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गर्भवती-घायलों को नहीं मिलती मुफ्त एंबुलेंस

locationराजसमंदPublished: Sep 13, 2021 07:09:41 pm

Submitted by:

jitendra paliwal

खमनोर मुख्यालय का मामला: सीएचसी में 108 एंबुलेंस 6 माह से, 104 एंबुलेंस 1 माह से पड़ी हैं बंदग्रामीणों को टटोलनी पड़ रही जेबें
 

गर्भवती-घायलों को नहीं मिलती मुफ्त एंबुलेंस

गर्भवती-घायलों को नहीं मिलती मुफ्त एंबुलेंस

गिरीश पालीवाल @ पत्रिका खमनोर. ग्रामीण क्षेत्रों से ब्लॉक मुख्यालय स्थित सीएचसी पर डिलीवरी व एक्सीडेंटल केस लाने-ले जाने व इंमरजेंसी रेफर केस अन्य बड़े अस्पतालों में ले जाने के लिए लोगों को पहले की तरह मु्फ्त एंबुलेंस सुविधाएं मिलना बंद हो गया है। छह माह पहले 108 एंबुलेंस हटा दी गई, वहीं 104 एंबुलेंस खराब हो जाने से ये सुविधा भी पिछले एक माह से बिल्कुल ठप पड़ी हैं। हालांकि पोस्ट डिलीवरी केस में सीएचसी स्तर पर संचालित वेन एंबुलेंस से जच्चा-बच्चा को घर पहुंचा रही हैं। ज्यादा इमरजेंसी नहीं होने एवं उपलब्धता की स्थिति में कभी-कभार 108 एंबुलेंस नाथद्वारा, केलवाड़ा या राजसमंद से खमनोर आ रही है।
केस-01
दो दिन पहले सेमा ग्राम पंचायत में गोलाया निवासी एक महिला को घर में घुसे सांप ने काट लिया तो उसे निजी वाहन से पहले खमनोर सीएचसी लाए। सीएचसी के डॉक्टरों ने यहां से रेफर कर दिया तो उसे निजी वाहन से ही नाथद्वारा ले जाना पड़ा। परिजनों को महिला को अस्पताल ले जाने का खर्च खुद ही वहन करना पड़ा।
केस-02
गांवगुड़ा की एक महिला को प्रसव के लिए शुक्रवार को निजी वाहन से ही सीएचसी पर लाए। प्रसूता के परिजनों ने बताया कि सीएचसी पर सरकारी एंबुलेंस नहीं होने से छह सौ रुपए किराया देना पड़ा। गुरुवार को सेमा पंचायत निवासी प्रसूता को परिजन निजी वाहन का बंदोबस्त कर खमनोर सीएचसी लाए।
केस-03
उनवास की एक प्रसूता को 2 सितंबर को रात करीब 12 बजे परिजन प्रसव के लिए खमनोर सीएचसी लाए, मगर क्रिटिकल केस होने से उसे रात एक बजे उदयपुर के लिए रेफर कर दिया गया। परिजनों ने दो हजार रुपए देकर निजी एंबुलेंस मंगवाई और प्रसूता को उदयपुर ले जाकर डिलीवरी करवाई।
ऐसे में खमनोर क्षेत्र के दर्जनों गांवों, ढाणी-मजरों से प्रसूताओं, मरीजों व घायलों को उनके परिजन निजी वाहनों का बंदोबस्त कर ब्लॉक मुख्यालय पर संचालित सीएचसी सहित अन्य अस्पतालों में ला व ले जा रहे हैं। इनमें एक बड़ा तबका उस निर्धन वर्ग के परिवारों का है, जो सरकार की अनेक कल्याणकारी योजनाओं की मदद से बमुश्किल अपना जीवन यापन कर रहे हैं। लोगों को भले ही सरकारी अस्पतालों में मु्फ्त इलाज मिल रहा हो, मगर सरकारी एंबुलेंस की सुविधाएं नहीं मिलने से हजारों रुपए का किराया मरीजों के परिवारों को खर्च करना पड़ रहा है। ये किराया कमजोर आय वाले परिवारों को बहुत खटक रहा है। पाई-पाई की बचत से जोड़ी गई पूंजी वाहनों के खर्च में चली जा रही है। सामान्य आय वर्ग के परिवारों के लिए भी डिलीवरी केस या एक्सीडेंटल इमरजेंसी में निजी वाहन से अस्पताल पहुंचना भारी पड़ रहा है।
4 हजार किमी चलती थी
