राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण की ओर से निर्मित नौचोकी पाल किनारे महाराणा राजसिंह पेनोरमा को 11 अगस्त से आमजन के लिए खोला गया। राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी टीसी बोहरा ने पेनोरमा की पटकथा लेखन और डिस्प्ले प्लान का कार्य किया। प्राधिकरण सदस्य कंवल प्रकाश किशनानी के परामर्श से अजमेर के जमाल ने पेनोरमा में डिस्प्ले किया। पेनोरमा में पांच दीर्घा है, जिनमें से तीन दीर्घा भूतल पर है, जबकि दो चित्र दीर्घा द्वितीय मंजिल पर है। पेनोरमा में 2 डी फाइबर पैनल, थ्री डी फाइबर मूर्तियां जयपुर के आलोक बनर्जी द्वारा बनाई गई, जो पर्यटकों को खासी आकर्षित कर रही है।
यह है प्रवेश का टिकट
विद्यार्थियों के लिए 5 रुपए, वयस्क के लिए 10 रुपए और विदेशियों के लिए 20 रुपए का टिकट है। इसी तरह कैमरा या स्मार्ट फोन साथ में ले जाने पर बीस रुपए अतिरिक्त शुल्क है।
विद्यार्थियों के लिए 5 रुपए, वयस्क के लिए 10 रुपए और विदेशियों के लिए 20 रुपए का टिकट है। इसी तरह कैमरा या स्मार्ट फोन साथ में ले जाने पर बीस रुपए अतिरिक्त शुल्क है।
पेनोरमा में ये प्रमुख मॉडल
दीर्घा 1 में महाराणा राजसिंह का जन्म, राजसिंह की धर्म यात्रा, महाराणा जगतसिंह के निधन बाद राजसिंह का राजतिलक, विवाह, टीका दौड़, दीर्घा 2 में अजीतसिंह की रक्षा का वचन देकर औरंगजेब को चुनौती देने, श्रीनाथजी विग्रह की सुरक्षा का वचन, चित्तौडग़ढ़ किले का जीर्णोद्धार, औरंगजेब के जजिया कर के विरोध स्वरुप पत्र लिखवाते महाराणा राजसिंह, झील का अवलोकन करते राजसिंह, युद्ध में राजसिंह द्वारा औरंगजेब को शिकस्त देने तथा दीर्घा 3 में बाण (बायण) माता का मंदिर व नतमस्तक महाराणा राजसिंह व उनकी रानी। इसी तरह द्वितीय तल पर दीर्घा 4 में हाड़ी रानी द्वारा सिर काट हाथ में देने, महाराणा राजसिंह द्वारा बहन व पत्नी को लिखे गए पत्र, राजसिंह के साहित्यिक गुरु नरहरिदास बारहठ, गोखड़े में महाणा राजसिंह के साथ झील और राजसिंह द्वारा औरंगजेब की सेना पर आक्रमण का दृश्य। इसी तरह दीर्घा 5 में गुरु गोबिंदसिंह, शिवाजी, महाराणा राजसिंह, बूंदी राजा छत्रसाल के संयुक्त मोर्चा की सभा, राजसिंह छापामार युद्ध एवं औरंगजेब की बेगम को बहन मान राखी बंधवाने और वृद्धावस्था में महाराणा राजसिंह की मूर्ति। इसी तरह जन्म राज्याभिषेक, किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह प्रसंग, औरंगजेब से युद्ध, हाड़ी रानी का प्रसंग, राजसमंद झील व बावडिय़ों के निर्माण के बारे में बताया है, जो पर्यटकों को काफी आकर्षित कर रही है।
दीर्घा 1 में महाराणा राजसिंह का जन्म, राजसिंह की धर्म यात्रा, महाराणा जगतसिंह के निधन बाद राजसिंह का राजतिलक, विवाह, टीका दौड़, दीर्घा 2 में अजीतसिंह की रक्षा का वचन देकर औरंगजेब को चुनौती देने, श्रीनाथजी विग्रह की सुरक्षा का वचन, चित्तौडग़ढ़ किले का जीर्णोद्धार, औरंगजेब के जजिया कर के विरोध स्वरुप पत्र लिखवाते महाराणा राजसिंह, झील का अवलोकन करते राजसिंह, युद्ध में राजसिंह द्वारा औरंगजेब को शिकस्त देने तथा दीर्घा 3 में बाण (बायण) माता का मंदिर व नतमस्तक महाराणा राजसिंह व उनकी रानी। इसी तरह द्वितीय तल पर दीर्घा 4 में हाड़ी रानी द्वारा सिर काट हाथ में देने, महाराणा