29 अप्रेल को अदालत में पुलिस ने कोई तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की। जांच अधिकारी एएसआई कालूराम से अदालत ने कई सवाल किए। 1. आरोपित को कुल 14 न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद प्रकरण में क्या प्रगति हुई है?
2. अपराध में आरोपी की क्या भूमिका है और मामले में कितनी राशि शामिल है?
3. संबंधित बैंकों से जाली खातों का विवरण हासिल करने के लिए पुलिस ने क्या कदम उठाए, जहां से अवैध राशि ट्रांसफर की जा रही थी?
एफआईआर दर्ज होने की तारीख 12 अप्रेल से 29 अप्रेल तक रोजनामचा के रिकॉर्ड में केवल 14 अप्रेल, 25 अप्रेल, 26 अप्रेल, 27 अप्रेल, और 29 अप्रेल का हवाला दिया था, जबकि रोजऩामचा में बीच के तफ्तीश नंबर 1, 3 से 6 की रिकॉर्ड उपलब्धता के बारे में जांच अधिकारी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। अदालत ने इसे जांच अधिकारी का साफतौर पर एक गलत मकसद माना। न्यायालय ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत पुलिस द्वारा दी जानकारी पर भरोसा किया। मुंबई शहर से जुड़े एक गंभीर मामले में जांच होनी है, इस तथ्य के मद्देनजर आरोपित को नौ दिन की पुलिस हिरासत दी गई, लेकिन हैरत है कि 16 अप्रेल की रोजऩामचा तफ्तीश केस डायरी में है ही नहीं। कोर्ट ने इसे केस डायरी के रिकॉर्ड के साथ हेरफेर और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का घोर उपहास माना।
ऐसा लगता है कि जांच अधिकारी ने आरोपी व्यक्तियों की पुलिस हिरासत में रिमांड लेने के बाद रोजनामचा प्रविष्टियों में हेराफेरी की और उन्हें केस फाइल के रिकॉर्ड से हटा दिया। न्यायालय ने केस डायरी के सभी पृष्ठों की संख्या की गिनती करवाई, जो 168 थी। अदालत ने जांच अधिकारी से गायब रोजऩामचा प्रविष्टियों और डिटेल मांगने के लिए बैंकों को लिखे गए विभिन्न पत्रों के जवाबों के बारे में सख्ती से पूछताछ की, लेकिन कोई उचित वजह नहीं बताई गई। जांच अधिकारी के अनुरोध करने पर उन्हें पुलिस स्टेशन जाकर दस्तावेज लाने की अनुमति दी गई। अधिकारी कार्यवाही के बीच ही सैकड़ों कागजात, और कुछ खोए हुए कागजात से भरे कई बंडल लेकर आए, जिसमें विभिन्न बैंक खातों का विवरण था। इनमें करोड़ों रुपए के फर्जी लेनदेन का हिसाब था। कोर्ट ने कहा- ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी वरिष्ठ पर्यवेक्षण अधिकारियों की मिलीभगत से विभिन्न बैंकों को सीआरपीसी की धारा-91 के तहत नोटिस जारी करने की समानांतर जांच चला रहे थे।
जांच रिकॉर्ड में अनियमितता को घोर कदाचार कहते हुए कोर्ट ने इसकी भी जांच सक्षम प्राधिकारी से की कराए जाने की बात कही। कोर्ट ने कहा कि केस डायरी दिन-प्रतिदिन की जांच का एक रिकॉर्ड है। सीआरपीसी की धारा-172 के तहत अतिरिक्त महानिदेशक (अपराध शाखा), जयपुर ने 06 मार्च-2014 को पत्र जारी कर प्रत्येक पुलिस अधिकारी को प्रावधानों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया है। जांच अधिकारी ने अपने ही विभाग के निर्देशों की अवहेलना की है।
यह 500 करोड़ रुपए से अधिक का बड़ा घोटाला है। विभिन्न बैंकों के खाता विवरण से पता चलता है कि विभिन्न मोबाइल एप के जरिए से बड़े पैमाने पर जनता को धोखा देकर धोखाधड़ी खातों में सैकड़ों करोड़ रुपए जमा किए हैं और फिर अलग-अलग खातों में राशि स्थानांतरित की। फिर एटीएम और चेक बुक की मदद से उसे वापस निकाल लिया गया। अदालत ने कहा कि आरोपी प्रकाशचंद खारोल के बारे में जांच अधिकारी ने डायरी में इस आशय का कोई नोट दर्ज नहीं किया। कोर्ट ने कहा- यह बहुत ही दुखद स्थिति है कि अशिक्षित या शिक्षित नागरिकों की मेहनत की कमाई साइबर ठगों द्वारा विभिन्न तरीकों से धोखाधड़ी से छीन ली जाती है। उनके पास उम्मीद की किरण लेकर संबंधित थाने जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। ऐसे में उचित और निष्पक्ष जांच जरूरी हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि उच्च स्तर पर बैंकिंग अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह धोखा संभव नहीं है। यह ऐसी अनियमितताओं और अवैधताओं को नजऱअंदाज़ नहीं कर सकता। निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है और पुलिस एजेंसियों में विश्वास बनाए रखने के लिए जनता के मन में विश्वास जगाने के लिए भी यह आवश्यक है। जांच अधिकारी की ओर से उचित और निष्पक्ष जांच कानून के शासन की रीढ़ है।
कोर्ट ने कहा- यह मामला नियमित अपराध का नहीं है, बल्कि इसे संगठित तरीके से नवीनतम साइबर तकनीकों और तरीकों का उपयोग कर बैंकिंग खामियों के दुरुपयोग से अंजाम दिया जा रहा है। ऐसे अपराधियों के तौर-तरीकों को समझने के लिए, बैंकिंग और साइबर अपराध के विशेषज्ञों की अनुसंधान में जरूरत है। वर्तमान जांच अधिकारी सहायक उप निरीक्षक स्तर का है, जो अदालत को मामले की जांच की अपनी रणनीति समझाने में सक्षम नहीं है। वह साइबर धोखाधड़ी से संबंधित सामान्य प्रश्नों के उत्तर देने और विश्वसनीय साक्ष्य एकत्र करने के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों को लेकर असहाय है। पुलिस महानिदेशक से परामर्श कर राज्य या राष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी से करवाएं।
यह ठगी का बड़ा मामला है। मध्यप्रदेश में भी एक प्रकरण दर्ज है। बड़ी संख्या में लोगों से हुई ठगी की गहनता से जांच कर रहे हैं। जहां तक अदालत की टिप्पणी की बात है, हमने उसका सम्मान करते हुए पूरी केस डायरी का फिर से अध्ययन करवाया है। अधिकांश बिन्दुओं से जुड़े दस्तावेज केस डायरी में मौजूद हैं। बाकी पूर्तियां अदालत की भावना के अनुरूप करेंगे। केस डायरी ऑनलाइन भी उपलब्ध है। जांच सीआई स्तर के अधिकारी को दे दी है और प्रतिदिन इसकी मॉनिटरिंग अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक व उप अधीक्षक कर रहे हैं।
सुधीर चौधरी, पुलिस अधीक्षक, राजसमंद
अभी प्रारम्भिक अनुसंधान हुआ है। जिन्हें हमने गिरफ्तार किया है, उनमें से ज्यादातर के अकाउंट्स को पहले से ही फर्जीवाड़े के मामलों में ब्लॉक है। हमने शिद्दत से इसकी जांच की है। परिवादी को उचित जांच व न्याय का पूरा भरोसा देकर रिपोर्ट दर्ज की थी और अनुसंधान कर रहे हैं। प्रकरण राजनगर थानाधिकारी को दे दिया है। अदालत की टिप्पणी का भी अवलोकन किया है। जहां कहीं भी प्रक्रिया में कमी है, उसकी जांच बैठा दी है। उच्चाधिकारियों के मार्गदर्शन में पहले ही दिन से जांच हो रही है। उदयपुर रेंज की साइबर सेल की भी पूरी मदद ले रहे हैं। चूंकि यह ऑनलाइन ठगी का बड़ा मामला है और अदालत की भी भावना है कि ठगी का शिकार लोगों को न्याय मिले, लिहाजा सभी तथ्यात्मक सबूतों को जुटा रहे हैं।
शिवलाल बैरवा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, राजसमंद