्नी की भूमिका में वह एक ऐसे व्यक्ति के साथ तन-मन से जुड़ जाती है, जिसे शायद कल तक वह जानती भी नहीं थी। पत्नी एक पति के लिए सबकुछ होती है। एक पत्नी ही होती है जिससे वह हर बात खुलकर कर सकता है। सुख-दु:ख में साथ निभाने वाली जीवनसंगिनी उसके परिवार, उसके भविष्य व आने वाली पीढिय़ों की जड़ होती है। बदलते परिवेश में ये पत्नी अब घर से बाहर निकलकर पति के हाथों को आर्थिक मजबूती प्रदान करने लगी है। लेकिन, घर की जिम्मेदारियों का भी वह बखूबी ख्याल रखती है। शादी के बाद पुरुष अपनी पत्नी के बगैर बहुत दिनों तक नहीं रह सकते, क्योंकि पत्नी के रहने से उसका जीवन सुचारू रूप से चलता है। केवल एक दिन ही क्यों, पत्नी तो हर दिन अपने पति व परिवार के अन्य सदस्यों से सम्मान पाने की हकदार है। फिर भी, इस एक दिन को तो खास व यादगार बनाया जा सकता है। क्योंकि उसने आपके जीवन को अनगिनत खुशियों से महकाया है।
– डॉ. अपराजिता शर्मा, चिकित्सक

सम्मान से ही आनन्द की अनुभूति
भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप स्त्री की संपूर्णता को प्रकट करता है। स्त्री जो नि:स्वार्थ, बिना रुके, बिना थके, अविरल अविराम पति, बच्चों, परिवार के लिए अपनी खुशियां ही नहीं, वरन पूरी जिंदगी ही समर्पित कर देती है। जिस घर आंगन में वह अपने बचपन की शरारतें, किशोरावस्था की उमंग, अल्हड़ सपने, युवावस्था की कामयाबी देखती है, उस हसीन जिंदगी को छोड़कर हंसते-मुस्कुराते ससुराल के घर-आंगन तथा अनजान लोगों को अपना बना कर, उन्हें प्रेम, वात्सल्य, स्नेह करुणा से सराबोर कर देती है। इन सबके बदले में पुरुष द्वारा दिया गया सम्मान व प्रशंसा उसे आत्मबल, आनन्द की अनुभूति तथा सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। स्त्री की प्रशंसा को पुरुष अपने पुरुषत्व की तौहीन न समझ कर पत्नी के प्रति अपना प्रेम समझे। वही प्रेम जो सृजन तथा आनंद का मूल आधार है।
– चावली चौधरी, हिंदी व्याख्याता

सृष्टि की पूर्णता का प्रतीक स्त्री
स्त्री अपने आप में सृष्टि की पूर्णता का प्रतीक है। जीवन के सभी किरदारों को तन्मयता से निभाने वाली स्त्री, सर्वाधिक प्रेम और सम्मान की अधिकारिणी है। एक सच्चे जीवन साथी, हर कदम पर हौसला देने वाली अन्नपूर्णा की तरह, विभिन्न प्रकार के रस हमारे जीवन में बरसाने वाली, हमारी मानसिक परेशानियों पर मरहम लगाने वाली, हमारे बच्चों की प्रथम गुरु, हमारे जीवन की अंतिम गुरु, हमारा कदम-कदम पर हौसला बढ़ाने वाली अर्धांगिनी का हमें जीवन में हौसला बढ़ाना चाहिए। उनके काम में उनका साथ दीजिए। हम अपनी पत्नी को दिल से धन्यवाद ज्ञापित करें, जिनके कारण हमारा गृहस्थ जीवन सकुशल निष्णात हो पाया। ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि ऐसी संपूर्ण जीवन साथी हमारे साथ है।

कुछ उसका भी हक अदा कर दो तुम घर पर
जिसने अपना घर छोड़ा तुम्हारा घर बसाने को

– शिवकुमार व्यास, अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक



‘देना ही देना इनकी
नियति है’

नारी और वृक्ष एक जैसे होते हैं।
खुश हो तो दोनों फूलों से सजते हैं।
दोनों ही बढ़ते और छंटते हैं।
इनकी छांव में कितने लोग पलते हैं।
देना ही देना इनकी नियति है।
औरों की झोली भरना दोनों की प्रकृति है।
धूप और वर्षा सहने की पेड़ की शक्ति है।
दुःख पाकर भी सह लेना नारी ही कर सकती है।
नारी और वृक्ष में एक अबूझ रिश्ता है।
जो दोस्ती से मिलता जुलता है।
पेड़ चाहता है कुछ पानी, कुछ खाद।
नारी चाहती है, सिर्फ प्यार और सम्मान।
– रंजना

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