राजसिंह द्वारा बहन व पत्नी को लिखे गए पत्र, राजसिंह के साहित्यिक गुरु नरहरिदास बारहठ, गोखड़े में महाणा राजसिंह के साथ झील और राजसिंह द्वारा औरंगजेब की सेना पर आक्रमण का दृश्य। इसी तरह दीर्घा 5 में गुरु गोबिंदसिंह, शिवाजी, महाराणा राजसिंह, बूंदी राजा छत्रसाल के संयुक्त मोर्चा की सभा, राजसिंह छापामार युद्ध एवं औरंगजेब की बेगम को बहन मान राखी बंधवाने और वृद्धावस्था में महाराणा राजसिंह की मूर्ति। इसी तरह जन्म राज्याभिषेक, किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह प्रसंग, औरंगजेब से युद्ध, हाड़ी रानी का प्रसंग, राजसमंद झील व बावडिय़ों के निर्माण के बारे में बताया है, जो पर्यटकों को काफी आकर्षित कर रही है।
यह है महाराणा राजसिंह का इतिहास
राजसमंद के गौरव महाराणा राजसिंह का जन्म 24 सितम्बर 1629 को हुआ। उनके पिता महाराणा जगतसिंह और मां महारानी जनोद कुंवर मडेतनी थीं। मात्र 23 वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्यभिषेक हुआ था। वे न केवल धर्म, कला प्रेमी थे, बल्कि जन जन के चहेते, वीर, दानी, कुशल शासक थे। उन्होंने कई बार सोने, चांदी, अनमोल धातु, रत्न आदि के तुलादान करवाए और योग्य लोगों को सम्मानित किया। झील के किनारे नौचोकी पर बड़े बड़े प्रस्तर पट्टो पर उनकी राज प्रशस्ति शिलालेख बनवाए, जो आज भी नौचोकी पाल पर हैं। इसके अलावा उद्यान, फव्वारा, मंदिर, बावडिय़ां भी बनाई। श्री द्वारकाधीश और श्रीनाथजी के मेवाड़ आगमन पर खुद पालकी को कंधा दिया और भव्य स्वागत किया।
राजसमंद के गौरव महाराणा राजसिंह का जन्म 24 सितम्बर 1629 को हुआ। उनके पिता महाराणा जगतसिंह और मां महारानी जनोद कुंवर मडेतनी थीं। मात्र 23 वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्यभिषेक हुआ था। वे न केवल धर्म, कला प्रेमी थे, बल्कि जन जन के चहेते, वीर, दानी, कुशल शासक थे। उन्होंने कई बार सोने, चांदी, अनमोल धातु, रत्न आदि के तुलादान करवाए और योग्य लोगों को सम्मानित किया। झील के किनारे नौचोकी पर बड़े बड़े प्रस्तर पट्टो पर उनकी राज प्रशस्ति शिलालेख बनवाए, जो आज भी नौचोकी पाल पर हैं। इसके अलावा उद्यान, फव्वारा, मंदिर, बावडिय़ां भी बनाई। श्री द्वारकाधीश और श्रीनाथजी के मेवाड़ आगमन पर खुद पालकी को कंधा दिया और भव्य स्वागत किया।
बढ़ रहा पर्यटकों का रूझान
झील किनारे नौचोकी पर बना महाराणा राजसिंह पेनोरमा धर्म, कला, पुरा महत्त्व व इतिहास से रूबरू कराने वाला है। राजसिंह की त्याग, देशभक्ति को लेकर अनूठी पहचान है। झील पर पाल अद्भुद बनावट, उत्कृष्ठ वास्तुकला की वजह से ही लोगों के दिलोदिमाग में छाई हुई है। पेनोरमा देखने के लिए पर्यटक बढऩे लगे है और एक माह में करीब छह हजार लोग आए।
प्रवीण कुमार, मॉनिटरिंग संचालन समिति एवं उपखंड अधिकारी राजसमंद
झील किनारे नौचोकी पर बना महाराणा राजसिंह पेनोरमा धर्म, कला, पुरा महत्त्व व इतिहास से रूबरू कराने वाला है। राजसिंह की त्याग, देशभक्ति को लेकर अनूठी पहचान है। झील पर पाल अद्भुद बनावट, उत्कृष्ठ वास्तुकला की वजह से ही लोगों के दिलोदिमाग में छाई हुई है। पेनोरमा देखने के लिए पर्यटक बढऩे लगे है और एक माह में करीब छह हजार लोग आए।
प्रवीण कुमार, मॉनिटरिंग संचालन समिति एवं उपखंड अधिकारी राजसमंद