पहले 120 में मिलता था एक ट्रीप रेत
जनवरी 2014 तक प्रति टन रॉयल्टी 20 रुपए, पर्यावरण संरक्षण के लिए 5 रुपए, परमिट फीस (आठ टन तक) 20 रुपए एवं आठ टन से अधिक पर 50 रुपए दर निर्धारित थी। इससे प्रति ट्रेक्टर ट्रीप पर 120 रुपए से 200 रुपए तक रॉयल्टी शुल्क लगता था।
अब 10 गुना से भी ज्यादा वसूली
रेत माफिया अब मनमर्जी से बजरी की कीमत वसूल रहे हैं। राजसमंद शहर व आस पास के इलाके में करीब 1500 रुपए में बजरी का एक ट्रेक्टर ट्रीप डाल रहे हैं, जबकि छोटा डम्पर 3 से साढ़े 3 हजार रुपए में शहर व आस पास के गांवों में आपूर्ति कर रहे हैं। वैसे बड़े डम्पर से बजरी की आपूर्ति उदयपुर, देलवाड़ा क्षेत्र में ही हो रही है, जिसकी कीमत 12 हजार से 15 हजार रुपए तक वसूल रहे हैं। इसका खमियाजा आमजन को भुगतना पड़ रहा है।
बजरी खनन पर लंबे समय से विवाद
पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट ने बजरी खनन पर अनुमति देने से इनकार कर दिया। राज्य सरकार व ऑल राजस्थान बजरी ट्रक ऑपरेटर्स वेलफेयर सोसायटी अध्यक्ष नवीन शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (अपील) दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे दी। कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की कार्रवाई पर स्थगन दे दिया, तो 21 अक्टूबर से बजरी खनन पूर्णत: रोक लगा दी थी। निर्माण कार्य ठप होने पर कोर्ट ने वैकल्पिक तौर पर 28 फरवरी 2014 तक सशर्त छूट दी है। सुनवाई के बाद फिर रोक लगा दी। चौतरफा रेत को लेकर बवाल मचने पर फैसला होने तक वैकल्पिक तौर पर अनिश्चितकाल के लिए बजरी खनन की छूट दे दी, जिसमें देश के बड़े उद्यमी व माफिया का ग्रुप है, जिसने अपने स्तर पर दरें लागू कर दी। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिर बजरी खनन पर रोक लगा दी, जिससे करीब 2 साल से बजरी के खनन, परिवहन पर प्रतिबंध है।
3 मीटर खनन का ही मापदंड
अधिकतम 3 मीटर (करीब 10 फीट) तक खुदाई कर बजरी निकालने का ही प्रावधान है। हालात ये है कि 40 से 50 फीट गहराई तक बजरी निकाली जा रही है। नदियों के साथ खेत भी अब खदानें बन चुकी है। इससे अधिक खनन करना कानूनी अपराध है। फिर भी न तो खान विभाग गंभीर है और न ही माफिया में कोई डर है।