scriptपांच घंटे का काम, मजदूरी मनरेगा श्रमिकों से भी कम | Five hours of work, wages less than MNREGA workers | Patrika News

पांच घंटे का काम, मजदूरी मनरेगा श्रमिकों से भी कम

locationराजसमंदPublished: Jun 12, 2021 11:42:07 am

Submitted by:

jitendra paliwal

कुक कम हेल्पर का मानदेय सरकार ने 4 रुपए प्रतिदिन का बढ़ाया, आर्थिक बोझ से दबी पोषाहार रसोइयाओं पर सरकार का ये कैसा मरहम?

पांच घंटे का काम, मजदूरी मनरेगा श्रमिकों से भी कम

पांच घंटे का काम, मजदूरी मनरेगा श्रमिकों से भी कम

आईडाणा. तीन की बजाय पांच घंटे का काम और मेहनताना मनरेगा श्रमिकों से भी कम! राज्य के सरकारी विद्यालयों में बच्चों के लिए मिड-डे-मील योजना में पोषाहार पकाने वाली कुक कम हेल्पर (रसोइया) की यह नियती है। खाद्य सामग्री के साथ अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं के भाव आसमान छू रहे हैं, इस बीच प्रदेश में सरकार ने उनके मानदेय में आखिरकार तीन साल की जद्दोजहद के बाद 132 रुपए की राशि बढ़ाई गई।
मिड-डे-मील आयुक्त ने आदेश जारी कर कुक कम हेल्पर के मानदेय में राज्य मद से 10 प्रतिशत यानि 132 रुपए की बढ़ोतरी की। अब कुक कम हेल्पर का मानदेय 1320 रुपए से बढ़ाकर 1452 रुपए कर दिया गया है। यह बढ़ा हुआ मानदेय 1 अप्रेल से मिलेगा। पूर्व में मात्र 44 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिल रही थी, जिन्हें अब 48 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलेंगे।
इतने कम की उम्मीद नहीं थी
भट्टी की आंच पर तपते हुए बच्चों के लिए खाना बनाने का काम कर रही हैं। वर्ष 2018-19 एवं वर्ष 2019-20 में अन्नपूर्णा योजना में दूध गर्म करने तक का कार्य भी इनके जिम्मे था। उन पर दोहरी जिम्मेदारी थी। उन्हें जो मानदेय मिल रहा था, वह अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी का चौथा हिस्सा भी नहीं था। उनकी इस पीड़ा को एकतरह से सरकार ने अनसुना ही कर दिया है। कुक कम हेल्पर को गहलोत सरकार के सालाना बजट से भी काफी उम्मीद थी। कुक कम हेल्पर मानदेय बढऩे का इंतजार करती रहीं, लेकिन चार साल में हर बजट के बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगी। आखिरकार अब जब सरकार ने मानदेय में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी तो कर दी, लेकिन सकल मानदेय काफी कम होने से केवल 132 रुपए ही उनके लिए बढ़े।
मनरेगा श्रमिकों से 40 फीसदी कम
सरकारी विद्यालय में कार्यरत कुक कम हेल्परों ने बताया कि पिछले काफी समय से मानदेय बढ़ाने की मांग की जा रही थी। पूर्व में भाजपा सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-2019 में मात्र 120 रुपए बढ़ाकर मानदेय 1200 से 1320 रुपए किया था। अब तीन वर्ष बाद बार सरकार ने फिर 132 रुपए ही बढ़ाए। मानदेय अब 1452 रुपए मिलेगा। उनका दर्द है कि महंगाई के जमाने में यह नाकाफी है। उनको यह भी शिकायत है कि इसके विपरीत मनरेगा में श्रमिकों को 225 से 235 रुपए तक मजदूरी मिलती है। ऐसे में पोषाहार पकाने के लिए कुक कम हेल्पर का इंतजाम करना शिक्षकों के लिए भी टेड़ी खीर है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने गत मार्च में ही प्रदेश में अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 225 रुपए प्रतिदिन तथा 5850 रुपए प्रतिमाह की थी, जबकि कुक कम हेल्पर का मानदेय मात्र 1452 रुपए महीना है। यानि एक दिन के मात्र 48 रुपए, जो न्यूनतम मजदूरी का चौथा भाग भी नहीं है।
अन्य जगह भी नहीं कर पाती कार्य
स्कूलों में सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक पोषाहार पकाने का कार्य रहता है। इसके बाद बच्चों को खाना खिलाकर बर्तन साफ करने व अन्य कार्य करने-करते दोपहर की 3 बज चुकी होती है। ऐसे में महिलाएं अन्य जगह मजदूरी या मनरेगा जैसे कार्यस्थलों पर भी नहीं जा पातीं। अधिकतर कुक कम हेल्पर पोषाहार पकाने के कार्य के अतिरिक्त दूसरी मजदूरी नहीं कर पा रहीं, जबकि घर चलाने के लिए यह मानदेय काफी कम है। मानदेय तो कम है ही, यह भी राशि समय पर नहीं मिलती है। वे कहती हैं कि कम से कम 3000 रुपए तो देने ही चाहिए।
इनकी आवाज उठाने वाला भी कोई नहीं
कुक कम हेल्पर आर्थिक रूप से कमजोर एवं अनपढ़ महिलाएं ही हैं। इनके मानदेय को लेकर कोई संगठन प्रयासरत भी नहीं है। ऐसे में इनकी आवाज सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पाती।
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