मुर्गी व खरगोश में रूचि
आधुनिक युग में अब दुधारु मवेशियों की बजाय लोग खरगोश पालन में रूचि दिखाने लगे हैं। जिले में एक हजार कुत्ते, तीन सौ खरगोश, 30 बतख, 5 टर्की का पालन कर रहे हैं। इसके अलावा 28 हजार मुर्गी व 784 देसी मुर्गी का पालन भी लोग कर रहे हैं।
आधुनिक युग में अब दुधारु मवेशियों की बजाय लोग खरगोश पालन में रूचि दिखाने लगे हैं। जिले में एक हजार कुत्ते, तीन सौ खरगोश, 30 बतख, 5 टर्की का पालन कर रहे हैं। इसके अलावा 28 हजार मुर्गी व 784 देसी मुर्गी का पालन भी लोग कर रहे हैं।
सीमित परिवार से घटा पशुपालन
पशुपालन की परिपाटी उस परिवार व गांव की समृद्धि का प्रतीक मानी जाती रही है, मगर अब सीमित होते परिवार में पशुपालन बड़ा महंगा होता जा रहा है। पहले संयुक्त परिवार के सदस्य खेती के साथ पशुपालन करते थे, मगर आज परिवार के ज्यादातर सदस्य व्यवसाय या नौकरी के चलते शहर में बस गए हैं, जिसकी वजह से अन्य श्रमिकों के माध्यम से खेती व पशुपालन करवाना महंगाई मोल लेना है। आज हर घर की दिनचर्या का का प्रथम हिस्सा ही दूध है। फिर भी शहर तो क्या ग्रामीण क्षेत्र में भी पशुपालन दिनोंदिन घटता जा रहा है।
पशुपालन की परिपाटी उस परिवार व गांव की समृद्धि का प्रतीक मानी जाती रही है, मगर अब सीमित होते परिवार में पशुपालन बड़ा महंगा होता जा रहा है। पहले संयुक्त परिवार के सदस्य खेती के साथ पशुपालन करते थे, मगर आज परिवार के ज्यादातर सदस्य व्यवसाय या नौकरी के चलते शहर में बस गए हैं, जिसकी वजह से अन्य श्रमिकों के माध्यम से खेती व पशुपालन करवाना महंगाई मोल लेना है। आज हर घर की दिनचर्या का का प्रथम हिस्सा ही दूध है। फिर भी शहर तो क्या ग्रामीण क्षेत्र में भी पशुपालन दिनोंदिन घटता जा रहा है।
सरकारी सम्बल का इंतजार
पशुपालकों को सरकारी सम्बल का इंतजार है। पशुपालकों व पशुओं के बीमा योजनाएं बंद है। इसके अलावा पशुपालकों को सरकार की ओर से आर्थिक सम्बल नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में पशुपालन कार्य महंगा पडऩे व आय नहीं होने से पशुपालकों का पशुपालन से मोहभंग हो रहा है। जिलेभर में पशु चिकित्सकों के अभाव में दर्जनों पशु औषधालयों पर ताले जड़े हुए हैं। दूर दराज गांव ढाणियों के पशुपालकों को पशुओं के उपचार के लिए जिला मुख्यालय पर आना पड़ रहा है।
पशुपालकों को सरकारी सम्बल का इंतजार है। पशुपालकों व पशुओं के बीमा योजनाएं बंद है। इसके अलावा पशुपालकों को सरकार की ओर से आर्थिक सम्बल नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में पशुपालन कार्य महंगा पडऩे व आय नहीं होने से पशुपालकों का पशुपालन से मोहभंग हो रहा है। जिलेभर में पशु चिकित्सकों के अभाव में दर्जनों पशु औषधालयों पर ताले जड़े हुए हैं। दूर दराज गांव ढाणियों के पशुपालकों को पशुओं के उपचार के लिए जिला मुख्यालय पर आना पड़ रहा है।
पशुपालन की तुलनात्मक स्थिति
पशु … वर्ष 2012 … वर्ष 2019
गोवंश … 260835 … 247670
भैंस … 222293 … 234335
भेड़ … 100488 … 68438
बकरी … 536901 … 537643
घोड़े … 1002 … 1111
गधे …. 938 … 685
ऊंट … 1572 … 1558
***** … 3137 … 3005
कुत्ता …. —- …. 1009
पशु … वर्ष 2012 … वर्ष 2019
गोवंश … 260835 … 247670
भैंस … 222293 … 234335
भेड़ … 100488 … 68438
बकरी … 536901 … 537643
घोड़े … 1002 … 1111
गधे …. 938 … 685
ऊंट … 1572 … 1558
***** … 3137 … 3005
कुत्ता …. —- …. 1009
तीस फीसदी घटी भेड़े
हां, जिले में 30 फीसदी तक भेड़े कम हुई है। इसके अलावा दुधारू मवेशियों में ज्यादा कमी नहीं आई है। कई लोग अन्य व्यवसाय व नौकरी में चले जाने की वजह से कुछ फर्क है। पशुपालन के प्रति रुझान भी घट रहा है, जो चिंता का विषय है।
डॉ. लक्ष्मणसिंह चुंडावत, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग राजसमंद