13 साल का देवेन्द्र (परिवर्तित नाम) उदयपुर से आकर राजसमंद जिले में एक होटल पर काम कर रहा है। पिता नहीं है। मां जैसे-तैसे घर-गुजारा चला रही थी, लेकिन कोरोनाकाल में काम मिलना बंद हो गया। बच्चे को पढ़ाई छोड़कर मज़बूरी में होटल पर काम के लिए जाना पड़ा। उसे महीने की 3000 रुपए तनख्वाह मिलती है। बच्चे ने नम आंखों से कहा, मैं यहां से चला जाऊंगा तो हम भूखे मर जाएंगे।
देवेन्द्र (13 वर्ष) मध्यप्रदेश से परिवार सहित केलवा क्षेत्र की एक सोप स्टोन की फैक्ट्री में काम करने आया। लॉकडाउन में सरकारी स्कूल की पढ़ाई छूट गई। पिता के साथ वह भी फैक्ट्री में काम करता है। पाउडर प्रसंस्करण इकाई में जोखिमपूर्ण काम है। उसकी सेहत को भी खतरे में डाल दिया गया है। यहां न तो पढ़ाई हो रही है, न ही उसके भविष्य का कोई अता-पता है।
ये हालात चौंकाने वाले हैं। शिक्षा का समान अधिकार देने का दावा करती सरकार और उसके बनाए कानून भी इन बच्चों की तालीम की हिफाजत नहीं कर सकी है। सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे, लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई का कोई इंतजाम नहीं होने से उनके और नियमित पढ़ाई कर रहे बच्चों के लिए बड़ी खाई बनने वाली है। पढ़ाई छुड़वाकर अभिभावकों ने उन्हें कमाई के लिए भेज दिया है। किसी को 5 किलोमीटर तो किसी को 50 किमी दूर।
जानकारी मिली कि केलवा, करेड़ा, बामनटुंकड़ा व आसपास के क्षेत्रों में पाउडर प्लांट्स में मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश के कई परिवार आए हैं, जिन्होंने 12 से 18 साल उम्र तक के बच्चों को भी झोंक रखा है। ढाबों और पाउडर प्लांट्स में कुल मिलाकर एक हजार से ज्यादा बालक-बालिकाएं पढऩे की उम्र में जोखिम भरे काम कर रहे हैं। कोई आग व भट्टी के पास गरम तेल से खेल रहा है तो कोई बड़े-बड़े पत्थरों के बीच पसीना बहा रहा है।
पिछले दस दिन में हमने सर्वे किया। जहां भी बच्चे मिले, उनके माता-पिता और नियोक्ता से समझाइश की है। अब किसी जगह से शिकायत आने पर ही विभाग द्वारा कार्रवाई करने का प्रावधान है। समाज कल्याण, पुलिस विभाग, चाइल्ड लाइन की मदद से कोशिश कर रहे हैं।
प्रदीप यादव, श्रम कल्याण अधिकारी, राजसमंद
बच्चों की पढ़ाई की नियमित मॉनिटरिंग होनी चाहिए। सरकार ही बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित करे। हर स्कूल की प्रबंधन कमेटियां यह तय करे कि पढ़ाने वाले और पढऩे वाले भी पढ़ें। पढ़ाई के बाद जब तक प्रश्न नहीं किए जाएंगे, अध्यापन कार्य पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकेगा। थोड़ा अभिभावकों, स्कूल और कम्युनिटी को भी संवेदनशील बनाना पड़ेगा। केवल आदर्शवादिता की बातों से काम नहीं चलेगा।
डॉ. गायत्री राठौड़, विभागाध्यक्ष, मानव विकास एवं पारिवारिक अध्ययन, सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर