बड़ा भाणुजा में जहां ये घटना हुई, वहां खेत के किनारे पत्थरकोट और उसके ठीक पास रास्ता है। संभवतया मादा पैंथर वहां से या तो किसी शिकार का पीछा कर रही थी या बनास नदी पर पानी पीने के लिए जा रही थी। इसी दरमियान वह लोहे के तार और कंटीली झाडिय़ों के बीच फंस गई। लोहे के तार से पैंथर के पेट के हिस्से में मजबूत जकड़ बन गई, जिससे वह घंटों तक छटपटाई। हालांकि पैंथर कितनी बजे तार व झाडिय़ों में उलझी, इसका कोई निश्चित समय पता नहीं चल सका। लेकिन वन अधिकारी अनुमान लगा रहे हैं कि मरने से पहले करीब चार से पांच घंटे वह जकड़ में रही और संघर्ष किया। दोपहर करीब ढाई बजे खेत के पास रास्ते से गुजर रहे एक ग्रामीण ने पैंथर को फंसा हुआ और निकलने के लिए छटपटाते देखा। करीब तीन बजे वन विभाग को सूचना दी गई। मौके पर छोटा भाणुजा व आसपास के इलाके से लोग इकठ्ठा हो गए।
पहले हल्दीघाटी वन नाका में कार्यरत वनकर्मी पहुंचे। बाद में करीब साढ़े चार बजे राजसमन्द गश्ती दल व रेस्क्यू टीम भी मौके पर पहुंच गई। रेस्क्यू टीम के पहुंचने तक मादा पैंथर जिंदा थी, मगर लंबे संघर्ष से थकी-हारी अंतिम सांसे गिन रही थी। उसे ट्रेंकुलाइज कर झाडिय़ों से निकालने की तैयारी की जा रही थी, इसी बीच पैंथर ने दम तोड़ दिया। पैंथर की कोई हलचल नहीं होती देख वन विभाग के रेस्क्यू दल को अंदाजा लग गया कि उसकी मौत हो चुकी है। रेस्क्यू दल ने शव को झाडिय़ों से बाहर निकाला और गश्ती दल के वाहन में रखकर हल्दीघाटी वन नर्सरी में ले गए। घटनास्थल पर नाथद्वारा क्षेत्रीय वन अधिकारी इस्माइल शेख, वनपाल रतनलाल, रामचंद्र पालीवाल, तुलसीराम, मोनिका पालीवाल, अश्विन गुर्जर, नंदू गमेती, लच्छीराम गायरी सहित रेस्क्यू दल, गश्ती दल में शामिल वनकर्मी व पुलिस जाब्ते में एएसआई सुरेंद्रसिंह, हैड कांस्टेबल उदयलाल गुर्जर व अन्य पुलिसकर्मी थे।
बच जाती जान, बदनसीबी ने मारा
तार और झाडिय़ों में फंसी मादा पैंथर जिंदा बच सकती थी, मगर बदनसीबी का शिकार हो गई। फंसने के कुछ समय में ही यदि किसी को पता चल जाता और समय पर रेस्क्यू दल को बुला लिया जाता तो डेढ़ साल की इस पैंथर की जान बचा ली जाती। पैंथर के फंसकर मौत की घटना का वनकर्मियों, वन्यजीव प्रेमियों और ग्रामीणों को काफी अफसोस रहा। ग्रामीणों ने बताया कि खेत में जहां पैंथर फंसी, उसके आसपास मौजूद पहाडिय़ां, जंगल व पानी पैंथरों के कुनबे के लिए मुफीद जगह है। जहां घटना हुई, उस इलाके में एक पहाड़ी को तो स्थानीय लोग चीता खादर के नाम से इंगित करते हैं।
तार और झाडिय़ों में फंसी मादा पैंथर जिंदा बच सकती थी, मगर बदनसीबी का शिकार हो गई। फंसने के कुछ समय में ही यदि किसी को पता चल जाता और समय पर रेस्क्यू दल को बुला लिया जाता तो डेढ़ साल की इस पैंथर की जान बचा ली जाती। पैंथर के फंसकर मौत की घटना का वनकर्मियों, वन्यजीव प्रेमियों और ग्रामीणों को काफी अफसोस रहा। ग्रामीणों ने बताया कि खेत में जहां पैंथर फंसी, उसके आसपास मौजूद पहाडिय़ां, जंगल व पानी पैंथरों के कुनबे के लिए मुफीद जगह है। जहां घटना हुई, उस इलाके में एक पहाड़ी को तो स्थानीय लोग चीता खादर के नाम से इंगित करते हैं।