महिला मंच संयोजक शकुंतला पामेचा ने बताया कि बेटे द्वारा वंश चलाने की बात को भी मैं गलत मानती हूं। क्योंकि दो से तीन पीढ़ी के बाद किसको का क्या पता रहता है। परिवार में हर तरह से बेटा बेटी में भेदभाव है। अगर बेटी बीमार हो जाए, तो आसानी से उसका उपचार तक नहीं करवाते। बेटियों के साथ होने वाली घिनौनी घटनाओं पर त्वरित व सख्त कार्रवाई पुलिस को करनी होगी, तभी इसके सार्थक परिणाम आएंगे।
पत्रिका व्यू : आत्मचिंतन जरूरी
पहले कोख में और अब जन्म लेने के बाद बेटियों का गला घोंटने पर तूला है समाज। यह बेहतर खतरनाक और अवांछनीय है। वक्त रहते इस बारे में कुछ ठोस कदम उठाना जरूरी है। एक सवाल हमेशा मन को कटोचता रहेगा कि कन्या की हत्या धार्मिक बंधन है, सामाजिक कुरीति है या मन की बेटा पाने की लालसा… आत्मचिंतन का विषय है।
केस 2 : केलवाड़ा थाना क्षेत्र के कम्बोड़ा के एक बीड़ में जुलाई 2017 में नवजात कन्या को कोई फेंक गया। सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस ने उसे अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद उदयपुर भिजवा दिया। घटना के बाद पुलिस ने प्रसूताओं की सूचीबद्ध कर जांच शुरू की, मगर आज तक खुलासा नहीं हो पाया।
केस 3 : 19 सितम्बर 18 को प्रतापपुरा की महिला की रक्त की कमी के चलते जिला अस्पताल में प्रसव के दौरान मौत हो गई। बेटे की चाहत में महिला की कोख से 9 बेटियां जन्म गई। फिर भी माता-पिता के बेटे की चाहत कम नहीं हुई। एक या डेढ़ वर्ष के अंतराल में एक के बाद एक प्रसव होने से महिला की हालत गंभीर हो गई और आखिर में मृत्यु हो गई।
केस 4 : कामा निवासी हिमुड़ी पत्नी रतनलाल गमेती ने की चाहत में आठ वर्षीय बेटी को खमनोर के पास बनास नदी में फेंक दी। क्या महिला ने किसी के दबाव में बेटी को फेंका था, क्या बेटे की चाहत पूरे परिवार को थी या अन्य कोई कारण। पुलिस को महिला ने दिए प्राथमिक बयान में बेटे की चाहत ही सामने आया है। अभी उसकी हालत गंभीर होने से वास्तविकता साफ नहीं हुई।
केस 5 : पांच बेटियों के बाद भी बेटा नहीं जन्मने पर केलवा में एक पिता ने आत्महत्या कर ली। लगातार बेटियों के जन्म लेने से वह व्यथित था और उसकी पत्नी भी यही दबाव रहा। पिता ने आत्महत्या कर ली, मगर अब पत्नी व उन बेटियों की जिन्दगी मुश्किल में है।
हर समाज में लोग बेटे की चाहत रखते हैं और इसी कारण महिलाएं प्रताडि़त है। महिला सलाह सुरक्षा केन्द्र व पुलिस थानों में आने वाले कई प्रकरणों में बेटा नहीं जन्म लेने को लेकर लेकर प्रताडि़त किया जा रहा है। इस पर कई लोग समझाइश पर मान गए, तो कई परिवारों में अब भी विरोधाभास के हालात बने हुए हैं।
यशोदा सोनी, परामर्शदाता महिला सलाह सुरक्षा केंद्र कांकरोली
आज बेटियां ज्यादा कामयाब
समाज में बेटा-बेटी की सोच को लेकर काफी हद तक बदलाव आया है। बेटे की तरह बेटियां भी मां-बाप की सेवा कर रही है। आज पढ़ लिखकर बेटे की तरह ही कई बेटियां उच्च पदों पर कार्यरत है, तो कई बेटियां सफल बिजनेस भी कर रही है। ग्रामीण क्षेत्र के कुछ लोगों में बेटा-बेटी का भेदभाव है, जो गलत है। बेटियों को पराई न समझे। मेरी आमजन से यही अपील है कि एक बार कामयाब बेटी का उदाहरण समझ लो, स्वत: ही आपकी सोच बदल जाएगी।
डॉ. भुवन भूषण यादव, जिला पुलिस अधीक्षक राजसमंद