scriptसूखे चारागाह को अथक मेहनत से 13 साल में बना दिया हरा वन | Green forest made in 13 years by the hard work of dry grassland khmnor | Patrika News

सूखे चारागाह को अथक मेहनत से 13 साल में बना दिया हरा वन

locationराजसमंदPublished: May 07, 2019 12:27:25 pm

Submitted by:

laxman singh

ग्रामीण खुद करते हैं पेड़ों की निगरानी, डेढ़ दशक में पशु चारा नहीं खरीदना पड़ा, हो गए आत्मनिर्भर

Green forest made in 13 years by the hard work of dry grassland khmnor

सूखे चारागाह को अथक मेहनत से 13 साल में बना दिया हरा वन

प्रमोद भटनागर

खमनोर. क्षेत्र की शिशोदा पंचायत के अटाटिया गांव के लोगों और वनपाल ने 13 वर्षों की अथक मेहनत व साझा प्रयासों से 35 हैक्टेयर के सूखे चरागाह को चारदीवारी से सुरक्षित कर हरे-भरे पेड़ों के छोटे से जंगल में तब्दिल कर दिखाया है।
डेढ़ दशक चली मुहिम का नतीजा यह हुआ कि गांव के पशुपालकों को मवेशियों के लिए अब बाहर से चारा नहीं खरीदना पड़ता है। ग्रामीण खुद पेड़ों की देखभाल करते हैं। इसके चलते गांव के पास छोटा सा, मगर सुहाना वन विकसित हो गया है। यह प्रयास ग्राम पंचायतों में उपेक्षित पड़ी चरागाह भूमियों को अवैध कब्जों से बचाने, सरकारी योजनाओं के पैसों का सदुपयोग कर वन विकसित करने, मवेशियों के लिए घास-चारे के बंदोबस्त, हरियाली और पर्यावरण संवद्र्धन के लिहाज से काफी प्रेरणास्पद है। इसके माध्यम से यहां के लोगों ने संदेश दिया है कि जागरूक होकर अगर सभी गांवों के लोग ऐसा करने लगें तो चरागाह भूमियों की कायाकल्प की जा सकती है।
ऐसे की 2003-04 में शुरुआत
हल्दीघाटी वन नाका के रिटायर वनपाल उद्धल कुमार आचार्य बताते हैं कि वर्ष 2003-04 में अटाटिया की चरागाह भूमि खराब हालत में थी। उन्होंने लोगों को वन विकास की अवधारणा से जोड़ा और उपेक्षित चरागाह के उद्धार की योजना बनाई। वनपाल और ग्रामीणों ने ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति गठित की। वन समिति से जुड़े गांव के महिला-पुरुषों ने श्रमदान करते हुए चरागाह भूमि पर ट्रेंच और गड्ढ़े खोदे। इसी के साथ पत्थरों की कच्ची दीवार बनाकर सुरक्षा कार्य भी चालू किया।
किराए की निजी भूमि पर तैयार की नर्सरी
वर्ष 2004-05 में समिति ने शिशोदा में पंद्रह सौ रुपए प्रतिमाह के हिसाब से 7 माह के लिए एक बीघा निजी जमीन किराए पर ली। यहां अस्थायी नर्सरी में 6 हजार 700 बेर, 8600 नीम, एक हजार 250 इमली, 3 हजार 650 चुरेल, एक हजार 900 देसी बबूल, एक हजार रोंज, एक हजार 250 अमलताश, एक हजार 700 बांस सहित महुआ, पीपल, बड़, गुलर व अन्य कई प्रजातियों के कुल 28 हजार पौधे तैयार किए।
मानसून में एक माह चला पौध व बीजारोपण
वर्ष 2005 में मानसून शुरू होने पर पौधारोपण की तैयारी की। 2 जुलाई से 30 जुलाई के बीच गढ्ढों में पौधे रोपे, वहीं ट्रेंच में खाखरा, कुम्ठा, नीम और रतनजोत के बीज रोपे।
35 हैक्टेयर के चरागाह में ये चार बड़े कार्य
1. दो एनिकट बनाए- आरएप बीपी योजनांतर्गत 10 लाख 87 हजार खर्च कर दो एनिकट बनाए। इनमें बरसाती पानी भरता है, जो कई महीनों तक भू-भाग को हराभरा बनाए रखता है।
2. 188 चैकडेम – बारिश में ऊंचाई से बहते पानी की गति धीमी करने कच्चे पत्थरों के 188 चैकडेम (कुल एक हजार 982 घनमीटर) बनाए। विभाग और नरेगा के मदों में ये कार्य करवाए गए।
3. 10 किमी ट्रेंच- धोरों के रूप में पानी चलता रहे, जिससे कि पौधे पनपे और घास भी उगे इसको ध्यान में रखते हुए 10 हजार 500 रनिंग मीटर लंबी ट्रेंच बनाई। यह काम विभाग के मद से हुआ।
4. ढाई किलोमीटर चारदीवारी- चरागाह की सुरक्षा के लिए 4 फीट ऊंची दो हजार 546 रनिंग मीटर दीवार बनाई गई। यह 600 मीटर पूर्णतया पक्की और पौने छह फीट ऊंची है। वन विभाग और नरेगा के संयुक्त बजट से दीवार बनवाई गई। इसमें 19 सौ मीटर की दीवार अभी पक्की करना शेष है।

