जानकारों ने बताया कि खारी फीडर निर्माण से पहले आसपास की पहाडिय़ों से पानी स्वरूपसागर और छोटे-मोटे एनिकट में संग्रहित होता था, जो नहरों के जरिये सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता था। नहर बनने के बाद पहाड़ों से पानी तालाब में नहीं आता है, बल्कि इसे फीडर खोलकर भरा जाता है। निर्माण के वक्त क्षेत्रवासियों और विभाग के बीच सिंचाई के लिए पानी नहर से उपलब्ध करवाने का समझौता हुआ था।
लोगों ने बताया कि पानी की बर्बादी पूरी तरह रोक दी जाए, नहरें बनाई जाए तो 75 प्रतिशत वंचित इलाके में भी खेती हो सकती है। इसका फायदा लोगों को अच्छी उपज के रूप में होगा। वर्तमान में केवल स्वरूपसागर में पेटाकाश्त करने वालों तथा आसपास के निश्चित हिस्से में ही मिल रहा है। कुछ लोग पेटाकाश्त करने वालों को मुआवजा देकर तालाब वर्षभर भरा रखकर इससे पानी नियमित देने की बात भी कर रहे हैं, ताकि पानी खाली करने का दबाव न हो।
03 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला हुआ है स्वरूपसागर
06 फीट का गेज है इस तालाब का
02 माह में ही खाली कर दिया जाता है वर्षाकाल के बाद
20-25 प्रतिशत लोगों के खेतों तक ही पहुंचता है इसका पानी
40 साल पहले तक पहाड़ों से बहते पानी से भरता था तालाब
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स्वरूप से कुएं रिचार्ज होते हैं। एनिकट भरे रहते थे। 40 साल पहले पहाड़ी क्षेत्र से पानी आता था, जो नहरों से खेतों तक पहुंचाया जाता था। नहर बनने के बाद से पानी नहीं आता। बर्बादी हो रही है। केवल 25 प्रतिशत ही सिंचाई हो रही है। 75 प्रतिशत रकबा यूं ही पड़ा रहता है। तालाब भरा रहे तो धोइन्दा, मालीवाड़ा क्षेत्र के कुएं भी रिचार्ज हो सकते हैं।
जगदीश कुमावत, क्षेत्रवासी
ओंकारलाल बैरवा, अधीक्षण अभियंता, सिंचाई विभाग