– राकेश गांधी- अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकारें जिस तरह शराब को बढ़ावा दे रही है, उससे शहर ही नहीं, गांव के गांव बर्बाद हो रहे हैं। युवा पीढ़ी पतन की राह पर हैं। गांवों में पानी व दूध भले ही मुश्किल से मिले, पर शराब जरूर मिल जाती है। हैरानी तो इस बात की है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री गांधी विचारों के समर्थक हैं और इस साल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 150वां जन्मवर्ष मनाया जा रहा है। ऐसे में समझ नहीं आ रहा कि चूक आखिर कहां हो रही है? या तो सरकार की कोई सुनता नहीं, या फिर सरकार की कथनी व करनी में ही फर्क है। गांधी विचारों को मानने वाले मुख्यमंत्री से इतनी तो अपेक्षा ग्रामीण करते ही हैं कि वे आगे होकर प्रदेश के गांवों को शराबमुक्त बनाएं। आबकारी नीति कुछ इस तरह बनाई जाए कि शराब को बढ़ावा न मिले। इस शराब ने गांवों में महिलाओं की वो हालत बना रखी है कि इसे बयां करना भी मुश्किल है। वहां शहरों से ज्यादा अपराध होने लगे हैं। महिलाओं का जीवन नारकीय बन गया है। मासूम बच्चे शराब की लत से नहीं बच पा रहे। युवा होते- होते तो वे इसके आदी हो रहे हैं। महिलाओं के साथ अभद्रता के साथ ही चोरी-लूट जैसी घटनाएं इसी शराब की वजह से बढ़ रही है। ऐसे में न केवल महिलाएं, बल्कि अब तो आम ग्रामीण इस शराब को अपने गांव से बाहर ढकेलना चाहता है। राजसमंद जिले की भीम पंचायत समिति के कई गांवों में पिछले तीन सालों के दौरान शराबबंदी को लेकर आंदोलन हुए। महिलाएं व पुरुष सड़कों पर उतरे और जिला मुख्यालय तक भी पहुंचे। इनमें से काछबली व बरजाल में तो काफी हद तक सफलता मिली, लेकिन थानेटा जैसे कुछ गांवों में अभी भी हालात वैसे ही बने हुए हैं। थानेटा व शराबियों से त्रस्त गांवों में महिलाओं का अकेले निकलना दुभर हो चुका है। ग्रामीण पुलिस तक शिकायत करने भी जाते हैं, लेकिन उनकी सुनी नहीं जाती। अब जनता सुकून चाहती है। शराब जैसी बुराइयों से मुक्ति चाहती है। ऐसे में सरकार व प्रशासन को चाहिए कि वे गांवों में जाए और ग्रामीणों की सुने। इससे लोगों का सरकार व प्रशासन के प्रति विश्वास बढ़ेगा, सम्मान बढ़ेगा।