132 परिवार देते हैं सौ-सौ रुपए, एक माह तक काटते हैं घास
समिति में 132 परिवारों के मुखियाओं के नाम दर्ज हैं। प्रत्येक सदस्य साल में एक बार सौ रुपए जमा कराता है। बदले में एक परिवार का कोई भी एक महिला या पुरुष चरागाह में प्रवेश कर 30 दिन तक सूखी घास काट ले जाने के लिए स्वतंत्र होता है। प्राकृतिक रूप से उगने वाली घास की बहुतायात होने से पूरे गांव के पशुपालकों को समिति में हर साल जमा 13 हजार दो सौ रुपए के बदले करीब 7 से 8 लाख रुपए की घास मिल जाती है।
समिति का बहिखाता
समिति ने घास कटाई से हुई आय की एफडी करवाई। 25 मई 2019 को 80 हजार 170 रुपए की एक एफडी मैच्योर हो गई। इसी साल 16 जुलाई को 67 हजार 514 रुपए की एफडी मैच्योर होने वाली है। विभाग के कोरपस फंड से 50 हजार की भी एफडी करवाई, जिसके 24 अक्टूबर 2020 को मैच्योर होने पर एक लाख 12 हजार 733 रुपए मिलेंगे।
आज यह है स्थिति
चरागाह संवद्र्धन का काम सिर्फ बारिश पर निर्भर है। इसके बावजूद हरियाली विकसित होने से भीषण गर्मी में भी यहां पेड़-पौधे हरेभरे हैं। अटाटिया की संपूर्ण 35 हैक्टेयर की चरागाह चारदीवारी से सुरक्षित है। नरेगा योजना से चौकीदार लगा है। वन को नुकसान से बचाने ग्रामीण भी निगरानी करते हैं। यहां पौधरोपण अभियान के 28 हजार में से 20 हजार पेड़-पौधे जीवित हैं।
सरकार ने भी सराहा वनपाल आचार्य का काम
वनपाल आचार्य के अतिरिक्त प्रयासों से वन विकास की उपलब्धियों को कई बार सराहा भी जा चुका है। आचार्य को 1994 में जिला स्तर पर सर्वोत्तम वनरक्षक, 97 में वनपालक, 98 में सुयोग्य, 99 में राज्यस्तरीय वनपालक, 2007 में अमृता देवी पुरस्कार चयन, 2008 में विरासत लेख के लिए पुरस्कार और 2013-14 में संभाग स्तरीय वनरक्षक पुरस्कार मिल चुका है। रिटायर वनपाल आचार्य की हल्दीघाटी के दो सौ हैक्टेयर वन को सुरक्षित, संवद्र्धित करने में भी सराहनीय भूमिका रही है।
Green forest made in 13 years by the hard work of dry grassland khmnor
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो