झील की फिक्र कौन करे?
पूरे जिले में ११ लाख ५८ हजार लोगों की आबादी है, जो किसी न किसी तरह से जलस्रोतों पर निर्भर है। शहर व आसपास के डेढ़ लाख लोग झील के पानी को पी रहे हैं। जिले के गांव-कस्बों और शहरों में सैकड़ों जलाशयों में पीओपी की मूर्तियां विसर्जित की जाती हैं। इन दिनों निर्मित हो रही पीओपी की मूर्तियां खरीदने को अब तक कभी रोका नहीं जा सका है, न ही विसर्जित करने पर कोई सख्त प्रतिबंध लगाया गया।
पूरे जिले में ११ लाख ५८ हजार लोगों की आबादी है, जो किसी न किसी तरह से जलस्रोतों पर निर्भर है। शहर व आसपास के डेढ़ लाख लोग झील के पानी को पी रहे हैं। जिले के गांव-कस्बों और शहरों में सैकड़ों जलाशयों में पीओपी की मूर्तियां विसर्जित की जाती हैं। इन दिनों निर्मित हो रही पीओपी की मूर्तियां खरीदने को अब तक कभी रोका नहीं जा सका है, न ही विसर्जित करने पर कोई सख्त प्रतिबंध लगाया गया।
कारीगर बोले- विसर्जन प्रक्रिया को सुरक्षित बनाए प्रशासन, ये हमारा रोजगार है
मिट्टी की प्रतिमाएं बनाना बहुत महंगा और श्रम साध्य है। बाजारों में सस्ती प्रतिमाएं ज्यादा प्रचलित हंै। पीओपी की मूर्तियां दिखती भी सुंदर हैं और आसानी से बनती है। एक मूर्तिकार ने बताया कि वह सालों से इन्हें बनाते और बेचते रहे हैं। मूर्तियों से उनका गुजारा चलता है। सवा सौ रुपए कीमत में 20 किलो पीओपी की बोरी आती है। इससे 40 मूर्तियां तक बन जाती हैं, जबकि 20 किलो मिट्टी में 20 मूर्तियां ही बन सकती हैं। मिट्टी की मूर्ति में अन्य सामान भी मिलाना पड़ता है। उन्हें बनाने और सूखाने में काफी समय लगता है। उनका कहना है कि मूर्तियां रोजगार का जरिया हैं। पीओपी की मूर्तियों का जलाशयों में विसर्जन न हो, इस पर सरकार को काम करना चाहिए।
मिट्टी की प्रतिमाएं बनाना बहुत महंगा और श्रम साध्य है। बाजारों में सस्ती प्रतिमाएं ज्यादा प्रचलित हंै। पीओपी की मूर्तियां दिखती भी सुंदर हैं और आसानी से बनती है। एक मूर्तिकार ने बताया कि वह सालों से इन्हें बनाते और बेचते रहे हैं। मूर्तियों से उनका गुजारा चलता है। सवा सौ रुपए कीमत में 20 किलो पीओपी की बोरी आती है। इससे 40 मूर्तियां तक बन जाती हैं, जबकि 20 किलो मिट्टी में 20 मूर्तियां ही बन सकती हैं। मिट्टी की मूर्ति में अन्य सामान भी मिलाना पड़ता है। उन्हें बनाने और सूखाने में काफी समय लगता है। उनका कहना है कि मूर्तियां रोजगार का जरिया हैं। पीओपी की मूर्तियों का जलाशयों में विसर्जन न हो, इस पर सरकार को काम करना चाहिए।
जिम्मेदार नहीं चूकते
राज्य सरकार व एनजीटी के सख्त आदेशों के बावजूद देखने में आता है कि जिम्मेदार आला अधिकारी भी अपने आसपास ऐसी मूर्तियों की स्थापना कर देते हैं। जहां मूर्तियां स्थापित हो रही हैं, उनकी अनदेखी भी वे बिना किसी लापरवाही के करते हैं। ज्ञात हो, गत वर्ष नगर परिषद ने शहरभर में पीओपी की मूर्ति का उपयोग न होने की दुहाई दी, लेकिन बाद में परिषद की ओर से ही अरविंद स्टेडियम में पीओपी की मूर्ति स्थापित कर दी गई थी।
राज्य सरकार व एनजीटी के सख्त आदेशों के बावजूद देखने में आता है कि जिम्मेदार आला अधिकारी भी अपने आसपास ऐसी मूर्तियों की स्थापना कर देते हैं। जहां मूर्तियां स्थापित हो रही हैं, उनकी अनदेखी भी वे बिना किसी लापरवाही के करते हैं। ज्ञात हो, गत वर्ष नगर परिषद ने शहरभर में पीओपी की मूर्ति का उपयोग न होने की दुहाई दी, लेकिन बाद में परिषद की ओर से ही अरविंद स्टेडियम में पीओपी की मूर्ति स्थापित कर दी गई थी।
रासायनिक रंगों से प्रदूषण
मिट्टी से बनी प्रतिमाएं आसानी से जलस्रोतों में घुल जाती हैं और पर्यावरण के अनुकूल भी होती हैं, लेकिन पीओपी की प्रतिमाएं पानी में घुलती नहीं हंै। इन्हें सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए रासायनिक रंगों से रंगा जाता है। यह रसायन पानी में घुलकर पर्यावरण व जलीय जीवों के लिए तो नुकसानदायक होता ही है, प्रदूषित पेयजल इंसानों के लिए भी घातक साबित हो सकता है।
यहां बन रही मूर्तियां : शहरा में प्रतापपुरा चौराहे, गोमाता सर्किल, रैन बसेरा के पास, राजनगर में भिक्षु निलयम आदि कई जगहों पर सैकड़ों की तादाद में मूर्तियों को रंगा जा रहा है।
मिट्टी से बनी प्रतिमाएं आसानी से जलस्रोतों में घुल जाती हैं और पर्यावरण के अनुकूल भी होती हैं, लेकिन पीओपी की प्रतिमाएं पानी में घुलती नहीं हंै। इन्हें सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए रासायनिक रंगों से रंगा जाता है। यह रसायन पानी में घुलकर पर्यावरण व जलीय जीवों के लिए तो नुकसानदायक होता ही है, प्रदूषित पेयजल इंसानों के लिए भी घातक साबित हो सकता है।
यहां बन रही मूर्तियां : शहरा में प्रतापपुरा चौराहे, गोमाता सर्किल, रैन बसेरा के पास, राजनगर में भिक्षु निलयम आदि कई जगहों पर सैकड़ों की तादाद में मूर्तियों को रंगा जा रहा है।