खमनोर के सबसे करीब चिकित्सा केंद्र को देखें तो फिलहाल 108 एंबुलेंस नाथद्वारा में ही है। खमनोर में कई सालों से चल रही 108 एंबुलेंस फरवरी 2021 में सरकार व सेवा प्रदाता कंपनी के बीच के नीतिगत कारणों से हटा दी थी। एंबुलेंस की जरुरत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 108 एंबुलेंस जब ड्यूटि पर थी, तब औसत दिन में एक बार खमनोर से 35 किमी दूर राजसमंद जिला मुख्यालय के अस्पताल या 45 किमी दूर उदयपुर के बड़े अस्पताल एमबी में इमरजेंसी डिलीवरी केस, मरीजों या घायलों को ले जा रही थी। ये सारी व्यवस्थाएं फिलहाल प्रभावित हो गई हैं।
सीएचसी में खटारा वाहनों का जमावड़ा
ब्लॉक मुख्यालय के सीएचसी में वर्तमान में कई खराब वाहनों का जमावड़ा है। परिसर में चारों ओर कंडम हो चुके या खराब हालत में चिकित्सा सेवाओं से जुड़े वाहन खड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मोबाइल मेडिकल युनिट (बस), एक 108 एंबुलेंस, एक बेस एंबुलेंस, एक जीप एंबुलेंस अनुपयोगी हालत में खड़ी है। लंबे समय से खड़े इन वाहनों के बदले नए वाहनों को लाने या इन्हें ही ठीक कर उपयोग में लेने को लेकर विभागीय अधिकारी उदासीन हैं।
108 व 104 सुविधा बंद, जेब खर्च शुरू
विभाग की 104 में सुविधाओं के लिए लगी एंबुलेंस महीने भर से खराब है। एंबुलेंस बंद पड़ी होने से इमरजेंसी में मरीजों को निजी वाहनों के खर्च से सीएचसी तक आना, और यहां से रेफर होने पर नाथद्वारा, राजसमंद या उदयपुर तक जाना पड़ रहा है। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए सीएचसी आना है तो उन्हें निजी वाहन से ही लाना पड़ रहा है। राज्य सरकार से अनुबंधित सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ने खमनोर से 108 एंबुलेंस हटा दी है। फरवरी 2021 के बाद खमनोर में 108 की सुविधा पूरी तरह बंद है। 104 एंबुलेंस प्रसव के मामले ही ला व ले जा रही थी। वह भी पिछले एक माह से बंद पड़ी है। जिससे गर्भवती महिलाओं को परिजन निजी वाहनों से अस्पताल ले जा रहे हैं।
इलाज पर भारी वाहनों का किराया
सीएचसी से लेकर जिला अस्पताल में जहां सरकारी डॉक्टरों का परामर्श, जांच, चिकित्सा और दवाएं मुफ्त मिल रही हैं, वहीं किराए का वाहन महंगा पड़ रहा है। खमनोर से उदयपुर का औसत किराया दो हजार, राजसमंद आरके अस्पताल में छोडऩे का डेढ़ हजार और नाथद्वारा अस्पताल में छोडऩे का एक हजार रुपए देना पड़ रहा है। मरीज यदि भर्ती रहे तो उसे वापस घर ले जाने के लिए दोबारा लगभग इतना ही पैसा खर्च करना पड़ रहा है। लोग इतना पैसा वहन कर परेशान हो रहे हैं।
राजसमंद, नाथद्वारा या केलवाड़ा के भरोसे
खमनोर मुख्यालय पर निवासित और क्षेत्र के ग्रामीणों को गंभीर प्रकृति के एक्सीडेंटल केस या डिलीवरी इंमरजेंसी में 108 एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिलने से नाथद्वारा, राजसमंद या केलवाड़ा की 108 एंबुलेंस उपलब्ध होने पर निर्भर रहना पड़ रहा है। किसी सीरियस केस में परिजनों के लिए यह संभव नहीं होता कि वे इतनी दूर से 108 एंबुलेंस के आने तक एक या दो घंटे का इंतजार करे। मजबूरी में वे तत्काल अपने स्तर पर ही वाहन की व्यवस्था करने को विवश हो रहे हैं।
निजी वाहनों का सरकार देगी खर्च
खराब पड़े वाहनों को ठीक कराने या कंडम हो चुके वाहनों की जगह नए वाहनों के रिप्लेसमेंट की प्रक्रिया चल रही है। प्रसूताओं को निजी वाहन में अस्पताल लाने व ले जाने पर खर्च सरकार देगी।
प्रकाशचंद्र शर्मा, सीएमएचओ, राजसमंद
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