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परम्परागत खेती छोड़ी तो खनकने लगी तरक्की

locationराजसमंदPublished: Feb 27, 2021 10:18:40 am

Submitted by:

jitendra paliwal

डूंगरपुर की शांता 11 लाख और राजसमंद के भंवर पांच लाख कमा रहे सालाना, पशुपालन-खेती में नई तकनीकें आजमाई

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राजसमंद. डूंगरपुर की महिला किसान शांता बाई और राजसमंद के भंवरलाल कुमावत ने अब तरक्की की राह पकड़ ली है। परम्परागत खेती के पिछड़ेपन को छोड़ा और नवाचार की नई उम्मीदें थाम लीं। शांता बाई आज करीब 11 लाख रुपए सालाना कमाती हैं, वहीं भंवरलाल की जेब में पांच लाख रुपए की आमदनी इकट्ठी हो रही है। आइए जानते हैं दोनों किसानों की सफलता की कहानी…
पशुपालन और खेती में बनाया तालमेल
सात साल पहले शान्ता पटेल मक्का, धान, उड़द, गेहूं, चना, इत्यादि फसलें उगाकर परम्परागत तरीके से खेती कर रही थीं। उन्होंने कुछ नया करने का सोचा। डूंगरपुर में ही कृषि वैज्ञानिकों से चर्चा की। कुछ विषयों के प्रशिक्षणों में भी हिस्सा लिया और वैज्ञानिकों की सलाह मुताबिक फसल उत्पादन, सब्जी उत्पादन एवं डेयरी इकाई लगाने की योजना बनाई। अपने 7.4 हेक्टेयर क्षेत्रफल के फॉर्म पर समन्वित कृषि प्रणाली का मॉडल स्थापित किया। शान्ता ने 5 हेक्टेयर में फेसल उत्पादन और 2 हेक्टेयर में सब्जी उत्पादन और 12 मुर्रा भैंसें एवं 3 गिर गायों की डेयरी इकाई लगा दी। यह समन्वित कृषि प्रणाली मॉडल है। उन्होंने प्लाटिक मल्चिंग विधि से सब्जी उत्पादन, सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियां, वर्मीकम्पोस्ट व एजोला इकाई, फॉर्म पॉण्ड, ट्रैक्टर मय उन्नत कृषि यंत्र, रेजबेड विधि से सब्जी नर्सरी जैसी विभिन्न नवोन्मेषी तकनीकियां अपनाईं। आज वह फॉर्म से 10.63 लाख रुपए की सालाना शुद्ध आय प्राप्त कर रही है।
दूसरों के लिए बनी मिसाल
शान्ता अपने गांव एवं आसपास के कृषकों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई है। उनके फॉर्म पर अब तक जिला एवं राज्य स्तरीय सैकड़ों प्रगतिशील कृषक, वैज्ञानिक एवं अधिकारी भ्रमण कर चुके हैं। वह अनेकों तकनीकियों के नवाचारों, परीक्षण पर भी काम कर रही हैं।
मिले ये पुरस्कार
शान्ता पटेल को जिला एवं राज्य स्तर पर कई पुरस्कारों से नवाजा गया। धानुका इन्नोवेटिव एग्रीकल्चर अवॉर्ड (नोर्थ जॉन), वाइब्रेन्ट गुजरात अवॉर्ड, जिला स्तरीय आत्मा पुरस्कार एवं वर्ष 2018 में डी.डी. दूरदर्शन, नई दिल्ली ने महिला किसान अवॉर्ड दिया। अब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार दिया है।
पास में शहर तो लगा दी सब्जी की ढेरी
राजसमन्द के भंवरलाल कुमावत जिले प्रगतिशील किसानों में से एक हैं। शहर से केवल पांच किमी दूर भगवान्दा के इस किसान ने मण्डी से कम दूरी को ध्यान में रखते हुए सब्जी उत्पादन और पशुपालन में हाथ आजमाया। 2 बीघा खेत में सब्जियां फूलगोभी, पत्तागोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, टमाटर, प्याज, लहसुन, धनिया की उन्नत किस्मों की खेती शुरू की। इसके अलावा पपीता, नींबू के बगीचे भी लगाए। कुमावत कृषि के साथ डेयरी व्यवसाय भी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 3 भैंस एवं 2 संकर गाय भी पाली। समन्वित कृषि मॉडल अपनाकर आज वह 4-5 लाख रुपए की सालाना आमदनी हासिल कर रहे हैं।
भंवरलाल खेती की तकनीकी जानकारी हासिल करने के लिए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन राजसमन्द के कृषि विज्ञान केन्द्र के सम्पर्क में हैं और लगातार कृषि वैज्ञानिकों से चर्चा कर नवाचारों को लागू करने से नहीं हिचकिचाते। उन्हें 15 अगस्त, 2016 को जिला प्रशासन, राजसमन्द ने तथा वर्ष 2017 में अखिल भारतीय किसान संघ (आइएफ) ने प्रगतिशील किसान पुरस्कार से नवाजा।
भंवरलाल बताते हैं कि मन में खेती की नवीनतम तकनीकियों के माध्यम से कुछ करने का हौसला जगा तो उसे अब आगे बढ़ाने का साहस भी प्रदर्शित कर रहे हैं। कुमावत को मार्च-2016 में कृषि नवाचारों को अपनाने के लिए तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने आईएआरआई इनोवेटिव अवॉर्ड से भी सम्मानित किया।

शान्ता एवं भंवरलाल नए जमाने में नवोन्मेषी नवाचारों को अपनाकर मिसाल बने हैं। समन्वित कृषि प्रणाली मॉडल आज के वक्त की जरूरत है। कृषकों को इसे अपनाना चाहिए।
डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर
दोनों कृषकों की प्रगति देखकर प्रदेश के अन्य किसानों को भी प्रेरणा मिलेगी।
डॉ. सम्पतलाल मून्दड़ा, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर

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