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Solicitous : बेटे की चाहत में मौत से खेल रहे अभिभावक, नहीं बदल रही सोच

locationराजसमंदPublished: Jul 04, 2019 09:35:25 pm

Submitted by:

laxman singh

आधुनिक समाज में बेटा-बेटी में फर्क की भ्रांति परिवारों में पैदा कर रही क्लेश
Even today, discrimination in the son’s & daughter in society

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Solicitous : बेटे की चाहत में मौत से खेल रहे अभिभावक, नहीं बदल रही सोच

लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद

आधुनिक समाज में बेटा- बेटी (son’s & daughter) के बीच भ्रांति अब परिवार में क्लेश का कारण बन गई है। भले ही हर क्षेत्र में बेटों के मुकाबले बेटियां आगे बढ़ रही है, मगर पुरुषसत्तात्मक समाज में कुछ माता या पिता खुद का गला घोंट रहे हैं, तो कुछ बेटियों को ही मौत के मुंह में धकेलने से नहीं हिचक रहे हैं। बेटा-बेटी में भेदभाव की वजह से दिनोंदिन पति-पत्नी के बीच मतभेद बढ़ रहा है। परिवार का वंश बढ़ाने के लिए बेटे की चाहत रखने वाले परिवार शायद यह नहीं जान पा रहे हैं कि उसके लिए भी बेटी की जरूरत पड़ेगी। कानून की नजर में न सिर्फ बेटा बेटी एक समान है, बल्कि पिता की जायदाद में हर संतान को बराबर का हकदार माना गया। बावजूद लोगों की सोच में बदलाव नहीं हो पा रहा है। यह चौंकाने हालात पिछले दो वर्ष में पुलिस थानों और महिला सलाह सुरक्षा केन्द्र पर दर्ज हुए प्रकरणों में सामने आए हैं। दहेज प्रताडना के ज्यादातर मामलों में महिलाएं परिवार में इसलिए प्रताडि़त है कि उसने पुत्र को जन्म नहीं दिया और बेटी जन्म दे दिया। इससे भी बेटा व बेटी में अन्तर की दकियानूसी सोच सामने आ रही है। बेटे की चाहत में अभिभावक के आत्महत्या करना, गर्भ में बेटी का गला घोंटने या जन्म के बाद बेटी को मारने की घटनाओं ने मानवता का तार तार कर दिया है। (discrimination in the son’s & daughter in society)
हर जगह भेदभाव हो रहा
महिला मंच संयोजक शकुंतला पामेचा ने बताया कि बेटे द्वारा वंश चलाने की बात को भी मैं गलत मानती हूं। क्योंकि दो से तीन पीढ़ी के बाद किसको का क्या पता रहता है। परिवार में हर तरह से बेटा बेटी में भेदभाव है। अगर बेटी बीमार हो जाए, तो आसानी से उसका उपचार तक नहीं करवाते। बेटियों के साथ होने वाली घिनौनी घटनाओं पर त्वरित व सख्त कार्रवाई पुलिस को करनी होगी, तभी इसके सार्थक परिणाम आएंगे।

पत्रिका व्यू : आत्मचिंतन जरूरी
पहले कोख में और अब जन्म लेने के बाद बेटियों का गला घोंटने पर तूला है समाज। यह बेहतर खतरनाक और अवांछनीय है। वक्त रहते इस बारे में कुछ ठोस कदम उठाना जरूरी है। एक सवाल हमेशा मन को कटोचता रहेगा कि कन्या की हत्या धार्मिक बंधन है, सामाजिक कुरीति है या मन की बेटा पाने की लालसा… आत्मचिंतन का विषय है।
केस 1 : आमेट के वार्ड दस में सार्वजनिक महिला शौचालय में 23 फरवरी 18 को पांच माह का भू्रण मिला। पुलिस ने अज्ञात महिला के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया, मगर आज तक भू्रण फेंकनी वाली महिला सामने नहीं आ पाई और न ही उसे सबक मिल पाया।
केस 2 : केलवाड़ा थाना क्षेत्र के कम्बोड़ा के एक बीड़ में जुलाई 2017 में नवजात कन्या को कोई फेंक गया। सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस ने उसे अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद उदयपुर भिजवा दिया। घटना के बाद पुलिस ने प्रसूताओं की सूचीबद्ध कर जांच शुरू की, मगर आज तक खुलासा नहीं हो पाया।
केस 3 : 19 सितम्बर 18 को प्रतापपुरा की महिला की रक्त की कमी के चलते जिला अस्पताल में प्रसव के दौरान मौत हो गई। बेटे की चाहत में महिला की कोख से 9 बेटियां जन्म गई। फिर भी माता-पिता के बेटे की चाहत कम नहीं हुई। एक या डेढ़ वर्ष के अंतराल में एक के बाद एक प्रसव होने से महिला की हालत गंभीर हो गई और आखिर में मृत्यु हो गई।
केस 4 : कामा निवासी हिमुड़ी पत्नी रतनलाल गमेती ने की चाहत में आठ वर्षीय बेटी को खमनोर के पास बनास नदी में फेंक दी। क्या महिला ने किसी के दबाव में बेटी को फेंका था, क्या बेटे की चाहत पूरे परिवार को थी या अन्य कोई कारण। पुलिस को महिला ने दिए प्राथमिक बयान में बेटे की चाहत ही सामने आया है। अभी उसकी हालत गंभीर होने से वास्तविकता साफ नहीं हुई।
केस 5 : पांच बेटियों के बाद भी बेटा नहीं जन्मने पर केलवा में एक पिता ने आत्महत्या कर ली। लगातार बेटियों के जन्म लेने से वह व्यथित था और उसकी पत्नी भी यही दबाव रहा। पिता ने आत्महत्या कर ली, मगर अब पत्नी व उन बेटियों की जिन्दगी मुश्किल में है।
बेटे की चाह से महिलाएं प्रताडि़त
हर समाज में लोग बेटे की चाहत रखते हैं और इसी कारण महिलाएं प्रताडि़त है। महिला सलाह सुरक्षा केन्द्र व पुलिस थानों में आने वाले कई प्रकरणों में बेटा नहीं जन्म लेने को लेकर लेकर प्रताडि़त किया जा रहा है। इस पर कई लोग समझाइश पर मान गए, तो कई परिवारों में अब भी विरोधाभास के हालात बने हुए हैं।
यशोदा सोनी, परामर्शदाता महिला सलाह सुरक्षा केंद्र कांकरोली

आज बेटियां ज्यादा कामयाब
समाज में बेटा-बेटी की सोच को लेकर काफी हद तक बदलाव आया है। बेटे की तरह बेटियां भी मां-बाप की सेवा कर रही है। आज पढ़ लिखकर बेटे की तरह ही कई बेटियां उच्च पदों पर कार्यरत है, तो कई बेटियां सफल बिजनेस भी कर रही है। ग्रामीण क्षेत्र के कुछ लोगों में बेटा-बेटी का भेदभाव है, जो गलत है। बेटियों को पराई न समझे। मेरी आमजन से यही अपील है कि एक बार कामयाब बेटी का उदाहरण समझ लो, स्वत: ही आपकी सोच बदल जाएगी।
डॉ. भुवन भूषण यादव, जिला पुलिस अधीक्षक राजसमंद
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